20110207

काशीः मैं भी पढ़ूंगी आगे बढ़ूंगी

नये शो काशी में एक बार फिर सामाजिक मुद्दे को अहमियत दी गयी है. कहानी बालिका शिक्षा पर आधारित है. कहानी की पृष्ठभूमि फिर से बिहार के गांव के इर्द-गिर्द घूमेगी. इस सीरियल के साथ ही साइ देवधर फिर से टेलीविजन पर वापसी कर रही हैं. पेश है इसके किरदारों से बातचीत के मुख्य अंश
क्या है कहानी ः काशी की कहानी बिहार के ढोलकीपुर नामक एक सूदूरवर्ती गांव पर आधारित है, जो जातीय आधार पर बंटा हुआ है, जहां जातीय वंशानुक्रम सख्ती से कायम है. इसी क्रम में सात साल की लड़की काशी कैसे पढ़-लिख कर आगे बढ़ती है. काशी के सपने को साकार करने की दिशा में उसका मां-बाप द्वारा उठाये जानेवाले हर कदम को गांव की ऊंची जातिवाले लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ता है. वह हरसंभव प्रयास करते रहते हैं कि काशी कोई भी ऐसा काम न करे, जिससे शताब्दियों से चला आ रहा शक्ति संतुलन सामाजिक बटवारे के नियम में उलट फेर हो जाये. शिक्षा के अधिकार के मुद्दे को काशी के संघर्ष की कहानी में महत्वपूर्ण जगह मिलेगी.
टेलीफिल्मस के माध्यम से भी कई बार उठाई गया है बालिका शिक्षा का मुद्दा
एफटीआइआइ के संदीप मोदी ने बिलोरी नामक फिल्म में बालिका शिक्षा के मुद्दे को खूबसूरती से दिखाया है. इस फिल्म को अवार्ड्स भी मिल चुके हैं.
कई सालों पहले दूरदर्शन पर प्रसारित होनेवाले सीरियल उड़ान में भी बालिका शिक्षा के मुद्दे को उठाया गया था.
बालिका वधू के शुरुआती एपिसोड्स में आनंदी व वैसी लड़कियों की शिक्षा पर केंद्रित किया गया था.
भारत सरकार की तरफ से लगातार बालिका शिक्षा पर विज्ञापन दिखाये जा रहे हैं.
काशी ( जन्नत जुबैर रहमानी)ः मैं रियल लाइफ में डॉक्टर बनना चाहती हैं और अपने माता-पिता का नाम रौशन करना चाहती हूं. यह मेरा पहला शो है. इससे पहले मैंने कई एड फिल्मों में काम किया है. मुझे लगता है कि मेरी जैसी कई छोटी लड़कियां पढ़ना चाहती हैं गांव में रह कर भी वह कुछ बनना चाहती हैं. मैं बस उनकी बात को ही उजागर करने का काम कर रही हूं.
साईं देवधर सिंह( काशी की मां का किरदार)
मेरे लिए काशी की मां का किरदार अलग तरीके का किरदार है. इससे पहले मैंने ऐसा शो नहीं किया. जब हमने यह सीरियल का कंसेप्ट सुना तो हम रिसर्च के लिए मुंबई के कई इंटीरियर इलाके में गये थे. वहां जाकर जब हमने बालिका शिक्षा की बदतर स्थिति देखी तो हमें लगा कि हमें इस पर जरूर काम करना चाहिए. बिहार में यह स्थिति और बुरी है.जैसा कि हम लगातार आंकड़ों से देखते रहते हैं.मुझे लगता है कि चाहे कुछ भी लड़कियां अगर पढ़ेंगी नहीं तो फिर आगे कैसे बढ़ेंगी. कम से कम हमलोग इस सीरियल के माध्यम से जागरूकता तो ला ही सकते हैं.


पिंटू गुहा , निदर्ेशक व प्रोडयूसर
हमारे इस सीरियल की यूएसबी गांव ही रहेगी. हम ठाकुरों की हवेली दिखाने की बजाय गांव में ही ज्यादा से ज्यादा एपिसोड्स शूट कर रहे हैं. हमने इस सब्जेक्ट को उठाने से पहले काफी रिसर्च किया है. बिहार के कई क्षेत्रों में गये हैं हमलोग. मैं इस बात को नहीं मानता कि हम एक ही धारा में बह रहे हैं. व्यूर्स सामाजिक मुद्दे देखना पसंद करते हैं तो फिर हम क्यों न दिखाएं. यह तो हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है. मुझे लगता है कि हम दर्शकों को वस्तुपरक चीजें परोस रहे हैं.

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