अपनी फिल्म, फिल्म की कहानी, फिल्म का अप्रोच, फिल्म के कलाकार को लेकर जितनी स्पष्ट सोच और नजरिया इम्तियाज अली रखते हैं. हिंदी सिनेमा के कुछेक निर्देशक ही इतनी स्पष्ट तरीके से अपनी बात को लोगों तक पहुंचा पाते हैं. उनके फिल्मों के किरदार कंफ्यूज्ड होकर भी लोगों से कनेक्ट कर पाते हैं. रॉकस्टार, जब वी मेट, लव आजकल जैसी फिल्मों के बाद इस बार इम्तियाज हाइवे लेकर आ रहे हैं. हाइवे में भी उनकी कोशिश एक रिश्ते की कहानी कहने की है. पेश है फिल्म व कुछ अन्य पहलुओं पर अनुप्रिया और उर्मिला से हुई बातचीत के मुख्य अंश
हाइवे का विषय जेहन में कैसे आया?
मैंने हाइवे काफी सालों पहले लिखी थी. मैं मीडिल क्लास से हूं और मुझे सफर करना हमेशा से काफी पसंद रहा है. मेरा परिवार हर छुट्टियों में घूमने जाता था. मुझसे हमेशा लोग पूछते हैं कि आपकी फिल्म में लड़का लड़की भागते क्यों रहते हैं तो मैं उन्हें यही कहता हूं कि मुझे भागने का बड़ा शौक है. मैं भागते रहता चाहता हूं और इसलिए मैं सफर का आनंद उठा पाता हूं. मैं ट्रेवल से बहुत ज्यादा फैशिनेटेड रहता हूं. अक्सर क्या होता है न जो चीजें जिंदगी में आपने अधूरी करके छोड़ देते हैं, या फिर ये लगता है कि अरे ये मैं नहीं कर पाया, इसमें तो मुझे मजा आता था. तो वे अरमां मैं फिल्मों में पूरे करता हूं. मैं काफी घूमता रहा हूं और मुझे लगता है कि अपने भारत को समझने के लिए घूमना जरूरी है. मुंबई में रहनेवाले लोग केवल मुंबई को ही दुनिया मान लेते हैं और मैं वही नहीं मानना चाहता. मुझे लगता है कि पूरी दुनिया घूमो. अपने भारत के ही कोने कोने में जाओ. क्या नयी नयी चीजें देखने को मिलती है और नजरिया मिलता है और मुझे लगता है कि उनसे ही आपके अनुभव मिलते हंै. मुझे यात्रा करना पसंद है और इसलिए मैं अपनी फिल्मों में किरदारों को भी भगाता रहता हूं. दौड़ाता रहात हूं. मैंने जब हाइवे बनाने के बारे में पहले सोचा था तो मैंने सोचा था कि इसे एक् शन फिल्म के रूप में प्रस्तुत करूंगा. लेकिन बाद में कुछ जमी नहीं तो मैंने इसे यह रूप दिया.
आपकी फिल्मों में रोमांस को हमेशा अलग अंदाज में प्रस्तुत किया जाता रहा है. तो हाइवे में भी रोमांटिक कहानी होगी?
मैं यह बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैं रोमांटिक फिल्में नहीं बनाता. मैं दो लोगों के बीच के संबंधों के बीच की कहानी बनाता. लेकिन संयोग से लोग उसे रोमांटिक ही मान लेते हैं और मुझे इस बात से परेशानी होती है. मैंने इस फिल्म में भी दो लोगों के बीच के संबंध को ही दर्शाने की कोशिश की है. सच कहूं तो मैं हाइवे को कई तरीकों से बनाना चाहता था. कभी मेरे जेहन में ये भी बात आयी थी कि चलो इसे कयामत से कयामत तक की तरह बनाते हैं, क्योंकि मैं बस स्क्रिप्ट लिखता जा रहा था. लेकिन अब जब स्क्रिप्ट ने फाइनल रूप लिया तो उसे मैंने यही रूप दिया है. इस फिल्म की डिमांड थी कि जो लड़की है उसे कई स्थानों से सफर करते हुए और वैसे स्थान जो आमतौर पर जाने नहीं जाते. उन स्थानों से गुजरना है. फिल्म में लड़की ब्राह्मण परिवार की है और लड़का गुजर है. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि दोनों के बीच कोई जातिवाद को लेकर मतभेद नहीं है.
