20110207

आइने ने सच कह िदया कि एक्टर की तरह नहीं दिखता मैंः वीके मूर्ति



दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित हिंदी सिनेमा जगत के एकमात्र सिनेमेट्रोग्राफर वीके मूर्ति पिछले दिनों गोवा में आयोजित फिल्मोत्सव में शामिल हुए. अपने स्वभाव से विपरीत वे बिल्कुल सरल व सहज नजर आये. प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश

वह पत्रकारों से बात नहीं करते. बेहद सख्त हैं. और नयी पीढ़ी के पत्रकारों से तो वह मिलना भी नहीं चाहते. उन्हें अपने काम के बारे में चर्चा करना पसंद नहीं. इसलिए उनसे बातचीत का ख्याल तो मन से निकाल ही दो. कुछ ऐसी ही बातें बताई गयी थीं दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित हिंदी सिनेमा के एकमात्र सिनेमेटोग्राफर वीके मूर्ति के बारे में. लेकिन गोवा में आयोजित 41 वें इंटरनेशनल फिल्मोत्सव में उनसे मिलने के बाद व हिंदी सिनेमा व वर्तमान के सिनेमा के बारे में विस्तार से बातचीत करने के बाद वह सारी गलतफहमियां दूर हो गयीं. अक्सर हम हिंदी सिनेमा जगत के गुजरे जमाने के शख्सियत के बारे में यही बातें करते हैं कि वे नये लोगों से न तो बात करना चाहते हैं और न ही पुराने जमाने की यादें याद करना चाहते हैं, क्योंकि वे वर्तमान जगत की चीजों को पसंद नहीं करते. लेकिन वीके मूर्ति से मिलने व उनके खुले विचारों को जानने के बाद यह सारी अवधारणाएं निराधार साबित हुईं. बल्कि उन्होंने फिल्मोत्सव में अपने सिनेमाई जीवन के कई अनछुए पहलुओं व अनुभवों को साझा किया.

क्योंकि अब वैसे काम नहीं कर सकता

कागज के फूल व प्यासा जैसी क्लासिक फिल्मों को अपने कैमरे में कैद करनेवाले वीके मूर्ति निस्संदेह अब बॉलीवुड इंडस्ट्री से अलग हो चुके हैं. उन्होंने खुद इससे खुद को अलग किया है, क्योंकि वह मानते हैं कि जिस तरह के काम वह कभी उस दौर में किया करते थे. अब नहीं हो सकता. लेकिन वह इसके लिए किसी को दोष नहीं देते. वह मानते हैंं कि उस दौर में और अब के दौर में बहुत विभिन्नताएं आ चुकी हैं. तकनीकों के लिहाज से. लोगों के लिहाज. लोगों के पसंद की लिहाज से.

गुरुदत्त मेंटर

बतौर वीके मूर्ति का मानना है कि गुरुदत्त ने ही उन्हें खास पहचान दिलायी. उन्होंने अपनी फिल्मों के दृश्यों के फिल्मांकन में कई नये प्रयोग किये थे. खासतौर से लाइटिंग के साथ कैमरे के एंगल के प्रति उनका दृष्टिकोण बिल्कुल अलग था. कागज के फूल व प्यासा अगर आपने देखी होगी तो आपको उसमें कई अदभुत तरीके के शेड्स नजर आयेंगे.

क्या आप ही वीके मूर्ति हैं...

मुझे किसी ने सूचना व प्रसारण विभाग से फोन किया और पूछा कि वीके मूर्ति से बात करनी है. किसी पुरस्कार के बारे में. मुझे लगा कि उस व्यक्ति ने गलती से मुझे फोन लगा दिया है. वह जरूर नारायण मूर्ति से बात करना चाह रहा होगा, क्योंकि पुरस्कार . इस उम्र में. कौन इस बुजुर्ग को याद करेगा. अभी. मैंने उनसे कहा शायद आप नाम में कंफ्यूज्ड हों. आपको नारायण मूर्ति से बात करनी होगी? उन्होंने कहा नहीं हम सिनेमेटोग्राफर वीके मूर्ति से बात करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि हां, वह तो मैं ही हूं. फिर उन्होंने बताया कि मुझे दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया है. मैं अचंभित था. क्योंकि अब तक यह पुरस्कार सिर्फ निदर्ेशकों व कलाकारों को ही मिला था. यह पहली बार था जब किसी तकनीशियन को यह पुरस्कार प्राप्त हुआ.

हर सीन पर पैनी नजर

उस दौर में काम छोटा बड़ा नहीं होता था. मैं और गुरुदत्त लैब तकनीशियन के साथ घंटों बैठा करते थे.एक-एक शॉट को हम बार-बार देखा करते थे. एक फिल्म में उस दौर में लगभग 5000 हजार शॉट्स तो होते ही थे. कई लोग हर सीन न देखें. लेकिन गुरुदत्त जरूर देखते थे. पैनी नजर थी उनकी. कमाल के क्रियेटिव निदर्ेशक थे वह.

दोनों अच्छे दोस्त भी थे

निस्संदेह हम दोनों बेहद अच्छे दोस्त थे. गुरुदत्त और मैं जब काम खत्म कर लेते. नये नये कैमरे एंगल्स व शॉट्स को खूबसूरत बनाने के बारे में चर्चा करते थे. लेकिन बात जब काम की आती थी. तो सिर्फ काम ही काम होता था.

एक्टर बनने गया था मुंबई

मुझे एक्टर बनना था. क्योंकि मैं बड़ा आदमी बनना चाहता था. इसलिए मैं मुंबई चला गया. वहां जाने के बाद जब वहां के कलाकारों को देखा तो एक दिन आइने के सामने आकर खुद को देखा. हर एंगल से. तब आइने ने मुझसे सच कह दिया कि मैं एक्टर की तरह तो दिखता ही नहीं हूं. मैं जब 15-16 साल का था. तब लगभग 5 फिल्में एक दिन में देख लेता था. वही से प्रेम उत्पन्न हुआ था मुझे फिल्मों के प्रति.

बॉक्स में

फिल्मोग्राफी

दीदार, खुलेआम, कलयुग और रामायण, नास्तक, जुगनू, नया जमाना, सूरज, लव इन टोक्यो, जिद्दी, साहिब बीबी और गुलाम,चांदवी का चांद, प्यासा, 12 ओक्लोक, सीआइडी, आर-पार, जाल, बाजी.

उपलब्धि ः फिल्मफेयर बेस्ट सिनेमेट्रोग्राफर अवार्ड- कागज के फूल

फिल्मफेयर बेस्ट सिनेमेट्राफ्राफर अवार्ड साहिब, बीबी और गुलाम

आइफा लाइफ टाइम अचिवमेंट अवार्ड

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

2 comments:

  1. I have seen Pyasa and kaagaj ke phool. excellent, fabulous, marvellous. those pictures were covered by Murti sahab. He is the right person to achieve the award.

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  2. गुजरे ज़माने को हम इतनी तेजी से भूल जाते हैं की ..खुद हमारे बुजुर्गों को अपने होने ना होने को लेके गलत फहमी होती है बरहाल वी के मूर्ति को पुरस्कार मिलना सुखद है...

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