20110913

मेरी आवाज को दिल से लगा रखा है न लोगों ने...


लेके पहला पहला प्यार, सईया दिल में आना रे...जैसे कई बेहतरीन गीतों को सुर दे चुकीं शमशाद बेगम की आवाज भी जवां हैं. भले ही उनकी उम्र 92 हो चुकी हो. लेकिन उनकी आवाज में आज भी वही खनक हैं. भले ही वह आज व्हील चेयर पर हों, लेकिन चेहरे पर उनकी मुस्कान किसी निराश व्यक्ति को भी ऊर्जा से भर देगी.जिंदादिली तो इसी का नाम है. उन्हें न तो किसी से कोई गिला है न शिकवा. वे खुश हैं. संतुष्ट हैं. चूंकि वे जानती हैं कि आज भी लोग उन्हें नहीं उनकी आवाज को अपने दिल से लगा रखा है. यही बहुत है उनके लिएशमशाद बेगम से मिलना किसी सौभाग्य से कम नहीं था. उनसे मिलना बेहतरीन अनुभव में से एक था. शमशाद बेगम से उर्मिला कोरी ने उनके पवई निवास पर मुलाकात की. पेश है उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं पर एक नजर

कुछ दिनों की मशक्कत के बाद आखिरकार मुझे शमसाद जी का नंबर मिल गया. मैंने फोन किया तो उनकी बेटी उषा ने फोन उठाया. उनका पहला सवाल यही था कि अचानक आपको मम्मी की याद क्यों गयी. जवाब में मैंने कहा कि मैं शमसाद जी की प्रशंसक हूं और अपने जर्नालिज्म के शुरुआती दिनों से ही मिलना मेरी ख्वाहिश रही है. उन्होंने सोमवार को सुबह 10 बजे का समय दिया. मैं तय समय पर उनसे मिलने पवई स्थित उनके आवास पर पहुंच गयी. उनकी बेटी उषा सबसे पहले मुझे मिली उन्होंने मुझे बैठने का इशारा करते हुए कहा कि मां रही है. थोड़ी देर में वे व्हीलचेयर पर शमसाद जी को लेकर आयी. अपनी खनकती आवाज की तरह ही वे खिलखिलाती हुई कमरे में दाखिल हुई और मुझे देखते हुए कहा कि आप तो लड़की है. मुझे खुशी होती है जब मैं लड़कियों को मैं आगे बढ़ते देखती हूं. वैसे तुम खुशकिस्मत हो जो आज के जमाने में हो, हमारे जमाने में तो लड़कियों पर बहुत पाबंदी होती थी लेकिन शायद अल्लाह की मेहरबानी थी जो मैं अपना एक मुकाम बनाने में कामयाब रही. 92 साल की शमसाद जी बातचीत करते हुए बीच- बीच में थक कर कई बार रुक भी जाती थी, लेकिन उनके चेहरे की हंसी और उत्साह में पूरी बातचीत के दौरान एक बार भी कमी नजर नहीं आयी. वे एक उत्साहित बच्चे की तरह अपनी कहानी को कुछ यूं बताती चली गयीः

12 साल की उम्र से शुरुआतः महज 12 साल की उम्र में जेनोफोन कंपनी में अपने कैरियर की शुरुआत मैंने की थी. मेरे चाचा मेरे लिए मेरे प्रेरणास्त्रोत थे. मेरे चाचाजी को भी मेरी आवाज बेहद पसंद थी इसलिए जेनोफोन द्वारा आयोजित प्रतिस्पर्धा में वे मुझे ले गये जहां पर मैंने बिना किसी संगीत के एक मुखड़ा गाकर संगीतकार उस्ताद गुलाम हैदर का मन जीत लिया . मैं विजेता चुनी गयी और मुझे जेनोफोन कंपनी के साथ 12 गानों का कांट्रैक्ट पूरा किया. एक गाने के लिए उस वक्त बारह रुपये मिलते थे. इससे पहले मेरी विधिवत ट्रेनिंग नहीं हुई थी लेकिन उस्ताद गुलाम हैदर ने मुझे संगीत की औपचारिक शिक्षा दी. वहीं मेरे पहले और आखिरी गुरु थे. मुझे याद है. जेनेफोन कंपनी ने एक आरती जय जगदीश हरे रिकार्ड करवायी थी लेकिन धार्मिक कट्टरता की आशंका से डर से मेरे नाम की जगह उमा देवी का नाम दिया गया. उस दौर में कट्टरता बहुत हावी थी, लेकिन मैंने अपनी मेहनत जारी रखी.

सफर आसान नहीं थाः बतौर गायिका इंडर्स्ट यह सफर मेरे लिए उतना आसान नहीं था. अम्मी गुलाम फातिमा जितनी नर्म मिजाज की थी. अब्बा हुसैन बख्स उतने ही गुस्सैल, सख्त मिजाज और दकिनायूसी विचारों के थे. महिलाएं उस वक्त परदे में रहती थी और गैर मर्द के सामने परदे बेनकाब नहीं सकती थी. उन दिनों प्लेबैक सिगिंग का जमाना नहीं था. नायिकाएं अभिनय के साथ- साथ गाती भी थी इसलिए उन्होंने मुझे स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया और आपको यकीन नहीं होगा मैं चुन ली गयी. स्क्रीन टेस्ट तो मैं अब्बाजान से छिपकर देने गयी थी लेकिन जैसे ही शूटिंग की बात आयी. अब्बा से इजाजत लेना जरुरी हो गया था. जैसे ही मैंने अभिनय के लिए कहा उन्होंने कहा कि उन्होंने फरमान सुना दिया कि अगर मैंने अपने लिए जिद की तो वे मेरा गाना भी बंद करवा देंगे. मेरा सपने चूर -चूर हो गये थे. मैंने आल इंडिया रेडियो में प्रोग्राम कर अपने अंदर के गायिका को जिंदा रखा लेकिन अल्लाह को मुझ पर तरस गया और दो साल बाद प्लैबैक सिगिंग का दौर शुरु हो गया और एक बार फिर पंचोली स्टूडियो ने मुझे बुलाया और अपनी फिल्म खजांची में मुझे ब्रेक दिया.

