ऐश्वर्या की आंखों, शाहरुख की एक्टिंग, रितिक व सलमान की बॉडी व सोनम कपूर के बालों के फैन हैं दर्शक.
भले ही हम अपने देश में इसलामी देशों के कलाकारो का अभिनंदन करना अपनी तौहीन समझते हों. लेकिन वहां के दर्शक हिंदी सिनेमा के कलाकारों को बेहद तवज्जो देते हैं. ईरान, पाकिस्तान व काबुल के कई ऐसे शहर हैं जहां, हिंदी सिनेमा के दर्शकों की तादाद है. इसलामी दर्शकों के हिंदी सिनेमाई प्रेम का उल्लेख कर रही हैं अनुप्रिया अनंत
विश्व के किसी भी कोने में हिंदुस्तान की जिक्र होने का मतलब है हिंदी सिनेमा व उनके अभिनेताओं का जिक्र होना. आम लोगों की नजर से अगर लोकप्रियता की बात की जाये तो हमारे देश से भी अधिक प्रशंसक आपको बाहरी देशों में मिल जायेंगे. खासतौर से इसलामी देशों में दर्शकों व प्रशंसकों की संख्या बहुत ज् यादा है. भारत कैसा है. यहां के लोग कैसे हैं और कैसा दिखता है भारत. इसकी कल्पना लोग हिंदी फिल्मों में दिखाये गये भारत के दृश्यों के आधार पर ही करते हैं.
पुराने जमाने की हीरोइनों के बालों की दीवानी हैं लड़कियां
इंटरनेट पर आधारित एक आलेख में एक हिंदी पत्रकार ने उनके सिनेमा प्रेम का उल्लेख किया है. उन्होंने उल्लेख किया है कि कैसे ईरान के एक शहर आस्त्रा में बस अड्डे पर एक रिटायर्ड बस ड्राइवर व उनके परिवार के लोग आज भी फिल्म गाइड कई बार देख चुके हैं. यहां तक कि वहां की कई लड़कियां अपना मेकअप भी हिंदी सिनेमा की अदाकाराओं को देख कर करती हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि पूरे विश्व में भले ही तकनीकी या निदर्ेशन या अभिनय के मामले में हमारे कलाकार पीछे हों लेकिन लोकप्रि.यता के मामले में के हॉलीवुड के स्टार्स यहां तक कि खुद अपने देश के स्टार्स को पीछे छोड़ देते हैं. खासतौर से पुराने जमाने के कलाकार आज भी इसलामी देशों के लोगों के जेहन में है. वहां कई बार शादियों में कुर्ता बरेलीवाला, उस पर मोतियन की माला, ऐ मेरी जोहर जफी जैसे गीत बजाये जाते हैं. आश्चर्यजनक बात यह है कि इसलामी महिलाओं के खूबसूरत बालों की चर्चा पूरे विश्व के लोग करते हैं. और वहां की महिलाओं में इस बात की खास जिज्ञासा होती है कि हिंदुस्तानी अदाकाराओं के बाल इतने घने, लंबे कैसे होते हैं.
सीडी के माध्यम से देखते हैं फिल्में
तेहरान व तबरेज जैसे बड़े शहरों के अलावा यहां के कस्बों में आज भी छोटी-छोटी दुकानों में मुगलएआजम व केएल सहगल के गीत सुनाई देते हैं. इनके हिंदी सिनेमा प्रेमी जुनून की खास बात यह है कि वे सिर्फ मुसलिम कलाकारों के ही प्रशंसक नहीं, बल्कि हिंदू कलाकारों के प्रशंसकों की संख्या ज्यादा है. ईरान के ही इस्फाहन नामक एक स्थान पर आज भी एक ऐसी दुकान है, जहां पुरानी व क्लासिक फिल्मों की सीडी मिलती है और घरेलू महिलाएं दोपहर के वक्त अपना काम निबटाने के बाद उन फिल्मों को घर पर देखा करती हैं. खासतौर से पुराने पीढ़ी के लोगों को राजकपूर, सुरैया, ऋषि कपूर, राजेश खन्ना देव आनंद पसंद हैं तो नये जमाने के युवा व बच्चे रितिक रोशन, शाहरुख व सलमान के दीवाने हैं. वहां के दर्शकों व पाठकों की पसंद का ख्याल रखते हुए भी हिंदी सिनेमा जगत के स्टार्स को वहां के मैगजींस के कवर पर खास तवज्जो दी जाती है. अपने देश के सिनेमा की तारीफ करते हुए वे हिंदुस्तानी कलाकारों की तारीफ में दो शब्द लिखने से भी गुरेज नहीं करते.
