एक अंगरेजी अखबार में शर्मिला टैगोर ने सत्यजीत रे और उनके फिल्मांकन पर एक बेहतरीन आलेख लिखा है. भारतीय सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए यह एक आवश्यक आलेख है. शर्मिला ने स्वीकारा है कि अगर उन्हें सत्यजीत रे की फिल्मों में काम करने का मौका न मिला होता और हिंदी सिनेमा के फिल्मकारों ने वे फिल्में न देखी हो तो शायद ही उन्हें हिंदी सिनेमा की नायिका बनने का मौका मिलता. शर्मिला ने एक सत्यजीत रे की एक खासियत पर विशेष रेखांकन किया है. उन्होंने बताया है कि सत्यजीत रे अपनी फिल्मों में हर कलाकारों को समान महत्व देते थे. फिर चाहे वह फिल्म में कोई बाल कलाकार ही क्यों न हो. वे उन फिल्मकारों में से एक थे, जो बच्चों को हल्के में नहीं लेते थे और यही वजह थी कि उनकी फिल्मों में बाल कलाकार भी उम्दा अभिनय करते थे. उनकी फिल्म में ट्रेन भी एक किरदार के रूप में ही होता था. सत्यजीत से एक बार सौमित चटर्जी ने पूछा था कि वे फिल्मों में क्यों आये. फिल्मकार क्यों बने. जबकि वे कई अन्य विधाओं में माहिर थे. सत्यजीत रे का जवाब था कि मुझे लगता है कि फिल्म मेकिंग को छोड़ कर ऐसी कोई विधा नहीं जिसमें कई तरह के प्रयोग किये जा सकें. और मैं प्रयोग करना चाहता हूं. दरअसल, सत्यजीत ने इस माध्यम से फिल्म मेकिंग का सरल और सहज लेकिन सटीक सार बताने की कोशिश की है. सत्यजीत रे की फिल्म मेकिंग को समझने के लिए यह बेहतरीन आलेख है. यह सत्यजीत रे जैसे फिल्मकार ही कर सकते थे. जिस तरह वे अपने प्रोप्स को भी किरदार में ढालते थे. वह अंदाज अदभुत था. वर्तमान में हिंदी सिनेमा में व्रिकमादित्य मोटवाणे की शैली में कुछ हद तक सत्यजीत रे की यह खूबी नजर आती है.
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