20151126

छोटा पर्दा और कॉरपोरेट जगत

गुलज़ार साहब ने भी अब छोटे परदे से मुंह मोड़ लिया है। इसकी वजह यह है कि अब उन्हें लगता कि उन्हें वह आजादी नहीं मिल पाएगी ।हालांकि वे अब भी किसी से शिकायत के लहजे में कुछ नहीं कहते। उन्होंने बस दूरी बना ली है। हाल ही में हेमा मालिनी से भी मुलाकात हुई। उन्होंने भी अपना दुख जाहिर किया कि उन्होंने छोटे पर्दे के लिए कुछ धारावाहिकों की शुरुआत की थी। लेकिन पहले एक ही प्रोड्यूसर की दखल होती थी। लेकिन हर जगह अब स्टूडियो आ चुके हैं।और वे अपनी ही मनमानी करते हैं। ऐसे में शुरुआत हो भी जाये तो कुछ दिनों के बाद उस शो में क्रियेटिव पहलुओं पर भी आपका एकाधिकार नहीं रह जाता। यह बात बहुत अखड़ती है।आप उस शो के प्रोड्यूसर होकर व कोई बदलाव न रोक सकते न ही क्रियेटिव सोच दे सकते। मजबूरन आपको अपने हाथ पीछे खींचने पड़ते हैं। कुछ ऐसी ही शिकायत कुछ सालों पहले संजय लीला भंसाली को भी हुई थी। उन्होंने एक शो की शुरुआत की थी लेकों बाद में वे इस शो से अलग हो गए थे। चूंकि उन्हें कहानी के साथ छेड़छाड़ नापसंद थी।दरअसल यह हकीकत है कि तमाम तकनीकों के दुरुस्त हो जाने के बावजूद आज भी कहानी व स्क्रिप्ट को लेकर लोगों की सोच बदली नहीं है। स्क्रिप्ट को लेकर अब भी लोग मनमाना हक जताना चाहते हैं। खासतौर से जो कॉर्पोरेट कल्चर में ढल चुके हैं उनके लिए ये बातें खास मायने नहीं रखतीं। वे अपनी सोच ही थोपने में विश्वास करते हैं। यही वजह है कि कई शोज की शुरुआत अच्छी स्टोरी लाईन पर शुरू होती है। लेकिन बाद में उनकी कहानी में भटकाव नजर आने लगता है। खुद ओम पूरी ने भी ये स्वीकार किया है कि जिस दौर में उन्होंने छोटे पर्दे पर काम किया था वह सुनहरे दौर थे। लेकिन अब इस तरह के खास कार्यक्रम नहीं बन सकते जहां कहानियों  में जज्बात बसते थे। तभी उस दौर मैं गुब्बारे,मुंशीलाल के हसीन सपने व कई अच्छे शो दर्शकों तक पहुंच पाते थे। लेकिन आज वह आज़ादी नहीं।यह हकीकत है कि कॉर्पोरेट जगत के आने की वजह से कई लोगों को नए अवसर प्राप्त हुए हैं। लेकिन यह भी हकीकत है कि लोगों ने इसे व्यवसाय के रूप में ही देखना शुरू कर दिया है।सोइं दिनों क्रियेटिव चीजों पर कम बातचीत और चर्चा होती है। इन दिनों इस बात पर अधिक मेहनत होती है कि शोस की भी सनसनी कैसे बरकरार रखी जा सकती है।यही वजह है कि शो दिल को नहीं छू पाते और अपनी जगह बना पाते हैं।

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