20110913

न जाने अब कितने घरों में इंतजार इंतजार ही रहेगा


क्यों चुने गये यही स्थान

कबूतरखाना ः जहां फुटपाथ है रोजी-रोटी

कबूतरखाना ः स्थान मुंबई दादर के पश्चिमी इलाके में स्थित कबूतरखाना. शाम के वक्त अगर आप कभी आम दिनों में वहां जायें तो वहां आपको एक अलग ही नजारा देखने को मिलेगा. यह इलाका अमूमन भी भीड़ से भरा होता है. इसकी खास वजह यह है कि इस स्थान पर कई छोटी दुकाने हैं. खासतौर से फुटपाथ के सहारे अपनी जिंदगी व्यतीत करनेवाले लोगों के लिए यह खास स्थान होता है. शाम का वक्त. यानी मुंबई के अधिकतर लोगों के लिए घर लौटने का वक्त. ऐसे में उन इलाकों पर प्रायः भीड़ होती है. जाहिर सी बात है ऐसे स्थानों पर धमाके करने की खास वजह यही है कि इससे आम आदमी उस इलाके से अधिक से अधिक प्रभावित हो.

दादर ः मुंबई का गढ़

दादर. मुंबई का केंद्रीय स्थल. जहां लोकल ट्रेन के माध्यम से लगभग हर लाइन जोड़ी जाती है. फिर चाहे वह सेंट्रल लाइन हो या वेस्टर्न. चूंकि मुंबई के कई इलाकों से लोग यहां आकर ट्रेन पकड़ते हैं. लगभग हर क्षेत्र में काम करनेवाले लोगों की आवाजाही दादर में होती है. आम दिनों में अगर आप दादर इलाके में हैं तो आप समझ लें कि भीड़भाड़ के इस इलाके में लगभग आप कंफ्यूज हो जायेंगे. चूंकि कई बड़ी एक्सप्रेस ट्रेन भी यही से होकर गुजरती हैं. लेकिन इसके बावजूद मुंबई के अब तक के बम धमाकों के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब दादर में कोई बम धमाका किया गया हो. साजिश रचनेवालों ने जान बूझकर शाम का वक्त व बस स्टॉप चुना है. चूंकि मुंबई में इस वक्त सबसे अधिक भीड़ बस व ट्रेन में ही होती है. गौरतलब है कि एक कार में बम की प्राप्ति हुई है. चूंकि मुंबई में दूरी बहुत ज्यादा है. इसलिए प्रायः लोग अपनी गाड़ियां बस स्टैंड पर रख कर फिर लोकल ट्रेन के माध्यम से अपना सफर तय करते हैं. यही वजह है कि इन जगहों को खासतौर पर निशाना बनाया गया.

झवेरी बाजार ः मुंबई की सोने की चिड़िया

झवेरी बाजार, शाम 6.45 से शुरू हुए बम धमाके में पहला निशाना मुंबई का झवेरी बाजार ही बना. झवेरी बाजार के नजदीक स्थित मुबां मंदिर के आसपास ही यह धमाका हुआ. झवेरी बाजार दक्षिण मुंबई की वह जगह है, जो ज्वेलरी और ज्वेलर्स के लिए अपनी पहचान रखता है. कहते हैं कि भारत के 65 प्रतिशत से अधिक सोने का कारोबार यही से होता है. पंद्रह हजार से भी ज्यादा सोने की दुकानें यहां पर हैं. सोने के गहनों की दुकानों के अलावा अन्य कई दुकानें भी यहां पर देखने को मिलती है. जिसमे कपड़ो से लेकर खाने पीने तक सभी शामिल है. दुकाने ही दुकानें हर तरफ देखने को मिलती है. जिस वजह से यहां की गलियां भी काफी तंग नजर आती हैं लेकिन फिर भी यह जगह हजारों मुंबई कर के लिए रोजी रोटी का साधन हैं. गौरतलब है कि अपनी इन्हीं खूबियों की वजह से झवेरी बाजार हमेशा ही आंतकवादियों के निशाने पर रहा है. 93 और 2003 में भी यह जगह बम धमाकों का शिकार हो चुकी है.

ओपेरा हाउस ः एलिट क्लास

साउथ मुंबई का बेहद खास इलाका. इससे पहले भी मुंबई में साउथ मुंबई को पिछली बार निशाना बनाया गया है. इसकी खास वजह कि यहां एलिट वर्ग के लोगों का निवास स्थान है. जाहिर सी बात है कि आम आदमी से अधिक प्रभावित प्रशासन तब होता है, जब एलिट क्लास प्रभावित हो. यही वजह है कि भीड़भाड़ इलाके के साथ साथ इन स्थानों को भी निशाना बनाया जा रहा है.

