आज न तो वर्ल्ड टेलीविजन डे है और न ही दूरदर्शन की वर्षगाठ. इसके बावजूद आज दूरदर्शन के शोज या उनके किरदारों पर बातचीत क्यों? इसकी प्रासंगिकता क्या है. दरअसल, वर्तमान में जबकि देश में कई एंटरटेनमेंट चैनलों की शुरुआत हो चुकी है. इसके बावजूद दूरदर्शन के कुछ ऐसे खास किरदार, सीरियल व शोज हैं, जिन्हें लोग आज भी नहीं भूले. भले ही अब बमुश्किल कभी हमारा रिमोट का बटन दूरदर्शन चैनल पर आकर ठहर जाता हो. लेकिन आज भी दर्शक, खासतौर से युवा दर्शकों के दिलों में भी कुछ ऐसी स्थापित छवियां व लोग हैं, जो हमेशा उनके दिलों के करीब रहेंगे. वे युवा जिनका जन्म दूरदर्शन के हमलोग धारावाहिक के बाद हुआ है. वे मानते हैं कि इनका रीमेक नहीं हो सकता. फिर चाहे वह युवा मेट्रो का हो, किसी छोटे शहर का या गांव का. कुछ ऐसे ही किरदारों व शोज के पर "अनुप्रिया अनंत" प्रस्तुत कर रही हैं सीधा प्रसारण.
स्थान ः पृथ्वी थियेटर. रात के आठ बजे. एक प्ले खत्म होने के बाद सभी कॉफी पर वही बैठ कर बातें करते हैं. दोस्तों की इस टोली में हाइ-फाइ, ब्रिटिश एक्सेंट में बात करनेवाले लड़के-लड़कियां हैं. कुछ आर्टिस्ट हैं और कुछ बेफिक्र मिजाज व धुएं का छल्ला उड़ानेवाले नौजवान युवा भी हैं., अचानक बैकग्राउंड में दूरदर्शन का वह टयून बजता है. दोस्तों की टोली में से एक कहता है. लिसेन. लिसेन. यह दूरदर्शन का टयून है न. दूसरा हां. अरे जब दूरदर्शन शुरू हुआ था. यू रिमेंबर दैट शो सुरभि. सिध्दार्थ काक एंड रेणुका वाज फैबुलस. दूसरे ने बीच में बात काटते हुए कहा. या, रिमेंबर. बट माइ फेवरिट वन वाज ब्योमकेश बख्शी. माइ इज तहकीकात. माइ सिध्दार्थ बसु. इसके बाद एक एक कर सभी अपने पसंदीदा कलाकार व शोज की बातें करने लगे. कुछ देर बाद सभी आपस में ही कहते हैं बट दैट्स टाइम नेवर रिटर्न. दूसरी आवाज एक्चुअली दूरदर्शन के इन सारे शोज का रीमेक पॉसिब्ल ही नहीं है. उन शोज की बात ही कुछ और थी. गौरतलब है कि ये उन युवाओं की टोली थी जो महानगर में नाइट क्लब में भी जाती है. मस्ती भी करती है. और बोले तो बिंदास लाइफ जीती है. उच्च वर्ग के ये युवा जिनके बारे में प्रायः यह बात होती है कि वे सिर्फ अंगरेजी शोज ही देखते हैं. उन्हें दूरदर्शन के वे शोज, किरदार आज भी याद हैं और वे सभी इससे प्रभावित है. कुछ ऐसा ही दूसरा दृश्य. टेलीफोनिक बातचीत के दौरान एक दोस्त से बातों-बातों में यूं ही दूरदर्शन का जिक्र. दूसरी तरफ से आवाज. हां, यार अब वो बात कहां. कितना मजा आता था. घर पर सुरभि में रेणुका जी की हंसी का इंतजार रहता था. उर्पयुक्त सभी बातों से इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि वाकई, आज भी चकाचौंध के बावजूद अब भी ऐसे कई शोज व किरदार हैं. जो युवाओं के जेहन में जिंदा हैं. ऐसे में एंटरटेनमेंट चैनलों का यह कहना कि युवा पसंद नहीं करते. हम उन्हें सीधी, सादगी भरी चीज नहीं दिखा सकते. अगर ऐसा है तो फिर उर्पयुक्त बातें कुछ और ही दृश्य क्यों दर्शा रहे हैं. मशहूर फिल्म समीक्षक जय प्रकाश चौकसे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि कोई चैनल अगर यह कहता है कि दर्शक यही देखना चाहते हैं इसलिए हम दिखाते हैं तो दरअसल, सच्चाई यह है कि दर्शकों को उन लोगों ने बदला है. अपनी कमियों को हम दर्शकों के सिर पर मढ़ने की कोशिश करते हैं. अगर ऐसा है तो क्यों आज भी लोग ब्योमकेश बख्शी, सुरभि , शांति ऐसे कई शोज को याद करते हैं. हम किसी भी दौर में चले जायें. कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें कभी नहीं भूलते. वे हमारे सांस्कृतिक धरोहर हो जाते हैं. कुछ ऐसा ही दूरदर्शन भी था हमारे लिए.