हाइवे फिल्म के अनुभव को हाइवे डायरीज का रूप देने का ख्याल कैसे आया?
दरअसल, हमारे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हम चीजों का डॉक्यूमेंटेशन सही तरीके से नहीं करते. हम दिलचस्प तरीके नहीं ढूंढते. मेरे लिए हाइवे डायरीज कोई प्रोमोशनल वीडियो नहीं है. बल्कि हाइवे जो मेरे लिए फीचर फिल्म है वही हाइवे डायरीज डॉक्यूमेंट्री है. मैंने और मेरे साथ पूरी टीम ने जो खट्ठे मीठे और अनोखे अनुभव किये हैं. वह हमने इसके माध्यम से संजोने की कोशिश की है. और मुझे लगता है कि यह एक दिलचस्प तरीका है. हाइवे डायरीज से भी आप कई चीजें देख कर समझ लेंगे. भारत को इस नजरिये से देखने का अनुभव भी अनोखा होगा. ऐसा मेरा मानना है.
लेकिन इन छह राज्यों को ही चुनने की कोई खास वजह. ये सारे राज्य उत्तर भारत के राज्य हैं.
मेरी फिल्में हिंदी में होती हैं, क्योंकि मेरे दर्शक हिंदी में हैं, मैं हिंदी बोलता हूं.तो जाहिर है वैसे ही स्थान चुनूंगा जिसमें मैं सहज हूं. अब कोई भी भाषा मैं जानता नहीं और फिर उसे बोलने या उसको दिखाने की कोशिश करूं तो वह बनावटी लगेगा न. दक्षिण में कोई हिंदी बोले तो कैसा लगेगा. मैं ओरिंजनल अंदाज नहीं दे पाता, इसलिए मैंने राजस्थान, कश्मीर, दिल्ली को चुना. सिर्फ नॉर्थ ही एक हिस्सा है, जहां हिंदी बोली जाती है तो निश्चित तौर पर वही मुझे लैंग्वेज आॅफ कम्युनिकेशन की दिक्कत नहीं होती है. दूसरी वजह है कि मैं इन जगहों को जानता हूं और आप जब फिल्म बना रहे होते हैं या आपका जो फैशिनेशन होता है. वह उन स्थानों के लिए नहीं हो सकता जिसके बारे में आप कुछ जानते ही न हों. और मुझे लगता है कि इन स्थानों पर कुछ तो एक खास बात है, जो मुझे बार बार अपनी ओर खींचती है. वह मैं शब्दों में तो नहीं बता सकता. लेकिन ऐसा कुछ तो है. फिर आप देखो न नॉर्थ में कभी भी वेदर भी एक सा नहीं रहता. कभी ठंडा कभी गर्मी. तो ये सब मुझे ड्रामेटिक सा लगता है. मतलब इसमें ड्रामा है. एकरसता नहीं. शायद
हाइवे की क्या चीजें आपको आकर्षित करती हैं?
मुझे हाइवे का खाना यानी ढाबा का जो अंदाज है. ढाबा कल्चर का खाना मुझे बेहद पसंद है. मैं तो सड़क मार्ग से यात्रा करना बेहद पसंद करता हूं. फिर वहां जिस तरह के लोग आते हैं. कुछ दूरियों पर ही भाषा बदल जाती है. लोगों के बात करने का तरीका. खाने में मसाले का इंतजाम करने का तरीका. सबकुछ बदल जाता है. वहां का संगीत. अलग अलग तरह की औरतें मिली. गांव में काम करनेवाली. मैं जब राजस्थान में था. मैंने आलिया से पूछा कि तुमने कुछ महसूस किया इन औरतों के बारे में तो आलिया ने भी कहा कि हां, मैं देख रही हूं कि हर जगह औरत ही ज्यादा काम कर रही हैं. मर्द नहीं तो ये चीजें इनकरेज करती हैं. मेरा मानना है कि शहर में लोग ज्यादा दकियानुसी होते हैं. वहां औरत का रोल या कैरेक्टर समझ नहीं आता. आप अलग तरह के इलाकों में जाओ तो आपको पता चलेगा. क्या होता है न जब आप हाइवे पर चल रहे होते हैं और फिर ढाबे पे रुकते हैं तो दूर कहीं से कई तरह के लोग वहां आते हैं. ठहरते हैं और फिर बातें करते हैं. ट्रैक्टर से आते हैं, फिर वो जो खाना अपने घर से बना कर लाये हैं, उनका लिबास, ये सब यूनिक और टिपिकल सी चीजें हैं जो मुझे देखना अच्छा लगता है. हाइवे डायरीज में वही चीजें दिखाने की कोशिश की है. कुछ लोग हैं अभी भी जिन्हें नहीं पता क्या होता है कैमरा, क्या होती है फिल्में. वे जब हमारा कैमरा देख कर चिल्ला रहे थे. गुस्सा कर रहे थे. वह सब रियल इंडिया है और ये सब मुझे पसंद है.
