नवाजुद्दीन सिद्दिकी की नयी फिल्म दशरश मांझी पर बनी मांझी द माउनटेन मैन को लेकर विवाद जारी है.कई लोगों का मानना है कि फिल्म में वास्तविक घटनाओं को फिल्मी तरीके से पेश किया गया है. जबकि अगर फिल्म बायोपिक बन रही थी तो फिल्म में हकीकत को सामने रखना चाहिए था. हिंदी सिनेमा के इतिहास में जब जब बायोपिक फिल्में बनी हैं. यह सवाल खड़े होते रहे हैं. भाग मिल्खा भाग फिल्म को लेकर भी काफी विवाद छिड़े थे. लोगों ने राकेश ओमप्रकाश मेहरा के कई दृश्यों को काल्पनिक और मनगढंत माना था. यह हकीकत है कि बायोपिक फिल्में बनाते वक्त निश्चित तौर पर निर्देशकों पर यह दबाव रहता है कि वे परिस्थितियों को ज्यों का त्यो प्रस्तुत करें. लेकिन यह बात हमें भी समझनी होगी कि फीचर फिल्म का मतलब ही फीचर है, वह वृतचित्र की तरह कभी भी हकीकत को ज्यों का त्यों नहीं प्रस्तुत कर सकता. इन दिनों संजय लीला भंसाली बाजीराव मस्तानी पर काम कर रहे हैं. उनके फिल्म का संवाद है बाजीराव ने मोहब्बत की है, अय्याशी नहीं. जाहिर है कि बाजीराव ने कभी भी वास्तविक जिंदगी में ऐसे बोल नहीं बोले होंगे. लेकिन दर्शकों को बांधे रखने के लिए निर्देशक सिनेमेटिक लिबर्टी लेता है. जब फिल्म का फिल्मांकन हो रहा होता है तो ये बातें मायने रखती हैं कि दृश्यों को किस तरह रोचक बनाया जाये. हां, इतिहास से खेलना या उसके साथ खिलवाड़ करना अनुचित है. अपराध है. मगर अपने दृश्यों को रोचक बनाने के लिए दृश्य गढ़ना एक निर्देशक की जरूरत है और दर्शकों को व समीक्षकों को भी यह बात समझनी होगी. फिल्म एक विजुअल मीडियम है और दृश्यों के सहारे ही तीन घंटों तक दर्शकों को बांधे रखा जा सकता है. सो, दृश्यों को लेकर हाय तौबा मचाते वक्त और अपनी भावना को ठेस पहुंचाने से पहले इन बिंदुओं पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए
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