हाल ही में जीटीवी पर बालाजी टेलीफिल्मस ने एक नया ट्रेंड शुरू किया. डेली सोप ओपरा व सास-बहू-बेटियों से हट कर इस बार केशव पंडित के रूप में दर्शकों को फिर से पुराने दिनों की याद तरोताजा कराने की कोशिश की गयी है. कई सालों के बाद एक बार फिर से टेलीविजन पर उपन्यास आधारित कहानी लौटी है. उपन्यास पर आधारित टेलीविजन सीरीज के रोचक सफर पर एक नजर
दक्षिण भारत की
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तहकीकात
करमचंद जासूस
केशव पंडित
व्यॉमकेश बक्शी
चंद्रकांता
ब्यॉमकेश बक्शी थे फेवरिट ः शरवर अहुजा
मैं ब्यॉमकेश बक्शी के किसी भी एपिसोड को मिस नहीं करता था, क्योंकि वह मेरा पसंदीदा सीरियल था. जिस तरह से रजीत कपूर ने ब्यॉमकेश बक्शी के किरदार को सहजता प्रदान की थी. वह कम ही लोग कर पाते हैं. मुझे नोबेल पढ़ने का शौक शुरू से रहा है. खासतौर से डिटेक्टिव नोबेल अधिकतर पढ़ता रहा हूं. केशव पंडित के रूप में कई वर्षों के बाद लोगों को उपन्यास पर आधारित सीरिज देखने का मौका मिलनेवाला है. यह अलग अनुभव होगा. जब भी किसी उपन्यास पर सीरियल का थीम तैयार किया जाता है.मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. खुद मेरे लिए केशव पंडित का किरदार निभाना और अधिक कठिन हो गया था, क्योंकि लोग उस किरदार की तुलना उपन्यास के किरदार से करने लग जाते हैं. जबकि यह व्यवहारिक बात है कि जब भी उपन्यास को कैमरे पर दिखाया जायेगा, बदलाव आयेंगे ही. प्रायः डेली सोप ओपरा में कई किरदार होते हैं. इसकी वजह से कहानी की बागडोर सभी किरदारों पर बराबरी की होती है. लेकिन जब बात उपन्यास की आती है तो प्रायः एक किरदार को सबसे सशक्त प्रस्तुत किया जाता है. वही किरदार कहानी को कामयाब, रोचक या फिर असफल बना देता है. इसके अलावा उपन्यास पर आधारित सीरियल बनाने में इस बात का भी ख्याल रखना पड़ता है कि लेखक किसी भी तरह आहत न हों. उन्हें कहीं से भी यह न लगे कि उनके साथ न्याय नहीं किया जा रहा.
कहानी को कैमरे की नजर से भी तो देखें ः वेद प्रकाश शर्मा
जहां एक तरफ थ्री इडियट्स के रिलीज होने के साथ ही चेतन भगत व निदर्ेशक के बीच क्रेडिट को लेकर तू तू मैं मैं होती रही. बार-बार लेखकों के साथ न्याय न होने का मुद्दा तुल पकड़ता रहता है. ऐसे में वेद प्रकाश शर्मा एक ऐसे लेखक हैं, जिन्हें बड़ा परदा व छोटा परदा दोनों ही रास आता रहा है. उनके लोकप्रिय उपन्यास पर अब तक कई फिल्में भी बन चुकी हैं. हाल ही में जीटीवी पर शुरू हुआ शो केशव पंडित उनकी लिखी गयी किताब पर आधारित है. वेद प्रकाश का मानना है कि ऐसा अकसर होता रहा है कि फिल्म या सीरियल बन जाने के बाद लेखक यह शिकायत करते हैं कि उन्हें सही तरीके से क्रेडिट नहीं मिला या उनकी कहानी से छेड़छाड़ हुई. मैं खुद को इस मामले में लक्की मानता हूं. मेरा मानना है कि आपकी कहानी कलम से निकली है, लेकिन कैमरे पर वह कैमरे की नजर से देखी जानी चाहिए. उनका मानना है कि कलम सिर्फ कहती है. लेकिन कैमरे की नजर से न सिर्फ कहानी चलती है, वह बोलती भी है और दिखती भी है. ऐसे में बदलाव होने तो संभव है.
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