आपके फिल्मों के किरदार कंफ्यूज्ड होते हैं प्यार को लेकर. तो क्या कहीं न कहीं वास्तविक जिंदगी में आप भी प्यार को लेकर कंफ्यूज्ड हैं?
हां, स्पष्ट तौर पर और ईमानदारी से कहूं तो हां मैं कंफ्यूज्ड हूं. मुझे नहीं लगता कि प्यार में कमिटमेंट करना या बोलना आसान है. निभाना मुश्किल. आप किसी के साथ हैं आपको अच्छा लग रहा. फिर आप उसके हो जाते हो लेकिन बाद में लगता कि शायद यह सही निर्णय नहीं था. फिर आपको किसी और का साथ अच्छा लगने लगता. तो प्यार मेरे लिए पूरी तरह से कंफ्यूजन की चीज है और हां, कहीं न कहीं मेरी यह सोच मेरे किरदारों में दिखती है.मैं इस तरह से सोचता हूं कि क्या होता है जब एक औरत और मर्द साथ में होते हैं. क्यों अचानक से दोनों को एक दूसरे अच्छे लगते हैं. तो इस बात को दिखाने समझाने की कोशिश करता हूं. और मुझे लगता है कि जब तक कंफ्यूज्ड हूं तभी तक ऐसी कहानियां कह पा रहा हूं.
आलिया और रणदीप को चुनने की खास वजह?
ये दोनों ही किरदार के लिए बिल्कुल फिट थे. आप देखें आलिया किस तरह जूहू गर्ल होकर जूहू से बाहर आकर एक नयी दुनिया के रंग में रंग गयी है और कैसे वह वहां की होकर रह गयी है. फिल्म देखेंगे तो आप महसूस करेंगे.
हाइवे का विषय जेहन में कैसे आया?
मैंने हाइवे काफी सालों पहले लिखी थी. मैं मीडिल क्लास से हूं और मुझे सफर करना हमेशा से काफी पसंद रहा है. मेरा परिवार हर छुट्टियों में घूमने जाता था. मुझसे हमेशा लोग पूछते हैं कि आपकी फिल्म में लड़का लड़की भागते क्यों रहते हैं तो मैं उन्हें यही कहता हूं कि मुझे भागने का बड़ा शौक है. मैं भागते रहता चाहता हूं और इसलिए मैं सफर का आनंद उठा पाता हूं. मैं ट्रेवल से बहुत ज्यादा फैशिनेटेड रहता हूं. अक्सर क्या होता है न जो चीजें जिंदगी में आपने अधूरी करके छोड़ देते हैं, या फिर ये लगता है कि अरे ये मैं नहीं कर पाया, इसमें तो मुझे मजा आता था. तो वे अरमां मैं फिल्मों में पूरे करता हूं. मैं काफी घूमता रहा हूं और मुझे लगता है कि अपने भारत को समझने के लिए घूमना जरूरी है. मुंबई में रहनेवाले लोग केवल मुंबई को ही दुनिया मान लेते हैं और मैं वही नहीं मानना चाहता. मुझे लगता है कि पूरी दुनिया घूमो. अपने भारत के ही कोने कोने में जाओ. क्या नयी नयी चीजें देखने को मिलती है और नजरिया मिलता है और मुझे लगता है कि उनसे ही आपके अनुभव मिलते हंै. मुझे यात्रा करना पसंद है और इसलिए मैं अपनी फिल्मों में किरदारों को भी भगाता रहता हूं. दौड़ाता रहात हूं. मैंने जब हाइवे बनाने के बारे में पहले सोचा था तो मैंने सोचा था कि इसे एक् शन फिल्म के रूप में प्रस्तुत करूंगा. लेकिन बाद में कुछ जमी नहीं तो मैंने इसे यह रूप दिया.
