काशीनाथ सिंह के बहुचर्चित उपन्यास मोहल्ला अस्सी का फिल्माकन
डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी बना रहे हैं फिल्म
सनी देओल हैं मुख्य किरदार में
निकेला नामक इतालवी महिला ने किया इटली भाषा में काशी का अस्सी का अनुवाद
अनुप्रिया अनंत
काशी का अस्सी, अपना मोर्चा व कई लोकप्रिय उपन्यास व कहानी के रचियेता काशीनाथ सिंह उम्र के 82 के पड़ाव पर हैं. लेकिन इसके बावजूद उनके विचार व चेहरे पर मुस्कान किसी नये युवा से कम नहीं हैं. वे आज भी धोती व खादी का कुर्ता पहनते हैं. लेकिन वह नये विचारों व कहानीकारों का भी प्रोत्साहन करते हैं. उनके चेहरे पर आज भी वह तेज है. काशी का अस्सी में प्रयोग की गयी भाषा पर मचे बवाल के बारे में वह कहते हैं कि बवाल तो मचा था लेकिन लोग जेरोक्स भी करा रहे थे. अब वही भाषा बोलते सनी देओल सिल्वर स्क्रीन पर नजर आयेंगे. काशीनाथ बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि इस किताब में बनारस का ऐसा गुर रहस्य छुपा है कि सभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.
पिछले दिनों इटली से आयी एक निकेला नाम की महिला मिली और महिला ने इतालवी में उसका अनुवाद भी किया है. जो काशी की आत्मा को जानना चाहता है. बनारस को जानना चाहता है. उसके लिए यह किताब रिकंम्ड की जाती है. मैं यहां मुंबई आया. मैंने कम ही ऐसे निर्माता को देखा है तो बौध्दिक स्तर पर भी जानकारी रखते हों. लेकिन निर्माता विनय तिवारी ने भी किताब पढ़ी और समझ दिखायी. द्विवेदीजी से पहले मेरे पास कई ऑफर आये थे. अभी भी आ रहे थे. कई निर्माताओं ने मुझसे संपर्क किया था. लेकिन मैंने तय कर लिया था. कि निदर्ेशक यहीं होंगे. मैं मानता हूं कि लेखक कलम से लिखता है और फिल्मकार कैमरे से दिखाता है. तो निश्चित तौर पर फिल्म विजुअल माध्यम है तो उसमें थोड़ा विजुअल बदलाव करना तो स्वाभाविक है. और मैं मानता हूं कि द्विवेदी जी की अच्छी समझ है. मुझे अपनी शर्त रखने की जरूरत ही नहीं. वे कहानी के साथ पूरा न्याय कर रहे हैं. मैंने स्वयं मुंबई आकर फिल्मसिटी पर इसका सेट देखा. मुझे लगा ही नहीं कि मैं दो दिनों से बनारस में नहीं अस्सी में नहीं मुंबई में हूं. द्विवेदी ने सेट पर वह हर छोटी चीजें, लोकेशन का ध्यान रखा है जो वास्तविकता में किताब के काशी का अस्सी में वर्णित है. मैं मानता हूं कि द्विवेदी की फिल्म इस मिथक को तोड़ेगी कि हिंदी साहित्य की किताब पर आधारित फिल्में नहीं चलतीं. यह फिल्म जरूर सराही जायेगी. चूंकि काशी का अस्सी जानना चाहते हैं. अगर विदेश से आकर लोग काशी का अस्सी में दिलचस्पी दिखा सकते हैं तो यहां के लोग क्यों नहीं. दूसरी बात मैं मानता हूं कि किताब में जो भाषा प्रयोग की गयी है वह बनारस की भाषा है. तो हम क्या कर सकते हैं. द्विवेदी की फिल्म में भी सनी वही भाषा बोलते नजर आयेंगे.
काशी की आत्मा को समझा द्विवेदी ने
"मैं मानता हूं कि काशी का अस्सी बनारस की आत्मा है. और डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी से मिलने के बाद उनसे बातचीत करने के बाद मुझे लगा कि फिल्मी दुनिया में मुश्किल से ऐसे लोग मिलते हैं जिन्हें इतिहास का ज्ञान हो. चंद्रप्रकाश ने मेरी किताब की आत्मा को पकड़ा. मैं मंत्रमुग्ध हो गया और मैंने हां कर दी"काशीनाथ सिंह , उपन्यासकार.
तो काशी क अस्सी से ही:
ReplyDelete" जो मजा बनारस में
न पेरिस मे न फारस मे ।
जो मजा बनारस में
ReplyDeleteन पेरिस मे न फारस मे
.... सही कहा ....
हाँ तो ई बढियां है काशीनाथ जी बिलकुल ठेठ बनारसी अंदाज में में लिखे हैं ''कशी का अस्सी '' उम्मीद करते हैं दिवेदी जी आत्मा जीवित रखेंगे..फिल्म में बनारस की...
ReplyDeleteहम तो किताब अभी पढ़ नहीं पायें हैं लेकिन जल्दी ही लाने वाला हूँ...और पढने वाला भी...