मुझे टेलीविजन जगत की उपलब्धियां ही नजर आ रही हैं. इसने भी बड़े परदे के सामने खुद को टिके रखने में बहुत मेहनत की है. एक वक्त था जब हमलोग, बुनियाद जैसे सीरियल लोगों के पसंद बने थे. पर अचानक सास-बहू, रियलिटी ने दर्शकों का टेस्ट फिर से बदल दिया था. मसाला परोसने के बाद लोगों को फिर से मिट्टी से जोड़ पाना. आसान काम नहीं था. पर, टेलीविजन जगत ने इसे कर दिखाया. उसने साबित कर दिया कि वह हाइ मीडिल क्लास के लोगों के साथ-साथ जमीन से जुड़े लोगों का भी फेवरिट बन सकता है. इन 60 वर्षों में टेलीविजन की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि अब यह छोदा परदा छोदा परदा नहीं रहा. बड़ा परदा बन चुका है. टेलीविजन की दुनिया को मैंने जितना समझा है, उससे यह बात तो बिल्कुल साफ हो गयी है कि इसकी पहुंच अब घर-घर तक पहुंच चुकी है. तभी आज ललिया को लोग अपने घर की बेटी समझ रहे हैं. हां, ललिया अब कई गांव की बेटी बन चुकी है. इसे टेलीविजन दुनिया की उपलब्धि ही कहेंगे न कि गांव की लड़की ललिया की तरह बनना चाहती है, क्योंकि वे ललिया की हिम्मत व उसके संघर्ष को देख कर बहुत कुछ सीखने की कोशिश कर रही है. बात सिर्फ इसी सीरियल की नहीं. हम पिछले कई सालों से सास-बहू के शोज देखते आ रहे थे. हां, यह बात सही है कि उसमें भी घरेलू हिंसा के मुद्दे को उठाया गया. पर क्या घरेलू हिंसा जैसे मुद्दे ओवर मेकअप, भारी ज्वेलरीज या कॉस्टयूम में कहीं छिप नहीं जाती थी. अगर घरेलू हिंसा जैसे विषयों की वास्तविकता दिखानी है तो उसकी पृष्ठभूमि भी उसी तरीके से तैयार की जानी चाहिए. जो कि अब तक नहीं हो रहा था. पर पिछले कुछ सालों में मिट्टी या जड़ से जुड़े विषयों को चुना जा रहा है. और उसमें वास्तविकता को दर्शाया जा रहा है. अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो की कहानी आम लोगों को इसलिए छूती है क्योंकि इसने लोगों को सही तरीके से न सिर्फ जागरूक किया, बल्कि इसकी पूरी पृष्ठभूमि को ही गांव में उठा कर ले गये. इस सीरियल के माध्यम से पहली बार लोगों तक यह बात पहुंची कि कैसे गरीब मां बाप मजबूरी में अपने लड़कियों को बेच देते हैं. ठीक ऐसा ही कुछ बालिका वधू की गहना के साथ भी होता है. उसके माता-पिता भी उसका व्याह उससे कई गुना बड़े उम्र के आदमी से इसलिए कर देते हैं, ताकि बदले में उन्हें कुछ पैसे मिल पायें. अब तक निस्संदेह टेलीविजन महिला प्रधान माध्यम माना जाता रहा है. पर महिलाओं से जुड़े ऐसे कई मुद्दे हैं, जिन पर अब तक प्रकाश नहीं डाला जा रहा था. यह बदलाव पिछले कुछ सालों से देखने को मिला. राजस्थान, बिहार, हरियाणा व पंजाब में ऐसे कई गांव हैं, जहां गरीबी के कारण लगातार लड़कियों का व्यापार हो रहा है. भ्रूण हत्या के सब्जेट को भी एक सीरियल में उठाया गया. एक बात तो यह कि जब हम ऐसे गंभीर मुद्दे को टेलीविजन में उठाते हैं तो हमारी एक बड़ी जिम्मेदारी यह बन जाती है कि हम कुछ ऐसा दिखाएं, जिसे देख कर लोगों को कम से कम उस विषय के बारे में जानकारी तो हो