नीरज घेवान की फिल्म मसान इस शुक्रवार रिलीज हो रही है. यह फिल्म जीवन के ऐसे हकीकत से सामना कराती है, जिसे हम देख कर भी अनदेखा कर देना चाहते हैं. कोई मौत को नहीं देखना चाहता. और करीब से तो हरगिज नहीं देखना चाहता. लेकिन नीरज ने यह हिम्मत दिखाई है. फिल्म में दुष्यंत कुमार के गीत के बोल तू किसी रेल सी गुजरती है...मैं किसी पुल सा थरथराता हूं...की पंक्तियां काफी कुछ कह जाती है.फिल्म में नायक के पिता व उनका पूरा खानदान श्मशान ने लाशों को जलाते हैं. यह काम एक खास प्रजाति द्वारा किया जाता है और नीरज ने इस हकीकत तो बखूबी परदे पर उकेरा है. किस तरह वहां भी अपनी पारी का लोग इंतजार करते हैं. यह हकीकत भी सामने आता है. बनारस की पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म बनारस की कुछ गलियों के हकीकत से रूबरू कराती है. दो अधूरी प्रेम कहानियों का संगम में मिलना सिर्फ संयोग मात्र नहीं. एक नियति भी होती है. यह भी फिल्म दर्शाती है. नीरज की फिल्म को कान फिल्मोत्सव में काफी सराहना भी मिली और साथ ही पुरस्कार भी मिले हैं. शायद वजह यही रही होगी कि नीरज ने हकीकत को बखूबी परदे पर उतार दिया है और ऐसी सच्चाईयों से जिससे हम मुंह मोड़ना चाहते हैं.प्रेम का अधूरापन भी प्रेम को किस कदर पूरा करता है यह हमें देवी का पीयूष के लिए प्रेम और दीपक का शालु के लिए प्रेम दर्शाता है. फिल्म के कलाकारों का संजीदगी से किया गया अभिनय फिल्म को वास्तविकता के बिल्कुल नजदीक लेकर जाता है.नीरज ने पहली फिल्म से ही यह स्थापित कर दिया है कि वे किस लीग के निर्देशकों में से एक हैं. इस फिल्म का व्यापक स्तर पर रिलीज होना और दर्शकों का इससे रूबरू होना भी बेहद जरूरी है. मसान जिंदगी के कड़वे सच का आईना है, जिसमें हम अपना चेहरा देखने से डरते हैं. लेकिन हकीकत वही है.
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