आपकी फिल्मों में रोमांस को हमेशा अलग अंदाज में प्रस्तुत किया जाता रहा है. तो हाइवे में भी रोमांटिक कहानी होगी?
मैं यह बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैं रोमांटिक फिल्में नहीं बनाता. मैं दो लोगों के बीच के संबंधों के बीच की कहानी बनाता. लेकिन संयोग से लोग उसे रोमांटिक ही मान लेते हैं और मुझे इस बात से परेशानी होती है. मैंने इस फिल्म में भी दो लोगों के बीच के संबंध को ही दर्शाने की कोशिश की है. सच कहूं तो मैं हाइवे को कई तरीकों से बनाना चाहता था. कभी मेरे जेहन में ये भी बात आयी थी कि चलो इसे कयामत से कयामत तक की तरह बनाते हैं, क्योंकि मैं बस स्क्रिप्ट लिखता जा रहा था. लेकिन अब जब स्क्रिप्ट ने फाइनल रूप लिया तो उसे मैंने यही रूप दिया है. इस फिल्म की डिमांड थी कि जो लड़की है उसे कई स्थानों से सफर करते हुए और वैसे स्थान जो आमतौर पर जाने नहीं जाते. उन स्थानों से गुजरना है. फिल्म में लड़की ब्राह्मण परिवार की है और लड़का गुजर है. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि दोनों के बीच कोई जातिवाद को लेकर मतभेद नहीं है.
हाइवे फिल्म के अनुभव को हाइवे डायरीज का रूप देने का ख्याल कैसे आया?
दरअसल, हमारे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हम चीजों का डॉक्यूमेंटेशन सही तरीके से नहीं करते. हम दिलचस्प तरीके नहीं ढूंढते. मेरे लिए हाइवे डायरीज कोई प्रोमोशनल वीडियो नहीं है. बल्कि हाइवे जो मेरे लिए फीचर फिल्म है वही हाइवे डायरीज डॉक्यूमेंट्री है. मैंने और मेरे साथ पूरी टीम ने जो खट्ठे मीठे और अनोखे अनुभव किये हैं. वह हमने इसके माध्यम से संजोने की कोशिश की है. और मुझे लगता है कि यह एक दिलचस्प तरीका है. हाइवे डायरीज से भी आप कई चीजें देख कर समझ लेंगे. भारत को इस नजरिये से देखने का अनुभव भी अनोखा होगा. ऐसा मेरा मानना है.
लेकिन इन छह राज्यों को ही चुनने की कोई खास वजह. ये सारे राज्य उत्तर भारत के राज्य हैं.
मेरी फिल्में हिंदी में होती हैं, क्योंकि मेरे दर्शक हिंदी में हैं, मैं हिंदी बोलता हूं.तो जाहिर है वैसे ही स्थान चुनूंगा जिसमें मैं सहज हूं. अब कोई भी भाषा मैं जानता नहीं और फिर उसे बोलने या उसको दिखाने की कोशिश करूं तो वह बनावटी लगेगा न. दक्षिण में कोई हिंदी बोले तो कैसा लगेगा. मैं ओरिंजनल अंदाज नहीं दे पाता, इसलिए मैंने राजस्थान, कश्मीर, दिल्ली को चुना. सिर्फ नॉर्थ ही एक हिस्सा है, जहां हिंदी बोली जाती है तो निश्चित तौर पर वही मुझे लैंग्वेज आॅफ कम्युनिकेशन की दिक्कत नहीं होती है. दूसरी वजह है कि मैं इन जगहों को जानता हूं और आप जब फिल्म बना रहे होते हैं या आपका जो फैशिनेशन होता है. वह उन स्थानों के लिए नहीं हो सकता जिसके बारे में आप कुछ जानते ही न हों. और मुझे लगता है कि इन स्थानों पर कुछ तो एक खास बात है, जो मुझे बार बार अपनी ओर खींचती है. वह मैं शब्दों में तो नहीं बता सकता. लेकिन ऐसा कुछ तो है. फिर आप देखो न नॉर्थ में कभी भी वेदर भी एक सा नहीं रहता. कभी ठंडा कभी गर्मी. तो ये सब मुझे ड्रामेटिक सा लगता है. मतलब इसमें ड्रामा है. एकरसता नहीं. शायद
हाइवे की क्या चीजें आपको आकर्षित करती हैं?