सुरभि यानी सुगंध
दूरदर्शन पर लंबे समय तक प्रसारित होनेवाला कार्यक्रम सुरभि एक लोकप्रिय कार्यक्रम. यूटयूब पर आज भी इसके कई एपिसोड अपलोड हैं. और जिसके व्यूर्स आज भी लाखों में हैं. उस दौर में भी सिध्दार्थ काक व रेणुका सहाणे की जोड़ी के साथ-साथ सुरभि के प्रस्तुतिकरण में खूबसूरत एनिमेशन का इस्तेमाल किया गया था. जबकि उस वक्त तकनीक उतनी उम्दा नहीं थी. पहला एपिसोड और सिध्दार्थ दर्शकों से रूबरू होते हैं. नमस्कार. सुरभि कार्यक्रम यानी सुगंध. सुगंध हमारी संस्कृति की कला की. और सबसे अहम इंसानी जुनून की. एक शो में उस दौर में पूरे भारत की कला-संस्कृति की अदभुत झलक सिर्फ यही देखने को मिलती थी.
कई लोगों ने अपनी बेटियों का नाम सुरभि और रेणुका रखा ः रेणुका सहाणे
सिध्दार्थ काक के साथ रेणुका सहाणे की जोड़ी ने उस दौर में सुरभि को एक लोकप्रिय धारावाहिक बना दिया था. वे सुरभि से जुड़ी यादों के बारे में बताती हैं कि मेरे लिए सुरभि हमेशा खास रहेगा. इसने मुझे एक अलग ही पहचान दिलायी. आज भी लोग मुझे सुरभि की वजह से ही प्यार करते थे. मुझे चिट्ठियां आती थीं. रेणुका जी आपकी हंसी बहुत खूबसूरत है. दरअसल, हकीकत भी यही है कि मेरी मुस्कान की वजह से ही मुझे सुरभि में काम करने का मौका मिला था. सिध्दार्थजी की पत्नी के पास जब मैं ऑडिशन देने गयी थी. तो मैंने संवाद हंसते हंसते कहा था. उन्होंने बस इसी बात पर रजामंदी दे दी थी कि रेणुका ही शो में होस्ट करेंगी. मुझे याद है मुझे सुरभि के माध्यम से शादी के कितने प्रस्ताव भी आते थे. कई लोग कहते हैं कि आप सिध्दार्थजी से दूर रहिए. हमें जलन होती है. वे समझते थे कि हम दोनों पति-पत्नी हैं. मुझे याद है लाखों में चिट्ठियां आती थीं. और इसी वजह से डाक विभाग ने कंपटीशन पोर्स्ट कार्ड का मूल्य भी बढ़ाया और उसे अलग श्रेणी में डाला. ट्रक के ट्रक चिट्ठियां आती थीं. सबसे अच्छा लगता था कि जब हम चिट्ठियों के टिले सजाते थे. और बच्चे आकर चिट्ठी चुनते थे. आज भी मुझे कितनी चिट्ठियां आती रहती हैं. सुरभि के माध्यम से ही मुझे पहली बार कच्छ जाने का मौका मिला. मुंबई से दूर मैंने वास्तविक जिंदगी जी थी वहां. खुले आसमान के नीचे आकाश में पूरा तारामंडल नजर आता था. क्या एहसास था वह. मुझे याद है इसी माध्यम से मुझे वहां के बॉर्डर पर जाने का मौका मिला था. वहां की वास्तविकता देखने का मौका मिला था. जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती.