प्रतिक्रिया

हर बार धमाके होते हैं. फिर इस पर अफसोस जाहिर होते हैं. जांच कमिटियां बैठेंगी.कुछ दिनों बाद फिर आम आदमी सड़क पर बड़ी संख्या में पुलिस की भीड़ देखेगा. वह सोचेगा कि वह अब सुरक्षित है. और फिर अचानक फिर से एक धमाका होता है. और आम लोग दहल जाते हैं. मासूम लोगों की जानें जाते हैं. उन्हें मुआवजा मिलता है तो कुछ लोग चश्मदीद बन कर रह जाते हैं. मुंबई में कई वर्षों से हो रहे लगातार बम धमाकों से अब मुंबई की आम जिंदगी तितिर बितिर हो चुकी है. लेकिन इससे शायद प्रशासन को कोई खास फर्क नहीं पड़ता. निस्संदेह मुंबई लड़कियों के लिए सुरक्षित स्थान माना जाता है. लेकिन इसके बावजूद लगातार बम धमाकों के लिए निशाना मुंबई ही. धमाकों की खबर से त्रस्त हो चुके मुंबई निवासी उदय भगत कहते हैं कि हर बार दहलती है मुंबई और इसका सीधा असर पड़ता है मासूमों पर. अब कल अखबारों व हेडलाइन तक फिर से सीमित हो जायेगी. जांच बैठेगी, कुछ लोग पकड़े जायेंगे और फिर सरकारी खचर्े पर जेल में मुफ्त की रोटी तोड़ेंगे. मुंबई में बचपन से ताल्लुक रखनेवाली रजनी गुप्ता मुंबई के लगभग हर बम धमाके की साक्षी रही हैं. वह इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहती हैं कि हर बम धमाके के बाद मुंबई में जांच एजेंसी बिठाई जाती है. पुलिस विभाग मुस्तैदी से अपने काम में जुट जाता है. जिसका खामियाजा फिर एक बार आम आदमी को ही भुगतना पड़ता है. मेरा मानना है कि जांच एजेंसी सिर्फ और सिर्फ बातें बनाती हैं. इसके माध्यम से अब तक न तो कभी इस समस्या का हल निकला है और न ही कभी निकेलगा. मुंबई के ओशिवारा इलाके में रहनेवाले अजय के शब्दों में मुंबई में तीन स्थानों पर बम धमाकों के लिए खासतौर से भीड़भाड़वाले इलाकों को ही चुना गया. जिस वक्त धमाके हुए हैं. वह वक्त लोगों के घर लौटने का होता है. वे बेहद दुखी शब्दों में कहते हैं कि न जाने अब कितने घरों में इंतजार लंबा होगा. बोकारो के रहनेवाले राजीव पिछले कई सालों से मुंबई में कार्यरत हैं. वे कहते हैं कि मुंबई में बार बार इन धमाकों में हर बार न जाने हम कितने अपनों को खोयेंगे. प्रशासन का क्या है. बातें बनायेंगी और फिर इस पर चुप्पी साध लेगी. लेखक उपन्यासकार तुहिन सिन्हा इस बारे में कहते हैं कि मुंबई में इससे पहले भी बारिश के वक्त धमाके हुए हैं. वर्ष 2006 में हुए ट्रेन ब्लास्ट भी बारिश के दौरान हुए थे. सभी जानते हैं कि मुंबई की बारिश की स्थिति क्या होती है. ऐसे में यह बम धमाके स्थिति बद से बदतर बना डालते हैं. प्रतीक मंजूमदार तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि हर बार की तरह इस बार भी कैजुयल्टी की सही तरीके से उपलब्धता नहीं. अन्य मुंबई निवासी गुलजार हुसैनः आतंकवादियों का भय खत्म होता जा रहा है. कानून व्यवस्था लचर है. कसाब को पकड़े हुए डेढ साल से उपर हो गये है. पूरी दुनिया ने देखा था कि 9.11 का दोषी वही है, फिर भी अब तक कोई ठोस सजा उसे नहीं मिली है. सुरक्षा के इंतजाम में भी कमी ही रह जाती है जो ऐसी घटनाएं होती है. एक पीआर एजेंसी में कार्यरत स्वप्नाली गोपाले का कहना है कि एक के बाद एक मुंबई को ही टारगेट किया जा रहा है लेकिन फिर भी सुरक्षा व्यवस्था की कलई हमेशा ही खुल जाती है और जब सवाल उठाये जाते हैं तो यह बात सामने जाती है कि हमारे पास भी धमकी भरे मेल आये थे लेकिन हम करवायी कर रहे थे. ऐसे कैसी करवायी और ये कैसी सुरक्षा, जिसे हमेशा ही तोड़ दिया जाता है. धमाके के दौरान दादर के बस स्टॉप पर स्थित चश्मदीद व्यक्ति रामांजुन का कहना है कि यह मौत को सामने से देखने की तरह था. इस दर्दनाक खौफनाक स्थिति का बयान कर पाना शब्दों में मुश्किल है.

प्रस्तुति ः अनुप्रिया व उर्मिला

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