मुझे हाइवे का खाना यानी ढाबा का जो अंदाज है. ढाबा कल्चर का खाना मुझे बेहद पसंद है. मैं तो सड़क मार्ग से यात्रा करना बेहद पसंद करता हूं. फिर वहां जिस तरह के लोग आते हैं. कुछ दूरियों पर ही भाषा बदल जाती है. लोगों के बात करने का तरीका. खाने में मसाले का इंतजाम करने का तरीका. सबकुछ बदल जाता है. वहां का संगीत. अलग अलग तरह की औरतें मिली. गांव में काम करनेवाली. मैं जब राजस्थान में था. मैंने आलिया से पूछा कि तुमने कुछ महसूस किया इन औरतों के बारे में तो आलिया ने भी कहा कि हां, मैं देख रही हूं कि हर जगह औरत ही ज्यादा काम कर रही हैं. मर्द नहीं तो ये चीजें इनकरेज करती हैं. मेरा मानना है कि शहर में लोग ज्यादा दकियानुसी होते हैं. वहां औरत का रोल या कैरेक्टर समझ नहीं आता. आप अलग तरह के इलाकों में जाओ तो आपको पता चलेगा. क्या होता है न जब आप हाइवे पर चल रहे होते हैं और फिर ढाबे पे रुकते हैं तो दूर कहीं से कई तरह के लोग वहां आते हैं. ठहरते हैं और फिर बातें करते हैं. ट्रैक्टर से आते हैं, फिर वो जो खाना अपने घर से बना कर लाये हैं, उनका लिबास, ये सब यूनिक और टिपिकल सी चीजें हैं जो मुझे देखना अच्छा लगता है. हाइवे डायरीज में वही चीजें दिखाने की कोशिश की है. कुछ लोग हैं अभी भी जिन्हें नहीं पता क्या होता है कैमरा, क्या होती है फिल्में. वे जब हमारा कैमरा देख कर चिल्ला रहे थे. गुस्सा कर रहे थे. वह सब रियल इंडिया है और ये सब मुझे पसंद है.
आपके फिल्मों के किरदार कंफ्यूज्ड होते हैं प्यार को लेकर. तो क्या कहीं न कहीं वास्तविक जिंदगी में आप भी प्यार को लेकर कंफ्यूज्ड हैं?
हां, स्पष्ट तौर पर और ईमानदारी से कहूं तो हां मैं कंफ्यूज्ड हूं. मुझे नहीं लगता कि प्यार में कमिटमेंट करना या बोलना आसान है. निभाना मुश्किल. आप किसी के साथ हैं आपको अच्छा लग रहा. फिर आप उसके हो जाते हो लेकिन बाद में लगता कि शायद यह सही निर्णय नहीं था. फिर आपको किसी और का साथ अच्छा लगने लगता. तो प्यार मेरे लिए पूरी तरह से कंफ्यूजन की चीज है और हां, कहीं न कहीं मेरी यह सोच मेरे किरदारों में दिखती है.मैं इस तरह से सोचता हूं कि क्या होता है जब एक औरत और मर्द साथ में होते हैं. क्यों अचानक से दोनों को एक दूसरे अच्छे लगते हैं. तो इस बात को दिखाने समझाने की कोशिश करता हूं. और मुझे लगता है कि जब तक कंफ्यूज्ड हूं तभी तक ऐसी कहानियां कह पा रहा हूं.
आलिया और रणदीप को चुनने की खास वजह?
ये दोनों ही किरदार के लिए बिल्कुल फिट थे. आप देखें आलिया किस तरह जूहू गर्ल होकर जूहू से बाहर आकर एक नयी दुनिया के रंग में रंग गयी है और कैसे वह वहां की होकर रह गयी है. फिल्म देखेंगे तो आप महसूस करेंगे.
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