स्टार प्लस के धारावाहिक ये हैं मोहब्बतें में शो की लीड किरदार इशिता मां नहीं बन सकतीं. लेकिन अपने पड़ोस में रहनेवाली बच्ची रुही के लिए उसके दिल में इतनी ममता है कि वह केवल रुही के लिए एक ऐसे लड़के से शादी कर लेती है, जिससे वह नफरत करती है. इसी धारावाहिक में शगुन नामक किरदार अपने ब्वॉय फ्रेंड से बिना शादी किये उनके साथ रह रही हैं. स्टार प्लस के ही एक और धारावाहिक ये रिश्ता क्या कहलाता है में नैतिक के पिता की दूसरी शादी की तैयारियां चल रही हैं. इन धारावाहिकों की सोच पर गौर करें तो धीरे धीरे छोटे परदे पर कई बोल्ड विषय दिखाये जा रहे हैं. खासतौर से इससे इस नजरिये में तो जरूर बदलाव नजर आयेंगे कि एक लड़की जो मां नहीं बन सकती, उसे शादी करने का हक नहीं. या फिर एक अकेला व्यक्ति वृद्धा अवस्था में दूसरी शादी नहीं कर सकता. दरअसल, अब छोटे परदे पर भी अच्छे और जरूरी विषयों का चुनाव हो रहा है, जिससे समाज की कई बेड़ियों को टूटते हुए दिखाया जा रहा है. किसी दौर में टेलीविजन को इस तरह के मुद्दे डील करते हुए नहीं दिखाया जाता था. लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा. अब विषयों के चुनाव में बदलते दौर की तसवीर भी दिखाई जा रही हैं. वैसे विषय जो केवल पहले फिल्मों में दिखाये जाते थे. अब छोटे परदे पर आ रहे हैं. छोटा परदा अपनी बेड़ियां खुद तोड़ रहा है और शायद यही वजह है कि लोग अब फिल्मों से अधिक छोटे परदे पर भरोसा करने लगे हैं. छोटे परदे के धारावाहिकों के निर्माता अब खुद को किचन के झगड़ों तक सीमित नहीं रख रहे और न ही केवल सामाजिक सुधारक की भूमिका निभा रहे, बल्कि ऐसे मुद्दे जो प्राय: उभर कर सामने नहीं आते. वैसे मुद्दों पर भी अब प्रकाश डाला जा रहा है. और इसके लिए निर्माता निर्देशक वाकई तारीफ के हकदार हैं. इस बदलाव का स्वागत किया जाना चाहिए
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20140218
छोटे परदे की टूटतीं बेड़ियां
स्टार प्लस के धारावाहिक ये हैं मोहब्बतें में शो की लीड किरदार इशिता मां नहीं बन सकतीं. लेकिन अपने पड़ोस में रहनेवाली बच्ची रुही के लिए उसके दिल में इतनी ममता है कि वह केवल रुही के लिए एक ऐसे लड़के से शादी कर लेती है, जिससे वह नफरत करती है. इसी धारावाहिक में शगुन नामक किरदार अपने ब्वॉय फ्रेंड से बिना शादी किये उनके साथ रह रही हैं. स्टार प्लस के ही एक और धारावाहिक ये रिश्ता क्या कहलाता है में नैतिक के पिता की दूसरी शादी की तैयारियां चल रही हैं. इन धारावाहिकों की सोच पर गौर करें तो धीरे धीरे छोटे परदे पर कई बोल्ड विषय दिखाये जा रहे हैं. खासतौर से इससे इस नजरिये में तो जरूर बदलाव नजर आयेंगे कि एक लड़की जो मां नहीं बन सकती, उसे शादी करने का हक नहीं. या फिर एक अकेला व्यक्ति वृद्धा अवस्था में दूसरी शादी नहीं कर सकता. दरअसल, अब छोटे परदे पर भी अच्छे और जरूरी विषयों का चुनाव हो रहा है, जिससे समाज की कई बेड़ियों को टूटते हुए दिखाया जा रहा है. किसी दौर में टेलीविजन को इस तरह के मुद्दे डील करते हुए नहीं दिखाया जाता था. लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा. अब विषयों के चुनाव में बदलते दौर की तसवीर भी दिखाई जा रही हैं. वैसे विषय जो केवल पहले फिल्मों में दिखाये जाते थे. अब छोटे परदे पर आ रहे हैं. छोटा परदा अपनी बेड़ियां खुद तोड़ रहा है और शायद यही वजह है कि लोग अब फिल्मों से अधिक छोटे परदे पर भरोसा करने लगे हैं. छोटे परदे के धारावाहिकों के निर्माता अब खुद को किचन के झगड़ों तक सीमित नहीं रख रहे और न ही केवल सामाजिक सुधारक की भूमिका निभा रहे, बल्कि ऐसे मुद्दे जो प्राय: उभर कर सामने नहीं आते. वैसे मुद्दों पर भी अब प्रकाश डाला जा रहा है. और इसके लिए निर्माता निर्देशक वाकई तारीफ के हकदार हैं. इस बदलाव का स्वागत किया जाना चाहिए
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