हकीकत भी यही है फिल्म इंडस्ट्री में फिल्मी खानदान का बोलबाला है. पर आज के युवा हार मानना नहीं जानते. कुछ ऐसे ही युवा डायरेक्टर्स जिनका कोई बैकग्राउंड बिल्कुल फिल्मी नहीं, बावजूद इसके उन्होंने अपनी पहचान संघर्ष भरी जिंदगी से दोस्ती करके. सुनिए सफलता की कहानी उनकी ही जुबानी.
रिजेक्शन के लिए तैयार रहें
विजय लालवानी ः कार्तिक कॉलिंग कार्तिक के निदर्ेशक विजय लालवानी युवा निदर्ेशक हैं. उनका मानना है कि अगर आपका फिल्मी फैमिली बैकग्राउंड नहीं है तो आपकी स्ट्रांग स्किप्ट आपको प्रोडक्शन हाउस में जाने का मौका दिला सकती है. विजय का मानना है कि इस इंडस्ट्री भले ही राइटर्स को महत्व न दिया जाता हो. हां, मगर उसके आइडिया की बहुत कद्र है. अपने शुरुआती दौर के बारे में लालवानी बताते हैं कि मैं पुणे का रहनेवाला हूं और मुंबई आने के बाद सबसे पहले मुझे रोजगार ढूंढना जरूरी था, ताकि मैं अपना खर्च निकाल सकूं. मैं शुरू से लिखने का शौकीन रहा. यह मेरा लक था कि मुझे ओजिलवी एंड मैथर में नौकरी मिल गयी. वहां दिन भर काम करने के बाद मैं घर पर आता और स्क्रिप्ट लिखा करता था. मैंने लगातार स्क्रिप्ट लिखी. पर कोई फिनांसर नहीं मिला. कार्तिक कॉलिंग कार्तिक मेरी पांचवीं स्क्रिप्ट थी और इस बार मुझे फरहान अख्तर के रूप में प्रोडयूसर मिले. मैंने मुंबई में रहते बहुत कुछ सीखा कैसे लिखते हैं, कैसे सोचते हैं और फिर कैसे आपकी मेहनत को रिजेक्शन का बोर्ड लिखा मिल जाता है. मैंने यहां 10 साल अपने संघर्ष को दिये पर अब भी मैं इसे शुरुआत ही मानता हूं
छोटे शहरों से सपने लेकर आनेवाले युवाओं को मैं बस यही कहूंगा कि अगर आपमें काबिलियत है तो फिर डट कर काम करते रहना होगा.
नये हो तो मेहनत करनी पड़ेगी
युगिंदर वीवी ः हैदराबाद से निदर्ेशक बनने का ख्वाब लेकर आये युगिंदर वीवी ने शुरुआती दौर में केतन मेहता, श्याम बेनगल, महेश मथई जैसे निदर्ेशकों को अस्टिट किया. अपनी जर्नी के बारे में युगिंदर बताते हैं कि इस इंडस्ट्री में हर कोई नये लोग में पैसे लगाने से डरते हैं. मैंने 10 स्क्रिप्ट लिखे और कई लोगों का दरवाजा खटखटाया. पर मुझे प्रोडयूसर नहीं मिले. अंततः मैंने खुद की इंडिपेंडेंट फिल्म बनायी.अगर इस इंडस्ट्री में बने रहना है तो आपको कड़े संघर्ष के लिए तैयार होना होगा. जिल्लत को भी अपनी जिंदगी बनानी होगी, पर अगर आपमें वह बात है तो मुंबई को आपको जरूर अपनायेगी. जल्दबाजी न करें.खुद को समय दें. पेसेंस रखें.
रोज करता था 100 फोन कॉल्स
डेबाशिष मखिजा ः कोलकाता के रहनेवाले डेबाशिष एक पेंटिंग आर्टिस्ट भी हैं. बंटी बबली में बतौर अस्टिटेंट डायरेक्टर रह चुके मखिजा कोलकाता से डायरेक्टर बनने का ख्वाब बुन कर आये थे. मखिजा बताते हैं कि शुरुआती दौर में मैं गोरेगांव में नौ लड़कों के साथ रूम शेयर करके रहता था. छह से आठ महीनों तक मैंने कुछ भी नहीं कमाया था. मैं वहां के पीसीओ में खड़े होकर हर दिन लगभग 100 कॉल्स किया करता था. फिर मुझे अनुराग कश्यप के साथ काम करने का मौका मिला. ब्लैक फ्राइडे में मैं उनके साथ रहा. उन्हें अपनी स्क्रिप्ट दिखायी. उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने कई स्क्रिप्ट लिखी पर उन्हें कोई प्रोडयूसर नहीं मिले. फिर मैंने खुद से फिल्में डायरेक्ट करनी शुरू की. अनुराग की इस बात से मुझे बल मिला और मुझे लगा कि मैं कुछ अपना कर सकता हूं. मैंने किया. मेहनत की और लगातार कर रहा हूं. जो युवा इस क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं वे अगर मुंबई आये तो पूरी तैयारी के साथ आयें. मैं तो बस यही सलाह दूंगा. यहां कब आपकी किस्मत क्लीक कर जाये कहा नहीं जा सकता.
अनुप्रिया अनंत
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