मुंबई से आया मेरा जगिया. बेहद खुश है आनंदी. कितने दिनों के बाद उसका बिंद घर लौटा है. दौड़ती भागती. बस इस ललक में कि बस एक नजर अपने बिंद को देख ले. जैसे दुनिया की सारी खुशियां उसे मिल जायेगी. कमरे में पहुंची. नजरे जगिया पर. दौड़ कर गले लगा लिया. आनंदी को उस वक्त वैसा ही एहसास हो रहा था जैसा उसे पांच साल बाद अपने गौने के बाद जगिया से मिलने पर हुआ था. लेकिन जगिया की आंखों में न तो वह बेचैनी नजर आयी, न ही वह प्यार और न ही वह उतावलापन. इस हफ्ते बालिका वधू में वाकई बेहतरीन तरीके से इस बात को दर्शाया गया है कि कैसे नये शहर, नये लोग पुराने लोगों व पुराने रिश्तों पर हावी हो जाते हैं. हम बेहद राजी खुशी से उन नये रिश्तों की गुथी में गुथते चले जाते हैं. बिना इस बात की फिक्र किये कि पुराने रिश्तों की डोर ही जिंदगी को हमेशा बांधे रख सकती है. दरअसल, सच्चाई भी यही है. जब हम किसी छोटे से शहर से बड़े शहर जाते हैं. और फिर वहां से वापस अपने घर लौटते हैं तो हमारी नजर और दृष्टिकोण बिल्कुल बदल गया सा लगता है. हमें अपने घर की वह सारी चीजें आउटडेटेड लगने लगती है. कभी शौक से नाश्ते में आलू के पराठे के साथ घी खानेवाले व्यक्ति को अचानक घी से एलर्जी सी हो जाती है. अचानक घी से उसे अपने कोलेस्ट्रोल बढ़ने की चिंता सताने लगती है. जबकि हम यह भूल जाते हैं कि दरअसल वह घी में डुबोई गयी रोटियां परिवारवालों का स्नेह है. कुछ ऐसा ही हो रहा है जगिया व आनंदी के साथ भी. बड़े शहर की चकाचौंध में जगिया अपनी आनंदी के प्यार को ठुकरा रहा है. कभी मेले व हाट की गलियों व सड़क की दुकानों से चहक कर चश्मे खरीदनेवाले जगिया की नजर में उसकी पत्नी आनंदी द्वारा दिये गये चश्मे की कीमत नजर आती है. यह नहीं कि किस प्रेम से उसने उसे खरीदा है. वह डांट कर कह देता है कि यह बीस रुपये का चश्मा मैं लगाऊंगा. तुम और तुम्हारे गांववाले कभी आगे नहीं बढ़ेंगे. गौर करें तो हकीकत में भी यही खास वजह है कि हमारे गांव आगे नहीं बढ़ पाते. कुछ लोगों को छोड़ दें तो बड़े शहर जाने के बाद कोई अपने घर लौटना नहीं चाहता. वह वापस नहीं जाना चाहता. वहां के लिए कुछ करना नहीं चाहता. अगर गलत है तो उसे सही तरीके में बदलना नहीं चाहता. क्या वाकई किसी युवा की सिर्फ यही जिम्मेदारी है कि वह शहर वह गांव जिसने उसे इतना सबकुछ दिया है वह उसके लिए कुछ न करे. बल्कि उसे कोसे कि यहां के लोग और वहां की सोच कभी आगे नहीं बढ़ सकती.लेकिन धीरे-धीरे अब इस सोच में बी बदलाव हो रहा है तभी बिहार, झारखंड व अन्य राज्यों में भी एंटरप्रेनरशीप के लिए युवा आगे आ रहे हैं. चाहे जो भी हो गांव गांव होता है अपना देश. अपनी माटि. हम खुद को माटी से अलग नहीं कर सकते. हो सकता है आनेवाले कुछ दिनों में जगिया भी यह सच जान ले. या फिर अब उसे अपने माता-पिता के प्यार से जगदिसिया बुलाने पर भी एतराज हो जाये.
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