20110207

इम्तियाज अली ने सुझाया था जमशदेपुर का नाम , वरना गाजियाबाद में शूट होती उड़ान


कान फिल्म महोत्सव के अन सटर्ेन रिगार्ड श्रेणी में चयन होने व सराहे जाने के बाद भारतीय दर्शकों को जल्द से जल्द उड़ान देखने की इच्छा है. 16 जुलाई को यह फिल्म भारत में रिलीज हो रही है. फिल्म की पृष्ठभूमि, किरदार व दृश्यों का झारखंड के जमशेदपुर से खास लगाव है. फिल्म की पूरी शूटिंग भी यही पूरी की गयी है. साथ ही इस फिल्म में झारखंड के ही कई युवा प्रतिभाओं को निखरने का भी मौका दिया. फिल्म की कहानी का जमशेदपुर से जुड़ाव, कान में उड़ान व उड़ान के निर्माण से जुड़े पहलुओं पर निदर्ेशक विक्रमादित्य मोटवाने व निर्माता अनुराग कश्यप ने अनुप्रिया अनंत से विशेष बातचीत की

गाजियाबाद थी असल पृष्ठभूमि

भले ही फिल्म उड़ान का निर्माण वर्ष 2010 में पूरा किया गया हो. मगर वास्तविकता यह है कि वर्ष 2003 में ही कहानी ने असल रूप ले लिया था. दरअसल, विक्रम ने यह कहानी गाजियाबाद शहर को ध्यान में रख कर लिखी थी. निदर्ेशक विक्रमादित्य बताते हैं कि स्क्रिप्ट लिखने बाद मैंने इसे अपने दोस्त इम्तियाज व अनुराग कश्यप को दिखाया. इम्तियाज ने पूरी कहानी सुनने के बाद विक्रम से कहा कि यार मुझे यह पूरी फिल्म जमशदेपुर की दिख रही है. तू इसे गाजियाबाद में न बुन कर जमशेदपुर में बना. इम्तियाज की बात सुनने के बाद मैं जमशेदपुर गया. इम्तियाज के घर पर रुका. वहां उनके भाई साजिद अली के साथ जमशेदपुर में लोकेशन की तफ्तीश की. घूमने व सोचने के बाद वाकई मुझे लगा कि मेरी कहानी के माध्यम से जमशेदपुर बिल्कुल सही चुनाव था. सो, हमने निर्णय लिया कि हम पूरी शूटिंग यही जमशेदपुर में ही करेंगे. जमशेदपुर के लगभग हर जगह पर हमने शूटिंग की है. केडफ्लैक्स, जुबली पार्क, टेल्को, कामा, लिंकिंग रोड के कई लोकेशन हमने फिल्म में दिखाये हैं. हमने जमशेदपुर को ध्यान में रखते हुए कहानी की भाषा बदली. जिस तरह जमशेदपुर में लोग हम कह कर बात करते हैं, हमने पूरी स्क्रिप्ट में उसे शामिल किया.

यंग सिटी है जमशेदपुर, लेकिन अवसर व माहौल की कमी

फिल्म के निदर्ेशक विक्रमादित्य मानते हैं कि जमशेदपुर यंग सिटी है. यहां के युवाओं में प्रतिभा की कमी नहीं. वे जानकार हैं. उनके पास चीजों की ठोस जानकारी है, बस यहां माहौल व अवसरों की कमी है. शायद यही वजह है कि एक वक्त के बाद उन्हें अपना शहर छोड़ कर बड़े-बड़े शहरों में जाना पड़ता है. अगर यहां अवसर हों तो जमशेदपुर किसी बड़े शहर से कम नहीं.

विद्यार्थी में दिखी सीखने की जिज्ञासा

विक्रम बताते हैं कि फिल्म की प्रोडक्शन के वक्त करीम सिटी के मास कम्युनिकेशन के बेहद प्रतिभाशाली हैं. उनमें सीखने की जिज्ञासा भी है और काम करने का हुनर भी. वहां के बच्चों में अपने क्षेत्र की ठोस जानकारी थी. उनमें ही से ही एक विकास ने पूरी शूटिंग में हमारा बहुत सहयोग किया. उसने हमें खासतौर से जमशेदपुर की शैली को फिल्म के दृश्यों में उतारने में हमारी मदद की. वह हमें सीन के दौरान बताता रहता है कि सर यहां गलत है. आप ऐसे करें तो बेहतर होगा. मैं उससे बहुत प्रभावित हूं.

लेखकों का सम्मान नहीं किया हिंदी सिनेमा जगत की सबसे बड़ी कमजोरी

विक्रम का मानना है कि हिंदी सिनेमा जगत की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि हमें अच्छी तरह पता है कि फिल्म की कहानी ही फिल्म का सबसे अहम हिस्सा है. लेकिन इसके बावजूद हम अपने लेखकों को सम्मान नहीं देते. यह हमारी सबसे बड़ी विडंबना है. लोग फिल्म बनने के बाद फिल्म के निदर्ेशक या नायक-नायिकाओं की प्रशंसा करते हैं. जबकि वास्तविकता यह है कि अच्छी स्क्रिप्ट के बिना अच्छी फिल्म बन ही नहीं सकती.

कान तक का सफर सोचा नहीं था

मेरी पहली फिल्म को इतनी बड़ी उपलब्धि मिली, इसके बारे में कभी सोचा नहीं था. वहां के दर्शकों ने जब फिल्म देखी तो उनकी आंखों में आंसू थे. वे कह रहे थे कि यह हम सबकी कहानी है. भविष्य में यही आशा है कि अच्छी कहानियों पर फिल्में बनाऊं.

हर जेनरेशन की कहानी है उड़ानः अनुराग

फिल्म के निर्माता अनुराग कश्यप का मानना है कि उड़ान हर जेनरेशन की कहानी है. उड़ान हम सबके बीच की ही कहानी है. हर वर्ग के दर्शक इसे देख कर खुद से इसे जुड़ा पायेंगे. रिश्तों की कहानी है. अनुराग बताते हैं कि फिल्म पूरी तरह विक्रम की रचना है. फिल्म का नाम उड़ान विक्रम की मां ने वर्ष 2003 में ही रख दिया था. हर सभी दोस्तों ने जब उड़ान की कहानी सुनी थी, तो हम कहीं न कहीं हर सीन में खुद को रख कर देख रहे थे.

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