नवाजुद्दीन सिद्दिकी फिल्म मांझी से एक बार दर्शकों को चौंकाने वाले हैं. दशरथ मांझी बिहार से हैं,सो बिहार के लिए तो यह आवश्यक फिल्म है ही. साथ ही इस फिल्म को पूरे देश के दर्शकों को देखना चाहिए. मुमकिन हो तो बिहार सरकार को तो अवश्य फिल्म को टैक्स फ्री करना चाहिए. दशरथ मांझी का योगदान अतुलनीय हैं. केतन मेहता की नजर इस विषय पर गयी और वे ऐसी फिल्म बनाने में कामयाब हो पा रहे हैं. वर्तमान दौर में यह अपने आप में यह विशेष बात है. चूंकि अगर आप केतन मेहता की फिल्में देखें तो वे पीरियड फिल्में बनाने में ही अधिक दिलचस्पी दिखाते हैं और ऐसे ही विषयों का चुनाव करते हैं. रंगरसिया से पहले चित्रकार रवि वर्मा के बारे में कितने लोगों को जानकारी थी. कितने आम लोग इस बात से वाकिफ थे कि राजा रवि वर्मा की वजह से दादा साहेब फाल्के विदेश जाकर पढ़ाई कर पाये. यह हकीकत है कि सारी जानकारी किताबों व इंटरनेट पर उपलब्ध है. लेकिन फिल्में जिस सरलता से इन शख्सियतों की कहानी हम तक पहुंचाती है. वह वाकई अदभुत कला है. केतन मेहता के प्रयास इस वजह से भी सराहनीय हैं कि तमाम चमक धमक के बावजूद वे अब भी अपनी मर्जी की फिल्में बना पा रहे हैं. भले ही उन्हें बॉक्स आॅफिस पर सफलता न मिले.लेकिन पीरियड ड्रामे का माहौल तैयार कर पाने और उसे बड़े परदे तक पहुंचा पाना ही वर्तमान समय के लिए बड़ी बात है. उनकी फिल्में क्रोमा या तकनीकी रूप से सौंद्धर्य नहीं बिखेरती, बल्कि एक कला निर्देशक की सोच व समझ उनमें दिखती है. संजय लीला भंसाली भी बड़े पैमाने पर अपनी कल्पना उकेरते हैं. लेकिन वे केतन मेहता से आर्थिक रूप से अधिक सामर्थ हैं. उनके पास अधिक स्रोत हैं. फिर भी ऐसे दौर में केतन कामयाब हो रहे हैं. यह सराहनीय है और उनके काम को इसलिए हमेशा प्रोत्साहन मिलते रहना चाहिए.
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20150905
केतन मेहता व कला
नवाजुद्दीन सिद्दिकी फिल्म मांझी से एक बार दर्शकों को चौंकाने वाले हैं. दशरथ मांझी बिहार से हैं,सो बिहार के लिए तो यह आवश्यक फिल्म है ही. साथ ही इस फिल्म को पूरे देश के दर्शकों को देखना चाहिए. मुमकिन हो तो बिहार सरकार को तो अवश्य फिल्म को टैक्स फ्री करना चाहिए. दशरथ मांझी का योगदान अतुलनीय हैं. केतन मेहता की नजर इस विषय पर गयी और वे ऐसी फिल्म बनाने में कामयाब हो पा रहे हैं. वर्तमान दौर में यह अपने आप में यह विशेष बात है. चूंकि अगर आप केतन मेहता की फिल्में देखें तो वे पीरियड फिल्में बनाने में ही अधिक दिलचस्पी दिखाते हैं और ऐसे ही विषयों का चुनाव करते हैं. रंगरसिया से पहले चित्रकार रवि वर्मा के बारे में कितने लोगों को जानकारी थी. कितने आम लोग इस बात से वाकिफ थे कि राजा रवि वर्मा की वजह से दादा साहेब फाल्के विदेश जाकर पढ़ाई कर पाये. यह हकीकत है कि सारी जानकारी किताबों व इंटरनेट पर उपलब्ध है. लेकिन फिल्में जिस सरलता से इन शख्सियतों की कहानी हम तक पहुंचाती है. वह वाकई अदभुत कला है. केतन मेहता के प्रयास इस वजह से भी सराहनीय हैं कि तमाम चमक धमक के बावजूद वे अब भी अपनी मर्जी की फिल्में बना पा रहे हैं. भले ही उन्हें बॉक्स आॅफिस पर सफलता न मिले.लेकिन पीरियड ड्रामे का माहौल तैयार कर पाने और उसे बड़े परदे तक पहुंचा पाना ही वर्तमान समय के लिए बड़ी बात है. उनकी फिल्में क्रोमा या तकनीकी रूप से सौंद्धर्य नहीं बिखेरती, बल्कि एक कला निर्देशक की सोच व समझ उनमें दिखती है. संजय लीला भंसाली भी बड़े पैमाने पर अपनी कल्पना उकेरते हैं. लेकिन वे केतन मेहता से आर्थिक रूप से अधिक सामर्थ हैं. उनके पास अधिक स्रोत हैं. फिर भी ऐसे दौर में केतन कामयाब हो रहे हैं. यह सराहनीय है और उनके काम को इसलिए हमेशा प्रोत्साहन मिलते रहना चाहिए.
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