20110913

फिल्म रिव्यू ः ऑल्वेज कभी कभी


कलाकार ः अली फजल, जोया मोरानी, जिसेली, सत्यजीत दुबे

निदर्ेशक ः रोशन अब्बास

रेटिंग ः 2

ऑल्वेज कभी कभी से पहली बार रोशन अब्बास अपने निदर्ेशन की पारी की शुरुआत कर रहे हैं. फिल्म शाहरुख खान के रेड चिली प्रोडक्शन की है. जाहिर है. फिल्म से उम्मीदें दर्शकों को बहुत होंगी. चूंकि शाहरुख युवाओं और कॉलेज पर आधारित फिल्मों के नायक रहे हैं. उन्होंने अब तक कुछ कुछ होता है.दिल तो पागल है और मोहब्बतें जैसी शानदार फिल्में दी है. जाहिर है. ऐसे में शाहरुख खान के बैनर तले बन रही फिल्म से भी उम्मीदें बढ़ती हैं. खासतौर से तब जब फिल्म का शीर्षक कुछ अलग सा हो. रोशन अब्बास निदर्ेशन से पहले तक टेलीविजन पर बतौर एंकर नजर आते रहे हैं. फिल्म ऑल्वेज कभी कभी निस्संदेह शीर्षक की वजह से दर्शकों को फिल्म देखने के लिए आकर्षित करेगी. लेकिन फिल्म देखने के बाद दर्शक मायूस हो सकते हैं. फिल्म की कहानी में प्रेम कहानी भी है. स्कूल की मस्ती भी है. नये चेहरे भी हैं. जिससे उम्मीद की जाती है कि वे कुछ अलग प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगे. लेकिन फिल्म उस लिहाज से भी निराश करती है. फिल्म की कहानी चार दोस्तों की है. अभी सभी स्कूल में ही पढ़ते हैं. समीर खन्ना, ऐश्वर्य धवन, नंदिनी और तारीक नकवी एक ही स्कूल में पढ़ते हैं.लेकिन वे चारों चार तरीके से सोचते हैं. सभी किसी न किसी रूप में अपने अभिभावकों से नाराज हैं. तारीक के पिता चाहते हैं कि वह खानदानी परंपरा को आगे बढ़ाये और एमआइटी में ही जाये. ऐश्वर्य अपनी मम्मी के सपने को पूरा करने के लिए मॉडल बनना जबरन स्वीकार करती है. समीर अपने पिताजी के तानों से परेशान है और नंदिनी के माता-पिता व्यवसायी माता पिता है. सो, उनके पास अपने बच्चों के लिए वक्त नहीं. सभी अपने अभिभावकों की नजरअंदाजगी व अत्यधिक दबाव से परेशान हैं. ऐसे में वह एक उपाय ढूंढ निकालते हैं और अपने प्ले के माध्यम से पुरानी पीढ़ी को नयी पीढ़ी के बारे में बताते हैं. गौर करें. तो हाल ही में रिलीज हुई फिल्म शैतान की नायिका कल्की का किरदार भी अपने माता-पिता के नजरअंदाजगी का शिकार है. दूसरी नायिका अपनी बहन की वजह से जबरन मॉडल बनना स्वीकार करती है. कुछ इसी तरह फिल्म थ्री इडियट्स में अभिभावकों की दबाव से फरहान तय करता है कि वह इंजीनियर ही बनेगा. ऑल्वेज कभी कभी ने जिस तरह अपना विषय चुना था. उस वक्त निदर्ेशक को कम से कम इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि ऑल्वेज कभी कभी सारी फिल्मों का मिश्रण न लगे और फिल्म से कोई नयी कहानी और नया एंगल निकल कर सामने आये. पिछले कई सालों से लगातार फिल्म निदर्ेशकों ने अभिभावकों को खलनायक के रूप में प्रस्तुत करनेवाली कहानियां प्रदर्शित की है. फिर चाहे वह फिल्म उड़ान हो, थ्री इडियट्स, शैतान, टर्निंग 30, तारे जमी पे हो. लेकिन हमें वाकई इस बात पर गहराई से सोचना चाहिए कि क्या वाकई आज के अभिभावकों का एंटीना ( ऑल्वेज कभी कभी के संदर्भ) में हमसे मेल नहीं खाता. ऑल्वेज कभी कभी और शैतान मेट्रो की कहानियां हैं और उड़ान छोटे से शहर जमशेदपुर की.क्या अब भी अभिभावकों की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया? इस बात पर प्रश्न चिन्ह इसलिए, क्योंकि अब धीरे धीरे बदलाव चुके हैं. नयी पीढ़ी के साथ पूरी तरह अभिभावक कदमताल कर रहे हैं.फिर क्यों निदर्ेशकों को उन्हें सबक सिखाने की जरूरत पड़ रही है. ऑल्वेज कभी कभी उस लिहाज से बेहद ही कमजोर फिल्म है. फिल्म का यह दावा कि कहानी टीनऐजर्स की है. निराधार साबित होती दिखती है. बेहतर होता कि रोशन फिल्म को कॉलेज की थीम पर लेकर जाते. चूंकि फिल्म में नंदिनी का हद से ज्यादा बिंदास होना, प्रेगनेंसी टेस्ट, पार्टी, पब जाना. मेट्रो के स्कूलों के बच्चों के लिए आम बात हो.लेकिन छोटे शहर के बच्चे ऐसे नहीं होते. ऐसे में जाहिर है रोशन को उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए कि छोटे शहर के युवा दर्शक भी फिल्म देखें.फिल्म के कलाकारों ने निस्संदेह ताजगी के साथ अपने किरदार को निभाया है. जिसेली में संभावनाएं हैं. लेकिन फिल्म में उन्हें अधिक मौके दिये ही नहीं ये.

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