महबूब खान की वजह से मुंबई आयीः फिल्मों में भी मुझे पहला ब्रेक पंचोली फिल्म्मस की खजांची फिल्म से मिली. उस फिल्म के गीत लोगों को इतने पसंद आये कि पाकिस्तान से हिंदुस्तान तक सभी मेरी आवाज के प्रशंसक बन गये. इन्हीं में से एक फिल्मकार महबूब खान भी थे. मुझे मुंबई लाने का श्रेय उन्ही को जाता है. वे मुझसे मिलने लाहौर आये थे और मेरे अब्बा को मनाया. जिसके बाद मैं मुंबई गयी. महबूब खान की फिल्म तकदीर में नरगिस दत्त की मैं आवाज बनी थी. जिसके बाद सी रामचंद्रन, पंडित गोविंद, अनिल विश्वास जैसे संगीतकारों की लाइन लग गयी एक के बाद एक सुपरहिट गीत और मैं मुंबई की ही होकर रह गयी.

मैंने काम नहीं मांगाः शुरुआत में नवोदित संगीतकार मेरे पास आकर काम मांगते थे लेकिन गाना हिट हो जाने के बाद वे मुझे पहचानते नहीं थे. मैं हमेशा यही सोचती थी कि जो गीत मेरे लिए बना है. वह मुझे ही मिलेगा. नूरजहां, सुरैया, जौहर बाई अंबालेवाली, उमा देवी(टुनटुन) . अमीर बाई कर्नाटकी ये उस दौर में मेरी प्रतिद्वंदी थी इनमें से ज्यादातर गायकी के साथ- साथ अभिनय भी करते थे. लोग इनके चेहरे से भी इन्हें पहचानते थे लेकिन मेरी आवाज ही काफी थी. दर्शकों ने मेरी आवाज को हमेशा ही पसंद किया और मुझे काम मिलता गया. मैंने कभी किसी संगीतकार से काम नहीं मांगा. यही वजह है कि जब इंडस्ट्री में ग्रुपिज्म बढ़ गया तो मैंने इंडस्ट्री छोड़ दी. मुझे खुशी है कि जब मैंने इंडस्ट्री छोड़ी उस वक्त भी मैं टाप पर थी. फिल्म किस्मत का गीत हाय में तेरे कुर्बान बहुत हिट हुआ था. वही मेरा आखिरी गीत था. उसके बाद मैंने कभी माइक नहीं पकड़ी.

आज भी संगीत से लगावः मेरा संगीत से लगाव आज भी कम नहीं हुआ है. मैं संगीत पर आधारित रियैलिटी शोज शौक से देखती हूं. यह मेरी दिनचर्या का अहम हिस्सा है. डॉक्टर और खाने पीने के बाद जो भी समय मिलता है. मैं टेलिविजन के साथ ही बिताती हूं. टेलिविजन मौजूदा दौर में सोनू निगम की आवाज मुझे अच्छी लगती है. मुझे रिमिक्स गानों से भी कोई परेशानी नहीं है. सैंया दिल में आना... लेके पहला पहला प्यार जैसे मेरे गाये गीतों के रिमीक्स वर्जन भी मैं चाव से सुनती हूं. मुझे तो खुशी है कि कम से कम रिमिक्स गानों की वजह से आज की युवा पीढ़ी पुराने गीतों से रुबरु तो होती है. आज की फिल्मों का गीत- संगीत मुझे अच्छा लगता है लेकिन एक बात जो अखरती है वह यह कि आज की पीढ़ी अपने सीनियर का उतना सम्मान नहीं देती, जितनी की हमारी पीढ़ी देती थी.

कोई गिला नहींः मुझे किसी से कोई गिला- शिकवा नहीं है. इंडस्ट्री मेरी खबर क्यों नहीं लेती मुझे शिकायत नहीं है. गायकी मेरा जुनून था. मैंने उसे शिद्दत से जिया. उससे ज्यादा मुझे किसी से कोई उम्मीद नहीं थी. मुझे तो उस वक्त भी दुख नहीं हुआ था जब अभिनेत्री सायरा बानो की दादी समशाद बेगम के मरने पर सभी ने सोचा मैं मर गयी हूं. कई प्रतिष्ठित अखबारों और चैनलों में मेरी तसवीर दिखाई गयी थी. मेरी बेटी ने कहा कि हमें इन अखबारों पर केस करना चाहिए लेकिन मैंने मना कर दिया. आखिरकार सच सामने ही गया. हाल ही में जब मुझे पद्मभूषण मिला तो कईयों ने मुझसे पूछा कि क्या आपको लगता नहीं कि आपकी सुध लेने में सरकार ने देर कर दी. देर की या नहीं मैं नहीं जानती लेकिन यह अच्छी तरह से जानती हूं कि अगर पहले मिलता तो शायद इतनी खुशी नहीं होती थी जितनी अभी मिलने से हुई है. वैसे मैं अभी भी जवान हूं.

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