20150905

धर्म और फिल्म

हाल ही में बजरंगी भाईजान के निर्देशक कबीर खान से बातचीत हुई. कबीर को इस बात की जहां एक तरफ खुशी है कि वह भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां बजरंगी भाईजान का शीर्षक सार्थक हो सकता है. लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस भी है कि कुछ लोगों ने व्यर्थ में शीर्षक को लेकर विवाद खड़े किये हैं. कबीर के माता पिता भी अलग अलग धर्मों के थे. लेकिन उनके परिवार में कभी भी धर्म को एक विवाद नहीं माना गया. कबीर बताते हैं कि बचपन से ही उनके लिए हर त्योहारों का जश्न ही धर्म था. वे तो जब 18 साल के हुए और जब उन्हें किसी फॉर्म में चयन करने को कहा , तब उनके जेहन में यह बात आयी कि दरअसल, धर्म को लेकर इतने विवाद क्यों हैं. कबीर किसी रिति रिवाज से धर्म को नहीं आंकते और मानते हैं कि अगर घर परिवार से ही यह शुरुआत की जाये और बच्चों को धर्म निरपेक्ष बनाया जाये तो धर्म के नाम पर होने वाले सारे दंगे व फसाद कम हो जायेंगे. उनका तर्क है कि बचपन से ही आपको कोई धर्म थोपा नहीं जाना चाहिए. कबीर इसी सोच के साथ आगे बढ़े हैं. फिल्म पीके में भी धर्म निरपेक्षता को लेकर एक गंभीर सोच दिखाई गयी है, जहां धर्म निरपेक्षता को बढ़ावा देने की बात की गयी है. सलमान खान का परिवार उन चुनिंदा परिवारों में से एक हैं, जहां हर धर्म को मानने वाले सदस्य हैं और उन्हें अपने तरीके से जिंदगी जीने का हक है. दरअसल, हकीकत भी यही है कि धर्म के नाम पर किसी को भला या किसी को बुरा कहना संभव नहीं है. एक अच्छा इंसान अच्छा इंसान ही होता है. गौर करें जो एक भला इंसान होता हम उसे अक्सर ऐसा ही कहकर संबोधित करे कि कितना भला इंसान है. हम कभी नहीं कहते कि अरे देखो कितना भला हिंदू इंसान है या कितना भला मुसलिम इंसान है. सो, जरूरी है इंसान को तवज्जो दी जाये. हमेशा.

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