अनुराग बसु ने टेलीविजन पर एक नयी शुरुआत की है. वे रवींद्रनाथ टैगोर की कहानियां लेकर आये हैं. खास बात यह है कि इस धारावाहिक को देखते हुए आप बिल्कुल यह महसूस नहीं करेंगे कि हम किसी छोटे परदे पर कोई धारावाहिक देख रहे हैं. अनुराग ने शो को सिनेमेटिक एक्सपीरियंस के साथ सामने रखा है. उसकी जितनी प्रशंसा की जाये कम है. गौरतलब है कि अनुराग ने किसी दौर में शुुरुआत टीवी से ही की थी. और वे लगातार इस बात को दोहराते रहे हैं कि नये लोगों को टीवी में खुद को पहले साबित करने की कोशिश करनी चाहिए, टीवी में काम करना फिल्मों में काम करने से अधिक कठिन है. अनुराग कहते हैं कि आपको अपनी पहचान के साथ टीवी पर पैसे भी अधिक मिलते हैं जिससे आप आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बन सकते हैं, जो कि मुंबई जैसे खर्चीले शहर के लिए बेहद जरूरी है. अनुराग एक बार फिर छोटे परदे पर लौटे हैं और वे इसलिए नहीं लौटे कि उनकी कोई मजबूरी रही है. वे फिल्मों में अभी भी सक्रिय ही हैं. लेकिन वे इस बार टीवी में पैसे कमाने नहीं आये. वे यहां एक जिम्मेदारी से आये हैं. उनकी सोच स्पष्ट रूप से उनके निर्माण में नजर आ रही हैं. रवींद्रनाथ की ये कहानियां देखने के बाद आप जब रिमोट किसी अन्य चैनल पर लेकर जाते हैं. आप अचानक महसूस करेंगे कि जैसे किसी अच्छी फिल्म के बाद आप किसी आयटम सांग को देख रहे हैं. समस्या यह है कि छोटे परदे पर ऐसे ही धारावाहिकों की लत दर्शकों को लग चुकी है और वे इसे ही मापदंड मान चुके हैं. टीआरपी में लगातार एक ऐसा शो नंबर वन की कुर्सी हासिल करता है, जो कई सालों से घिसा जा रहा है. लेकिन निर्माता व चैनल दोनों के लिए टीआरपी ही मायने रखती है. सो, उनके लिए वैसे ही शोज का निर्माण व प्रसारण प्रमुखता है. ऐसे में अनुराग जैसे निर्देशक की यह नयी सोच राहत देती है.
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