20110218

किरदार मायने रखता है न कि यह कि स्टार कितना बड़ा है....



एक बेहद ही कम उम्र की फैशन डिजाइनर नंदिता साहू से. नंदिता रांची की रहनेवाली हैं. खास बात यह है कि महज चार साल के करियर में उन्हें डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी जैसे निदर्ेशक की फिल्म मोहल्ला अस्सी में स्वतंत्र कॉस्टयूम डिजाइनिंग करने का मौका मिला है. बातचीत नंदिता से.

संक्षिप्त परिचय ः पिता बैंक में कार्यरत थे. रांची के डोरंडा स्कूल व वीमेंस कॉलेज से शिक्षा. फिर स्कूल ऑफ डिजाइनिंग पुणे से डिजाइनिंग का कोर्स किया. 29 वर्षीय नंदिता ने बतौर अस्टिटेंट अपनी मेंटर पायल सलूजा को अब तक पांच फिल्मों में अस्टिट किया है.

किरदार मायने रखता है न कि यह कि स्टार कितना बड़ा है....

डॉ चंद्र प्रकाश द्विवेदी की फिल्म मोहल्ला अस्सी काशीनाथ सिंह के उपन्यास काशी के अस्सी पर बन रही है. गौरतलब है कि अस्सी मोहल्ला के उसी तर्ज पर निदर्ेशक ने उन्हीं किरदारों की परिकल्पना के साथ पूरी कहानी गढ़ी है. जाहिर है ऐसे में उन किरदारों के व्यक्तित्व को निखारने में कॉस्टयूम की अहम भूमिका होती है. किरदार अधिक से अधिक वास्तविक नजर आयें कैमरे पर. निदर्ेशक के साथ साथ यह जिम्मेदारी कॉस्टयूम डिजाइनर की भी होती है. खास तौर फिल्म अगर किसी व्यक्ति विशेष या स्थान को ध्यान में रख कर बनाई गयी है तो यह बातें अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं. इस भूमिका को बखूबी निभा रही हैं 29 वर्षीय नंदिता साहू ने. नंदिता रांची की रहनेवाली हैं. सेट पर पहुंचते ही अगर कोई निदर्ेशक यह कह ेकि मेरा नहीं नंदिता से बात करो. इसने मेहनत की है. अच्छा काम किया है. वाकई, यह गौरव की बात है.साथ ही यह रांची के लिए भी हर्ष की बात है कि यहां के सामान्य परिवार से संबध्द रखनेवाली नंदिता ने किसी बड़े इंस्टीटयूट में ट्रेनिंग न लेने के बावजूद फिल्म कॉस्टयूम डिजाइनिंग में बेहतरीन कर रही हैं. काशी के अस्सी में जिस रूप में उन्होंने सनी देओल व साक्षी तंवर को सजाया है. वह आपको पुराने अस्सी मोहल्ला के पांडेजी की याद जरूर दिला देंगे. बतौर नंदिता बताती हैं कि उन्होंने महज चार सालों में यह मुकाम हासिल किया है. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपनी मेंटर पायल सलूजा के साथ पांच फिल्मों में बतौर सहायक कॉस्टयूम डिजाइनर का काम किया. िफर काशी का अस्सी में पहली बार स्वतंत्र रूप से काम करने का मौका मिला रहा है. नंदिता बताती हैं कि निस्संदेह जब आप इतिहास के विषय पर काम कर रहे हो तो आपको बहुत बारीकियों पर ध्यान रखना पड़ता है. मैं बनारस गयी थी. वहां के लोगों से मिली. लोकेशन देखे.फिर किरदार के अनुसार कॉस्टयूम तय किया. मैं काम करते वक्त इस बात का खास ख्याल रखती हूं कि किरदार कौन है. न कि स्टार कितना बड़ा है. अस्सी के किरदारों को ध्यान में रखते हुए मैंने यह कल्पना की थी कि घाट पर बैठनेवाला कैसा दिखेगा. उस अनुसार कपड़े तैयार किये. मैं अपने युवा दोस्तों जो इस क्षेत्र में पहचान बनाना चाहते हैं बस यही कहना चाहती हूं कि तय करके आइए कि मुंबई क्यों जाना है. फोक्सड काम करें. मौके मिलते जायेंगे.


2 comments:

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