जाये. अब तक हम भ्रूण हत्या या बाल विवाह जैसे विषयों पर फिल्में या डॉक्यूमेंट्री देखते आ रहे थे. पर इन दिनों सीरियल में भी ऐसे गंभीर मुद्दे उठाये जा रहे हैं. तो, मुझे लगता है कि टेलीविजन अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को बेहतरीन तरीके से दर्शाने की कोशिश कर रहा है. ऐसी कई फिल्में हैं, जो कॉमर्शियल हैं या सिर्फ पैसे या ग्लैमर के कारण बिक रही हैं. पर आप जरा सोच कर देखिए सीरियल के माध्यम से तो हम ग्लैमर नहीं वास्तविकता बेचने में सफल हो रहे हैं. इससे यह साफ जाहिर होता है कि लोग वे चीजें देखना जरूर पसंद करते हैं जो हकीकत से ताल्लुक रखता है. काल्पनिक कहानियों की बजाय अब दर्शक सच्चाई देखना पसंद करते हैं. टेलीविजन से एक दर्शक हर दिन जुड़ता है. वह टेलीविजन के किरदारों को उसके किरदारों के नाम से ही जानता है न कि उसके असल नाम से. फिर हमें भी तो उनके साथ बेइमानी नहीं करना चाहिए. जब हमने अगले जन्म की शुरुआत की थी.तो, हमने यूं ही काम करना शुरू नहीं किया था. बकायदा डॉ किरण बेदी के साथ हम उन लड़कियों से मिले थे, जो अपने मां-बाप द्वारा बेची गयी थीं. और वह संख्या एक बड़ी संख्या है. उनसे मिल कर हमें यह एहसास हुआ था कि हम शायद टेलीविजन के माध्यम से ही समाज की ऐसी समस्याओं का कम से कम कुछ हद तक समाधान ढ़ूंढ़ पायेंगे. आप टेलीविजन को केवल टीआरपी के दम पर मत आंकें. मुझे तो खुशी है कि कम से कम एक दूसरे की देखा-देखी ही सही मगर निदर्ेशकों को यह बात समझ में आ रही है कि वस्तुपुरक चीजें दिखा कर ही वे दर्शकों को जोड़े रख सकते हैं. आनेवाला समय में टेलीविजन न सिर्फ क्रियेटिविटी के मामले में बल्कि तकनीक व शोधपरक विषयों के लिए जाना जानेवाला है, क्योंकि अब समाज से जुड़े अहम मुद्दें जो दर्शकों को छू सकते हैं, वैसे ही विषयों पर शोध किया जा रहा है, कहानी तैयार की जा रही है. इससे साफ जाहिर है कि हम टेलीविजन जगत के लोगों ने एक अच्छी पहल की है. लोगों को जागरूक किया है. समाज के प्रति हम अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. अब वैसे लोग जो यह फांकाकशी करते हैं कि क्या यार बकवास परोस रहा है, उनके मुंह पर ताला लग चुका है. सास-बहू से ऊपर उठ कर काम कर है टेलीवुड. इसके माध्यम से ही तो हम छोटे शहर से आये लोगों को बेहतरीन मौका मिल रहा है. जितने नये सीरियल आ रहे हैं हमारे लिये उतने अवसर भी तो ला रहे हैं. कितने लोगों को काम मिल रहा है. उनके सपने भी पूरे हो रहे हैं और कैरियर के रूप में भी लोग टेलीविजन सशख्त माध्यम बन रहा है. टेलीविजन के अच्छे लेखकों को फिल्मों में मौका मिला रहा है. ओवर ऑल कहा जाये तो मुझे टेलीविजन जगत की उपलब्धियां ही नजर आ रही है. इसने भी बड़े परदे के सामने खुद को टिके रखने में बहुत मेहनत की है. एक वक्त था जब हमलोग, बुनियाद जैसे सीरियल लोगों के पसंद बने थे. पर अचानक सास-बहू, रियलिटी ने दर्शकों का टेस्ट फिर से बदल दिया था.
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