अफगानिस्तान की गलियों में घर आया मेरा परदेसी
भले ही उनकी मातृभाषा हिंदी न हो. लेकिन वे हिंदी फिल्में देखने से गुरेज नहीं करते. बात हो रही अफगानिस्तानी दर्शकों की. यहां आज भी हिंदी फिल्मों के कलाकारों की तूती बोलती है. खासतौर से पुरानी फिल्मों के संगीत के दीवाने हैं लोग. लोग भले ही बोलने में टूटी फूटी हिंदी का प्रयोग करते हों. लेकिन बात जब सिनेमा की आती है तो वे धमर्ेंद्र, दिलीप कुमार व राजकपूर की कई फिल्मों के नाम गिनवा देते हैं.
पुरानी फिल्में है अधिक पसंद
यहां के दर्शकों का मानना है कि नयी फिल्मों की बजाय वे अपने बच्चों को पुरानी हिंदी फिल्में दिखाना पसंद करते हैं, क्योंकि नयी फिल्मों में इन दिनों सेक्स व असभ्यता ज्यादा परोसी जा रही है. पुरानी हिंदी फिल्में सभ्यता व संस्कृति से लबरेज होती थीं. यहां गौर करनेवाली बात यह है कि हमारे यहां जहां नयी पीढ़ी पुरानी फिल्मों के गीत भी याद नहीं रहती और न ही पुराने जमाने के कलाकारों में उनकी कोई दिलचस्पी है. वही हमारी सिनेमा सभ्यता से वहां के लोग अधिक प्रभावित नजर आते हैं.
नहीं मिलती तवज्जो
जरा सोचिए कितनी दुखद बात है कि हमारे देश में बाहर के देशों से आये किसी फिरंगी या विदेशी तकनीशियन, म्यूजीशियन को पूरे सम्मान के साथ इंडस्ट्री स्वीकारती है. लेकिन अगर किसी इसलामी देश से कोई आये, तो उनकी प्रतिभा की तौहीन की जाती है. बावजूद इसके कभी हिंदी सिनेमा जगत इस बारे में नहीं सोचता कि इन देशों को भी अपने व्यापार का हिस्सा बनाया जा सकता है. आज भी यहां के सिनेमाघरों में फिल्में नहीं लगतीं. यह सारी फिल्में सीडी के माध्यम से लोगों के घर-घर पहुंचती है. अगर दोनों देश इस पर सोच विचार करे तो हो सकता है कि हिंदी सिनेमा जगत को आय का एक नया स्रोत ही मिल जाये.
इसलामी देशों में सर्वाधिक लोकप्रिय सिनेमा व कलाकार
शाहरुख खान, संजय दत्त, सलमान खान, रितिक रोशन, ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा, सोनम कपूर.
पुराने कलाकार ः दिलीप कुमार, वैजयंती माला, राजकपूर, मनोज कुमार, प्राण.
फिल्मों में ः गाइड, आग, बरसात, देवदास, दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे, हम आपके हैं कौन.
हेमामालिनी नहीं मालालानी कहिए
अफगानिस्तान में लोग हेमामालिनी के बड़े प्रशंसक हैं और वहां के लोग उन्हें मालालानी कहते हैं. वे मुमताज के भी बड़े प्रशंसक हैं. डीवीडी में भी हिंदी फिल्मों की डीवीडी अधिक नजर आती है.
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