20110913

ब्रांड, बाजार और सीक्वल सिनेमा


महेश भट्ट, निदर्ेशक

आज समय ब्रांड का है. लोग ब्रांड में विश्वास करते हैं. ब्रांड की इसी अहमियत ने हिंदी सिनेमा में सीक्वल फिल्मों के दौर की शुरुआत की है. कल तक जहां साल में एक या दो सीक्वल फिल्में रिलीज होती थी. वही अब इस संख्या भी इजाफा हो गया है. अब तो हर महीने एक सीक्वल रिलीज हो रही है. एक के बाद एक सीक्वल फिल्मों की रिलीज का मतलब साफ है. जब हम किसी सुपरहिट फिल्म का सीक्वल बनाते हैं तो बिना किसी मेहनत के वह खुद ब खुद एक ब्रांड बन जाता है. एक ऐसा ब्रांड जिसका नाम ही दर्शकों को अपनी ओर खींचने के लिए काफी होता है. सीक्वल फिल्मों के मेकिंग के दौरान ही यह बात पुख्ता हो जाती है कि 40 प्रतिशत दर्शक आपके तय हैं. जिन पर पहले पार्ट का जादू हावी होता है. मर्डर टू बनाते हुए भी मेरे दिमाग में यह बात थी. मैं इस बात को स्वीकारता हूं कि इस सीक्वल फिल्म की कहानी का पहले पार्ट से कुछ भी लेना देना नहीं है लेकिन इस फिल्म में भी क्राइम, थ्रिलर, टेंशन और वो डर का वो तत्व मौजूद है जो मर्डर के पहले पार्ट में था और इमरान भी. इमरान की आज जो भी फैन फॉलोयिंग है. वह मर्डर ने ही दी थी ऐसे में मर्डर टू में उसकी मौजूदगी दर्शकों को और ज्यादा अट्रैक्ट करेगी. सीक्वल फिल्मों की सबसे बड़ी खासियत है कि यह आपको आपके पसंदीदा किरदार से मिलने का एक और मौका देती है, जिससे आप न सिर्फ परिचित हैं बल्कि उसे पसंद भी करते हैंसाथ ही सीक्वल फिल्मों के प्रमोशन में भी ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता है और प्रमोशन तो आज की फिल्मों का सबसे अहम हिस्सा है. अगर आप इसमें माहिर हैं तो आपकी फिल्म हिट हो गयी. इस मामले में मैं आमिर खान को माहिर बताऊंगा. वो तो माकर्ेटिंग गुरु है. अपनी हालिया रिलीज फिल्म देहली बेली की माकर्ेटिंग के वक्त उन्होंने चीख -चीख कर अपनी फिल्म को एडल्ट बताया था. सिर्फ यही नहीं बल्कि उन्होंने यह भी कहा कि टीनऐर्जस (18 से कम) इस फिल्म से दूर ही रहे लेकिन अगर गौर करेंगे तो आमिर के इस बयान ने टीएजर्स को इस फिल्म से और भी ज्यादा जोड़ दिया है. यह बात सर्वविदित है कि इंसान को जिस चीज के लिए मना किया जाता है. वह वही करता है और आमिर ने टीनएजर्स को इस फिल्म के लिए मना कर उन्हें फिल्म देखने के लिए और भी ज्यादा उकसा दिया है और अब फिल्म को सिर्फ टीनएजर्स ही नहीं बल्कि बच्चे भी देखेंगे. माकर्ेटिंग का जादू ही यही है लेकिन इसमें हमेशा नये- नये आईडियाज की जरूरत होती है. यही वजह है कि फिल्म प्रमोशन के लिए हमेशा ही माध्यम बदले हैं. पहले होडिंग होती थी जिसकी जगह रेडियों फिर टेलीविजन विज्ञापनों ने ले ली और आज का जमाना इंटरनेट का है. इसका जमकर उपयोग किया जा रहा है. आमिर ही नहीं सभी अपने -अपने तरीके से ज्यादा से ज्यादा दर्शकों से जुड़ रहे हैं. अगर साफ शब्दों में कहें तो रीझा रहे हैं. आमिर की बात छोड़िये खुद मैंने भी ऐसे तरीके कई बार अपनाये हैं. संजय दत्त, पूजा भट्ट और सदाशिव अमरापुरकर स्टारर मेरी फिल्म सड़क के प्रमोशन के लिए भी मैंने नया अंदाज अपनाया था. उस वक्त की सभी होडिंग एवं रेडियो और टेलिविज एड फिल्म में मैंने यह बात लिखवाई थी कि एक ऐसी फिल्म जिसे सेंसर बोर्ड देखना नहीं चाहता है और इसी टैगलाइन ने जादू कर दिया. फिल्म को सिर्फ जबरदस्त ओपनिंग मिली बल्कि फिल्म हिट भी हो गयी. मैं इस बात के साथ यह भी जोड़ना चाहूंगा कि सिर्फ प्रमोशन से कोई फिल्म हिट नहीं हो सकती है. आपकी फिल्म में भले ही स्टार हो लेकिन कहानी तो होनी ही चाहिए, क्योंकि आखिरकार दर्शक परदे पर अच्छी कहानी ही चाहता है लेकिन प्रमोशन भी मायने रखता है. मर्डर टू के पोस्टर्स का ऑनलाइन चयन भी माकर्ेटिंग स्ट्रेटजी का ही हिस्सा है. मुझे इसमे कोई बुराई भी नजर नहीं आती है. आखिरकार हम फिल्में आम दर्शकों के लिए ही बनाते हैं. बेहतर हो अगर वह ही यह बात सोचे कि कौन सा पोस्टर उन्हें सबसे ज्यादा पसंद आया है और कौन से पोस्टर्स से वे इस फिल्म की कहानी से रिलेट कर पाते हैं. मौजूदा दौर के सिनेमा ने दर्शक वर्ग को जरुर बांट दिया है लेकिन निर्माता को हर वर्ग के दर्शक की जरूरत है.अब तक फिल्म प्रमोशन का हिस्सा सिर्फ बड़े शहर होते थे लेकिन अब छोटे शहर के लोगों को भी टारगेट किया जा रहा है. प्रमोशन के लिए रांची, कानपुर और लखनऊ जैसे शहरों को चुना जा रहा है.मैं खुद अपनी फिल्म मर्डर टू के प्रमोशन के लिए इमरान को इन छोटे शहरों में भेज रहा हूं. सिंगल स्क्रीन का भी अपना जादू है और फिल्म की सफलता में अहम योगदान है. दबंग की अप्रत्याशित सफलता इस बात की गवाह है इसलिए मौजूदा दौर का निर्माता किसी भी वर्ग के दर्शक की अनदेखी नहीं करना चाहता है. उसे सिर्फ अपना प्रोडक्ट यानी फिल्म बेचना है फिर चाहे उसके दर्शक मल्टीप्लेक्स वाले हो या सिंगल स्क्रीन.

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