20110207

बॉलीवुड कहानियों में एंथरप्रेनर


इन दिनों फिल्मों की कहानियों में अपने व्यवसाय की शुरुआत करने के नायाब व कामयाब तरीके दिखाये जा रहे हैं.

सज्जनपुर गांव में रहनेवाले माधव कुशवाहा के पास अपनी आय का एकमात्र साधन था. चिट्ठी लिखना,चूंकि उस गांव में लोग कम पढ़े लिखे थे. या फिर अनपढ़ थे. ऐसे में माधव का पढ़ा लिखा होना उस गांव में उसके आय का स्रोत बन चुका था. श्याम बेनगल की फिल्म वेलकम टू सज्जनपुर में नायक का किसी गांव में खुद अपने दिमाग से किसी व्यवसाय की शुरुआत करना यह जताता है कि आज के युवा चाहे कहीं भी रहें अगर उनमें काबिलियत है तो वह कुछ भी हासिल कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में वे नये नये तरीके निकाल कर बिजनेस कर रहे हैं. ऐसा वास्विक जीवन में भी हो रहा है. तभी तो हिंदी सिनेमा में इन दिनों बिजनेस के कई नये-नये तरीके दिखाये जा रहे हैं. न सिर्फ दिखाये जा रहे हैं, बल्कि सिनेमाई नायक युवाओं को भी प्रेरित कर रहे हैं कि वह अपना व्यवसाय शुरू करें. हाल की रिलीज फिल्मों पर गौर करें तो ऐसे कई तरीके दिखाये गये हैं, जिसमें अभिनेता किसी भी तरह के काम करना चाहता है. सीखना चाहता है. वह काम चाहता है और पैसे कमाना चाहता है. लेकिन उसके लिए वह अपने मम्मी पापा से पैसे नहीं ले सकता. वह अपनी कमाई से ही आगे बढ़ना चाहता है. फिर चाहे वह ब्रेक के बाद का अभय हो या बदमाश कंपनी की गैंग.

ब्रेक के बाद ( घर का खाना से रेस्तरां तक)

इसी शुक्रवार रिलीज हुई फिल्म ब्रेक के बाद में अभय गुलाटी एक फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर का बेटा है. लेकिन वह बेहतरीन खाना बनाना व उसे सजाना भी जानता है. अपनी इसी आशा व काबिलियत को वह अपने देश नहीं विदेश में जाकर निखारता है. वहां सबसे पहले वह टैक्सी चलाता है. वही टैक्सीवालों से उसकी दोस्ती हो जाती है और उन्हें वह घर का खाना खिलाने लगता है. लोगों को उसका खाना पसंद आ जाता है. और फिर उसके दिमाग में एक तरकीब आता है कि वह घर का खाना कम से कम पैसे में बेचना शुरू करेगा.फिर धीरे-धीरे उसका बिजनेस बढ़ता है और वह छोटा सा खाने का ठेला पहले किचन फिर रेस्तरां में बदल जाता है. और फिर दो और रेस्तरां की शुरुआत होती है. दरअसल, हकीकत भी यही है कि अभय की तरह ही अपना व्यवसाय शुरू करनेवाले जितने भी युवा हैं, वे इन दिनों जोश में हैं. वे जानते हैं कि वे कर सकते हैं. इसलिए वह हिम्मत भी करते हैं. रिस्क भी लेते हैं और कामयाब भी होते हैं. हालांकि फिल्मों में अभिनेता को इस तरह के काम करने के लिए उनकी कुछ मजबूरियां भी प्रेरित करती हैं तो किसी की महबूबा. लेकिन हकीकत यही है कि बिजनेस के नायाब तरीके देखने के लिए इन दिनों फिल्में बेहतरीन माध्यम साबित हो रही हैं.

बदमाश कंपनी( बेफिक्रे हो रहे हैं..)

बदमाश कंपनी की फ्रेंड कंपनी ने मिल कर वाकई कई नायाब तरीके दर्शाये हैं बिजनेस के. फिल्म में सबसे पहले जूतों की हेरा-फेरी शुरू की जाती है. हालांकि तरीका गलत होता है. लेकिन मानना होगा कि यहां शाहिद कपूर ने जूते बेचने का जो नायाब तरीका ढूंढ़ निकाला था वह लाजवाब था. वैसे भी यह बात जगजाहिर है कि बिजनेस को हिट कराने का कोई भी बना-बनाया फार्मूला नहीं होता. इसके बाद यह बदमाश कंपनी मोजों का बिजनेस करती है. फिल्म के इंटरवल के बाद शाहिद कपूर के अपने मामा के बर्बाद हो चुके शर्ट्स को डीलर्स के सामने अनोखे तरीके से पेश करने का आइडिया बेहद अलग था. इसमें पुरानी शर्ट जिनके रंग बदरंग हो रहे थे. उसे अपनी माकर्ेटिंग स्ट्रैजी से वे शर्ट की क्वालिटी बता कर पेश करते हैं. जितनी बार धोइए, नये रंग की शर्ट पहनिए. फार्मूला हिट हो जाता है.

गुरु ( गुरुभाई गुरुभाई)

फिल्म गुरु बिजनेस के जनक धीरूभाई अंबानी की जिंदगी से प्रेरित होकर बनाई गयी थी. फिल्म में अभिषेक बच्चन ने अपने तरीके से च्वन्नी से शुरुआत कर अपने बिजनेस को ऊंचाई पर पहुंचाया था. अपने दोस्तों के साथ मिल कर एक फैक्ट्री खोली और लाखों-करोड़ों का बिजनेस खड़ा किया.

वेलकम टू सज्जनपुर

सज्जपुर में इकौलते पढ़े लिखे होने की वजह से माधव को एक चिट्ठी लिखने का काम मिल जाता है. यह भी अनोखी सोच है श्याम बेनगल की. वाकई ग्रामीण इलाकों में पढ़े लिखे युवा इस तरह के व्यवसाय की शुरुआत कर सकते हैं.

प्रिया

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