एक दिन में 110 बैग आये थे पत्रों के ः सिध्दार्थ काक
सुरभि जैसे खूबसूरत शो की नींव रखनेवाले सिध्दार्थ काक निर्माण के साथ-साथ शो के होस्ट भी थे. वे सुरभि के बारे में अपनी यादों को ताजा करते हुए बताते हैं कि एक दिन शूटिंग हो रही थी. तभी फोन आया कि भई अपने बैग यहां से ले जाइए. हम पहुंचे तो देखा 110 बैग में भर कर चिट्ठियां आयी थीं. हमें फौरन सामियाना बना कर उन चिट्ठियों को इक्ट्ठा करना पड़ा था. सुरभि वह शो था, जिसमें पूरी टीम काम करती थी. हम भारत की ऐसी छोटी छोटी चीजें एकत्रित करते थे, जो विलुप्त हो रही थी या रोचक होते भी लोग उसके बारे में जानते नहीं थे. परिवार था हमारे लिए. रेणुका इस शो के लिए इतनी सजग रहती थी कि 10 साल लंबे समय तक चलने के बावजूद वे शो से जुड़ी रही. देर करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. उन्होंने इस शो में अपनी ज्वेलरी, साड़ी सबकुछ बिल्कुल लीन होकर करती थीं. उन्होंने अपने फिल्मों के निर्माता से कह रखा था कि कुछ भी हो जाये ऐसा वक्त दें ताकि सुरभि की शूटिंग में परेशानी न हो. सुरभि की सफलता का यही कारण था. मैं मानता हूं कि सुरभि वह लम्हा था जिसका रीमेक नहीं बनाया जा सकता. इसके बावजूद जब भी लोग उस लम्हे को याद करेंगे. चेहरे पर मुस्कान आ जायेगी.
ब्योमकेश बख्शी ः रजीत कपूर
शरनेंद्रू बंदोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित धारावाहिक ब्योमकेश बख्शी उस दौर का लोकप्रिय धारावाहिक था. धारावाहिक की हर कड़ी में नये चौंका देनेवाली कहानियां होती थीं. साथ ही सफेद धोती, आंखों में चश्मा व खादी के कुतर्े में रजीत कपूर पूरी तरह ब्योमकेश बख्शी के किरदार में ही नजर आते थे. ब्योमकेश बख्शी उर्फ रजीत कपूर बताते हैं कि आज भी लोग उन्हें ब्योमकेश बख्शी के रूप में ही याद करते हैं. हाल ही में जब वे लखनऊ किसी कार्यक्रम के सिलसिले में गये थे. तो कई लोगंो ने उनसे आकर कहा आप ब्योमकेश बख्शी हैं न. बकौल रजीत मुझे बेहद खुशी होती है कि 15 साल के बाद भी लोगों कपे जेहन में ब्योमकेश बख्शी जिंदा है. उस
वक्त कुछ शूटिंग तो मुंबई के चांदिवली स्टूडियो में होती थी और कुछ कोलकाता में. हम पूरा काम बिल्कुल सिलसिलेवार तरीके से करते थे. मुझे याद है एक किचन का सीन हमने शूट किया था. उसमें मुझे पहले 25 वर्ष फिर तुरंत 40 वर्ष का किरदार निभाना था. उस वक तुरंत मेकअप बदलना, फिर पूरे भाव में आने में बेहद वक्त लग जाता था. लेकिन रोमांचित था वह समय. हम कंटीन्यूटी का विशेष ध्यान रखते थे. मुझे धोती पहननी होती थी. जिसमें वक्त भी लगता था. लेकिन बावजूद इसके पूरी प्लानिंग से काम होता था. बासु साहब ने मुझे 33 कहानियां दे दी थी और फिर इस पर काम करने को कहा था.
