परदे के उठते ही फिल्मों को बड़े परदे पर देखना जितना रोमांचक होता है. उससे कम रोमांचक नहीं होती परदे के पीछे की दुनिया. हर फिल्म की कुछ खासियत होती है. फिल्मों में कुछ न कुछ ऐसे खास दृश्य जरूर होते हैं. जो हमेशा आपकी जेहन में घर कर लेते हैं. वे रोचक, रोमांचक व दिलचस्प दृश्यों को तैयार करने में निस्संदेह पूरी टीम की व निदर्ेशक की सोच कमाल करती है. हिंदी सिनेमा के हर दौर में ऐसे कारनामे किये जाते रहे हैं. फिर भले ही इसके लिए उन्हें कई जोखिमों का सहारा क्यों न लेना पड़ा हो. कुछ ऐसे ही दृश्यों की पहली कड़ी में आज हम आपको शम्मी कपूर की फिल्म ब्लफमास्टर के गोविंदा आला गीत के बारे में बतायेंगे. कि किस तरह इस पूरे दृश्य को जोखिमों के बाद तैयार किया गया था. और इसका श्रेय जाता है शम्मी कपूर व निदर्ेशक मनमोहन देसाई को. वर्ष 1963 में रिलीज हुई इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाया था शम्मी कपूर व शायरा बानो ने
मनमोहन देसाई यूं ही किसी सड़क से गुजर रहे थे. उन्होंने रास्ते में कुछ लोगों को दही हांडी करते देखा. फिल्म ब्लफमास्टर की शूटिंग चल ही रही थी. उनके जेहन में तुरंत यह बात आयी कि फिल्म में इस तरह का कोई गीत डालना चाहिए. उन्होंने दोबारा स्क्रिप्ट पर काम किया. कलाकारों से बात की. तय हुआ कि इसे वास्तविक लोकेशन पर ही शूट करें. उन्होंने उसी दिन सभी कलाकारों को तैयार किया और सड़क पर ऐसी टोली को ढूंढने निकल पड़े. कहानी में उन्होंने कुछ यूं बदलाव किया कि शम्मी कपूर को शायरा बानो के लिए कोई तोहफा खरीदना हैं. उनके पास पैसे नहीं हैं. किसी से उन्होंने सुना कि ऊपर लटकी मटकी में 100 रुपये का नोट है. जो वहां तक पहुंचेगा. मटकी फोड़ लेगा. नोट उसे मिल जायेंगे. यह तो रही कहानी की बात. लेकिन दिक्कत यह थी कि भीड़ भी एकत्रित हो जायेगी. उस दौर में फिल्मों की शूटिंग में उतनी परेशानी नहीं होती थी. सभी सहयोग करते थे. लेकिन चूंकि सभी को मिल कर टोली के रूप में एक दूसरे से कंधे से कंधे मिला कर खुद को ऊपर चढ़ाना था. अगर थोड़ा भी बैलेंस बिगड़ा तो गड़बड़ी हो सकती है. सबकुछ शम्मी जी पर ही निर्भर था. ऊपर से इसका बार बार रिटेक लिया जाना भी मुश्किल था. सबकुछ बिल्कुल पहले ही तय किया गया था. मनमोहन देसाई तैयार थे. उन्होंने शम्मी जी को हिम्मत दी और हौसला बढ़ाया. मुंबई की गलियारों में एक चौक पर तैयारी की गयी. वास्तविक टोली के बीच शम्मीजी अपना बैलेंस बना कर ऊपर चढ़ते गये और अंततः पूरे सीन की शूटिंग हुई और कुछ यूं हिंदी फिल्मों में पहली बार फिल्म ब्लफमास्टर से फिल्मों में दही हांडी दर्शायी गयी. इसके बाद लगातार कई फिल्मों में दही हांडी की मस्ती दिखाई गयी. लेकिन मनमोहन देसाई के इस दृश्य की शूटिंग जिस तरह से बारिश, और वास्तविक लोकेशन में की गयी है. यह एक माइलस्टोन गीत साबित हुआ. आज भी दही हांडी या जन्माष्टमी में इस गीत को बार बार गुनगुनाया जाता है.
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