जागरूक हुई हैं महिलाएं पर मानसिकता में खास बदलाव नहीं
जान्हवी पी पॉल , टीवी विशेषज्ञ
भारतीय टेलीविजन में महिलाओं को हमेशा टारगेट किया जाता रहा है. वजह यह है कि सबसे बड़ा दर्शक वर्ग महिलाओं का ही होता है. इसलिए उनकी मानसिकता को समझते हुए सीरियल तैयार किये जाते रहे हैं. पर एक दौर था जब केवल सास बहू टाइप के ही सीरियल बनते थे, जिसे कुछ दिनों तक तो महिलाओं ने पसंद किया. मगर फिर वे भी इनसे बोर होने लगी. अभी एक नया दौर शुरू हुआ सोशल इश्यू पर बेस्ड सीरियल्स बनाने का. मुझे नहीं लगता कि इससे महिलाओं की मानसिकता में बहुत बदलाव हुए हैं. हां, यह जरूर है कि महिलाएं जागरूक हुई हैं. अब वे अम्माजी जैसी औरतों के खिलाफ आवाज उठाने लगी हैं. किरण बेदी का सफल प्रयास अगले जनम मोह बिटिया न कीजो से कम से कम महिलाओं को यह बात समझ में आयी कि लड़कियों के साथ ऐसा भी हो रहा है. मानसिकता में जहां तक बदलाव होने की बात है मुझे नहीं लगता कि आज भी घरेलू हिंसा जैसी चीजें रुकी होंगी या किसी बहू को उसके ससुराल में पूरा आत्मसम्मान मिल रहा होगा. फिर इन दिनों फिर से सीरियल में वही रोना धोना दिखाया जा रहा है. विदाई में दो बहनों के प्यार व उनकी एकता को दिखा कर दो बहनों की शादी एक ही घर में करने के भ्रम को तोड़ा गया. पर अब उसमें बी दोनों में दरार दिखाया जा रहा है. तो फिर हम यह कैसे माने कि मानसिकता में बदलाव हुआ है. सीरियल की सार्थकता तो तभी होगी न जब हर घर की सास बालिका वधू में आनंदी की सास की तरह बन जाये न कि दादी सा की तरह.
मानसिकता में कुछ बदलाव तो आये हैं
अनु रंजन ः प्रेसिडेंट, इंडियन टेलीविजन अकादमी व ग्रेट8 मैगजीन की एडिटर
हमें ऐसे कई लेटर्स आते हैं, जिनसे हमें यह पता चलता है कि गांव व सुदूर इलाकों में जहां भी टीवी की पहुंच हो पायी है,ऐसे स्थानों में महिलाएं जागरूक हो रही हैं. वे अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेज रही हैं. देह-व्यापार के बारे में अब उन्हें जानकारी है. मीडिल क्लास फैमिली में भी अब लोग ज्वाइंट फैमिली को महत्व देने लगे हैं, क्योंकि हमारे अधिकतर सोप ओपराज में ज्वाइंट फैमिली पर जोड़ दिया जाता है. जस्सी जैसी अगर कोई लड़की है तो भी वह खुद को कॉफिंडेंट बनाये रखती है. नकुशा जैसी लड़कियां भी अब आत्मविश्वासी बन रही हैं. माही वे की माही की तरह मोटी लड़कियां भी इतनी आत्मविश्वासी हो गयी हैं कि अब वह जानती हैं कि मोटे होने के बावजूद टैलेंट की पूछ होगी. ललिया जैसी लड़कियां अपने संघर्ष से पीछे नहीं हट रहीं. बल्कि उसका डटके मुकाबला कर रही हैं. तो हम यह नहीं कह सकते कि महिलाओं की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं हुए हैं.
ज्यादा भावुक होती हैं महिलाएं
डॉ तृप्ति जयिन, राज पिछले जन्म का फेम मनोचिकित्सक
हर दिन के सोप ओपरा से महिलाएं सबसे ज्यदा अटैज्ड होती हैं. अगर साधना रोती हैं तो उनकी आंखों में भी आंसू आ जाते हैं. तुलसी विरानी के दुख से महिलाओं को भी दुख होता था. हमारे पास ऐसे कई पत्र आते हैं जिससे यह पता चलता है कि कई महिलाओं ने भगवान से मन्नतें मांगी थी कि अगर मीहिर वापस आ जायेगा तो वह प्रसाद चढ़ायेंगी. दरअसल, सीरियल के किरदार रियल लाइफ के किरदारों को ध्यान में रख कर ही तैयार किये जाते हैं. फिल्मों में हम एक्टर्स को पसंद करते हैं पर सीरियल में किरदारों को. बस यही वजह है कि महिलाओं के दिलों दिमाग पर डेली सोप ओपरा का बहुत बड़ा असर रहता है. कई बार मुझसे ऐसी महिलाएं मिलने आती हैं जो बिल्कुल रागिनी, साधना जैसी दिखना चाहती हैं. वे बालिका वधू में दादीसा के नखरें से परेशान हो जाती हैं. वे चाहती हैं कि उनके प्रकोप से आनंदी को कैसे भी बचा लिया जाये. कहानी घर घर की पार्वती भाभी एक दौर में ऐसी पॉपुलर हुई कि अच्छी भाभी की संज्ञा उन्हें दी जाने लगी. महिलाओं का किसी भी किरदार से अटैज्ड होना लाजमी है, क्योंकि वे अपने अकेलेपन का सबसे बड़ा साथी टीवी को ही मानती है.
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