सबका दुलारा है कृष्णा ः स्वनिल जोशी
सात साल की उम्र में मुझे पहली बार टेलीविजन पर उत्तर रामायण में किरदार निभाने का मौका मिला था. इसके बाद मुझे रामानंद सागर जी ने कृष्णा का किरदार दिया था. आज मैं मराठी व हिंदी दोनों में कई शोज करता हूं. लेकिन आज भी मेरा पसंदीदा किरदार वही कृष्णा का किरदार है. मुझे याद है दर्शक किस तरह मुझे कृष्ण के रूप में प्यार करते थे. जैसे कृष्णा गोखुल का प्यारा था. वैसे ही दर्शकों के लिए भी वह दुलारा था. आज भी महिला दर्शक मुझे कृष्णा कह कर बुलाती हैं. मुझे इसकी खबर मिलती रहती थी कि कई बुजुर्ग महिलाएं जब श्री कृष्णा देखती थीं तो मुझे हाथ जोड़कर अपने टीवी सेट को प्रणाम करती थीं. चूंकि उन्हें लगता था कि मैं कृष्ण का अवतार हूं. वाकई, मैं मानता हूं कि कुछ चीजों का रीमेक कभी नहीं हो सकता. कृष्णा ने मुझे कलाकार बनाया.
सिध्दार्थ बसु ः क्वीज टाइम
दूरदर्शन पर उस दौर में हर तरह के शोज आ रहे थे. लेकिन कोई भी ऐसा शो नहीं था, जो क्वीज या करेंट अफेयर्स पर आधारित हो. मुझे लगा कि मैं ऐसी शुरुआत कर सकता हूं. मैंने प्रपोजल भेजा. उसे रजामंदी मिली और काम शुरू हुआ. धीरे-धीरे पूरे देश से बच्चों का भागीदारी बढ़ने लगी. क्वीज टाइम लोकप्रिय हो चुका है. यह एहसास उस वक्त हुआ जब दिल्ली में मैं अपनी बजाज स्कूटर से सब्जी खरीदने गया था. एक दिन. वहां लोगों ने मुझे पहचान लिया और आकर कहने लगे आप क्वीज मास्टर हैं न. मुझे लगा कि आम लोगंो ने पहचानना शुरू किया है. यह उपलब्धि है. इसके बाद कई क्वीज शो आते रहे. लेकिन हमें जो चिट्ठियां आती थीं. उससे हम अनुमान लगाते थे कि दर्शकों की इसमें कितनी रुचि है. हालांकि अब वैसे शोज की रूपरेखा तैयार करना मुश्किल है. चूंकि अब तो इंटरनेट का जमाना है, सारी जानकारी वही मिल जाती है.
तहकीकात के सैम डिसल्वा व गोपी
मशहूर कहानीकार व फिल्मकार विजय आनंद ने पहली बार टेलीविजन में अभिनय की दुनिया में कदम रखा था. दूरदर्शन के लोकप्रिय धारावाहिकों में से एक था तहकीकात. सैम डिसल्वा व गोपी की जोड़ियां कई रोचक व अचंभित कर देनेवाली मामलों का पर्दाफाश करते थे. गोपी का किरदार सौरभ शुक्ला ने निभाया था. सैम डिसल्वा की ब्लैक टोपी, कोर्ट व गोपी अपनी गेलिस टू पीस में अलग तरीके से धमाल मचाते थे. तहकीकात से जुड़ी यादों के बारे में सौरभ बताते हैं कि तहकीकात के प्रसारण के वक्त कई प्रशंसक अपनी तसवीरें हमें भेजते थे.हमारे गेटअप में. वाकई वह शो हमारे लिए यादगार शो था. और फिर उसे हम कभी दोहरा नहीं सकते. चूंकि विजय सर अब हमारे साथ नहीं.
इनके अलावा दूरदर्शन के कुछ और शोज व किरदार थे, जिन्हें लोग हमेशा याद करते हैं और चाहते हैं कि उन शोज का रीमेक न बने. लेकिन उन पुराने एपिसोड का ही फिर से प्रसारण किया जाये.
माल्गुड़ी डेज, हमलोग, आरोहण, उड़ान, बुनियाद, मिट्टी के रंग, सर्कस, फौजी, दादी-नानी की कहानियां, छुट्टी-छुट्टी, जंगल बुक, अल्लीबाबा चालीस चोर, एलिस इन वंडरलैंड,
हमको तो चंद्रकांता की याद आरही है...उससे अच्छा आज तक हमें कोई सीरियल ही नहीं लगा आधा अधुरा बंद हुवा था तो रविवार को अक्सर उसकी timeing पे हमको रोना आता था..
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