20110215

दादी सा और सिनेमा का सम्मोहन


वर्षों बाद इस हफ्ते बालिका वधू में दादी सा के परिवार में खुशहाली नजर आयी. दादी सा पहली बार अपनी बहुओं को लेकर सिनेमा हॉल गयी हैं. जय संतोषी मां देखने. सिनेमा हॉल के बाहर जय मां संतोषी का बैनर लगा देख कर वे खुद मां संतोषी को प्रणाम करती हैं और अपनी बहुओं से भी ऐसा करने को कहती हैं. अकड़ू दादी सा के सिनेमा हॉल में प्रवेश करते ही संतोषी मां की फिल्म का पोस्टर हटा कर फिल्म दबंग का पोस्टर लगा दिया जाता है. चूंकि वह दिन शुक्रवार है. चूंकि दादी सा पहली बार सिनेमा हॉल आयी हैं. उन्हें पता नहीं है कि सिनेमा हॉल में होता क्या है. उनके सामने पॉपकॉर्न आते हैं. वे बड़ी मासूमियत से पूछती हैं कि ये क्या है. आनंदी बताती है कि वह मकई के फुले हैं दादी सा. सिर्फ सिनेमा हॉल में ही मिलते हैं. फिर दबंग परदे पर जारी है. अचानक दादी सा को लगता है कि आखिर विज्ञापन कब खत्म होगा. पूछने पर पता चलता है कि वहां दबंग दिखाई जा रही है. पहले तो वह आनंदी पर नाराज होती है. फिर चुलबुल पांडे की चुलबुली अदा का जादू दादीसा पर भी चल जाता है. और वे मुन्नी बदनाम के गीत पर भी मस्ती करती हैं. बालिका वधू के इस खास एपिसोड में वाकई दबंग का प्रमोशन नहीं बल्कि दादी सा की मासूमियत नजर आयी है. उनका बचपना नजर आया है. किसी बच्चे को जब पहली बार किसी बोलनेवाली गुड़िया दे दी जाती है तो जैसे हाव भाव उसे बच्चे के होंगे कुछ ऐसे ही भाव दादी-सा के चेहरे पर भी नजर आये. आमतौर पर खड़ूस दिखनेवाली दादी सा का नरम दिल सिनेमा हॉल में नजर आता है. उनकी मासूमियत और उनके चेहरे पर खुशी देख कर वाकई कहा जा सकता है सिनेमा में एक अलग तरीके की आकर्षण शक्ति है. या यूं कह लें कि सम्मोहन विधा है सिनेमा. तभी तो दादी सा जैसे सख्त मिजाज इंसान को भी उसने मुन्नी बदनाम के गीत देखने पर मजबूर कर दिया. जरा गौर करें तो कुछ ऐसा ही आम जिंदगी में भी तो होता है. हमारे माता-पिता शुरू से हमें सिनेमा देखने से रोकते हैं, चूंकि वह जानते हैं कि सिनेमा वह कीड़ा है जो अच्छे अच्छे लोगों को अपना दीवाना बना देती है. हमें रोकने की पीछे एक खास वजह यह भी थी कि वे खुद उस उम्र में सिनेमा देखने की लत नहीं छोड़ पाते थे. शायद यही वजह है कि बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक में सिनेमा का करिशमाई जादू आज भी बरकरार है. लोग सिनेमा की कहानी उससे जुड़े किरदार को देखने के लिए हमेशा आतुर होते हैं. उनके लिए हर किरदार, कलाकार भगवान हैं. भारत में फैन द्वारा दिखाये गये कारनामे यूं ही नहीं होते. हर शुक्रवार यूं ही फिल्में रिलीज नहीं होतीं. यह सिनेमा का जादू ही है जिसने गांव में तंबू सिनेमा का उदय कराया. तंबू गाड़ कर ही सही लेकिन लोगों ने सिनेमा देखना नहीं छोड़ा. देव आनंद को सदाबहार हीरो, सदी का महानायक अमिताभ, ड्रीम गर्ल सबकुछ इस मन मोहिनी सिनेमा की ही तो देन है.

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