20110209

बनावटी लोकेशन होते तो ईमानदारी नहीं झलकती फिल्म में



भोर का सांझ का लाल है रंग

लेखक भी, निदर्ेशक भी, एडिटर भी ः बेला नेगी

उत्तराखंड की खूबसूरत पहाड़ियों के बीच से निकल कर एफटीआइ जैसे संस्थान से कोर्स पूरा करने के बाद भी उन्होंने महसूस किया कि अपनी पहली फिल्म वह अपने होम टाउन में बनायेंगी और दाएं या बाएं के रूप में एक ईमानदार कहानी लोगों के सामने आयी. बात हो रही है बेला नेगी, जिन्होंने परदे के पीछे एक लेखक, निदर्ेशक व एडिटर की भूमिका एक साथ निभायी.

उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ों के बीच एक लाल रंग की कार आती है और आम सी जिंदगी जीनेवाले एक परिवार की कहानी बदल जाती है. अब सूर्योदय से सूर्योदय तक वह कार उस परिवार का हिस्सा बन जाती है. जरा सोचिए, कैसा होगा वह दृश्य. पथरीली पहाड़ी व संकड़ी सड़कें जहां आमतौर पर गाड़ियां नहीं पहुंच पातीं. वहां अगर किसी को लॉटरी में कार मिल जाये. बेला नेगी ने अपनी कल्पनाशीलता की कूची से निकलते उसी रंग से अपने होम टाउन उत्तराखंड की कहानी दाएं या बाएं फिल्म के माध्यम से प्रस्तुत की है. फिल्म में भावना, परिवार, नादानी व किरदारों की मासूमियत इसके बिल्कुल ईमानदार सिनेमा बनाते हैं. बेला नेगी ने बतौर निदर्ेशिका इसी फिल्म से पहली शुरुआत की है. उन्होंने इस खूबसूरती कहानी कहने के लिए परदे के पीछे वह सारी जिम्मेदारी निभाई, जो आमतौर पर कई व्यक्तियों द्वारा निभाई जाती है. उन्होंने फिल्म की कहानी स्वयं लिखी. निदर्ेशन का जिम्मा उठाया. साथ ही खुद फिल्म का संपादन भी किया. इसके अलावा उन्होंने बिना किसी संकोच फिल्म की माकर्ेटिंग में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. बेहद सहज शब्दों में बेला कहती हैं कि फिल्ममेकर की जिम्मेदारी तभी पूरी हो सकती है जब वह सही तरीके से अपनी कहानी लोगों तक पहुंचा सके. वे जल्द ही एक महत्वपूर्ण विषय पर कहानी लिखने जा रही हैं. वे मानती हैं कि वैसी फिल्में जरूर बननी चाहिए, जो वाकई में ईमानदारी से आम लोगों की कहानी कहे. बेला बताती हैं कि उन्होंने कभी सीरियल के लिए काम नहीं किया. लेकिन विज्ञापनों के काम से जुड़ी रही हैं. एफटीआइआइइ से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने रेणु सलुजा के साथ किया. हिंदी फिल्म जगत में रेणु सलुजा बेहतरीन फिल्म संपादकों में से एक मानी जाती हैं. इसके बाद उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया.बतौर बेला हां, यह मुश्किल था कि हमने वैसे कई कलाकारों को फिल्म में शामिल किया जिन्होंने वाकई कभी कैमरा फेस नहीं किया था. लेकिन फिल्म की वास्तविकता दर्शाने के लिए उनका चयन जरूरी था. मुझे खुशी है कि मैंने किसी बनावटी किरदारों के साथ किसी बनावटी गांव की कहानी किसी सेट पर जाकर नहीं बल्कि वास्तविक लोकेशन पर जाकर बनाई है. मैं खुश हूं. निस्संदेह इसमें कई परेशानियां हुईं. लेकिन एक फिल्म मेकर के रूप में आपको ऐसी परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए. बेला मानती हैं कि उत्तराखंड में कई खूबसूरत लोकेशन हैं और वहां पर बनाई गयी फिल्मों को देख कर बाकी निदर्ेशक भी वहां जाकर शूटिंग करेंगे और इससे उत्तराखंड के पर्यटन को और भी बढ़ावा मिलेगा.

1 comment:

  1. इस लड़की ने भी ना बड़ी मेहनत से काम किया है..इस फिल्म में ना जाने कोंन सा टानिक लेके बने है और वो भी पजली फिल्म..हैरत की बात है...लेकिन फिल्म मजेदार है...एक नया सिनेमा लिखा जा रहा है बन रहा है...

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