जावेद अख्तर इस बात को हमेशा दोहराते नजर आते हैं कि उन्हें खुशी है कि उनके दोनों बच्चों की सोच उनसे बिल्कुल मेल नहीं खाती।दोनों अपनी सोच से आगे बढ़ना चाहते हैं और उन्होंने अबतक अपनी पहचान स्थापित की भी है।उनके पिता ने उन्हें जादू नाम अपनी कविता की ही एक पंक्ति लम्हा लम्हा किसी जादू का फ़साना होगा की तर्ज़ पर रखा था।जावेद को अपना यह नाम इसलिए भी अज़ीज़ है, क्योंकि उनका मानना है कि चूंकि उनके पिता के लिए ये शब्द अनमोल थे और उन्हें इसी वजह से कविताएं लिखने में दिलचस्पी बढ़ी। लेकिन साथ ही वह इस बात को लेकर भी स्पष्ट रहे कि उनके पिता से उनकी राजनीति को लेकर जो बातें होती थी, उनमें काफी मतभेद था और इस वजह से उन्होंने जो समझ बनायी वह उनके ज्ञान के आधार पर बनाई और यही वजह है कि उन्होंने अपने बच्चे को भी सोचने और समझने की आज़ादी दी। शायद यही वजह है कि उनके बच्चों ने इस आवधारणा को निराधार साबित कर दिया कि एक लोकप्रिय पिता के बच्चे को वह मुकाम हासिल नहीं कर सकते जो उनके पिता को हासिल है। लेकिन गौर करें तो उनके बच्चे फरहान अख्तर और जोया अख्तर ने कभी भी यह कोशिश नहीं की कि उन्होंने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए उनकी तरह कवि बनने के बारे में सोचा।वरना ऐसे कई बॉलीवुड की हस्तियां हैं कई साहित्यकार के बच्चे हैं जो अब भी अपने पिता की विरासत की कमाई का ही निर्वाहन कर रहे हैं। ऐसे कई धुरंधर हैं जो अबतक पिता की छवि और उनके द्वारा सृजन किये गए स्टारडम से ही बाहर नहीं आ पाये हैं। कई निर्माता अपने बेटे बेटियों को इसी आस में फिल्मों में लॉन्च होने के मौके देते हैं। लेकिन चूंकि वे अपनी अलग दिशा बनाने के लिए कोई ऊर्जा नहीं लगाते। वे कामयाब नहीं हो पाते। फरहान आज न केवल कुशल अभिनेता हैं बल्कि वे एक बड़े प्रोडक्शन कंपनी के मालिक भी हैं और यह इसलिए सम्भव हो पाया चूंकि उन्होंने अपने पिता से इतर एक अलग राह चुनी। सो यह बेहद जरूरी है कि अपनी पहचान अपने दम खम पर और मेहनत से बनाई जाये।
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