20110913

दरअसल, बाजार सरल हिंदी का है ः प्रसून जोशी



मेरा मानना है कि भाषा एक नदी की तरह होती है. हम उसे बहने से नहीं रोक सकते हैं. अगर रोक दिया तो वह एक जगह एकत्रित होकर मैली हो जायेगी. मेरा मानना है कि हर भाषा की अपनी खूबी होती है और हम उसे कभी नकार नहीं सकते. कोई भी भाषा किसी पर हावी नहीं होती. सबकी अपनी गुणवता है. आधार है. प्रायः हम हिंदी भाषा और अंग्रेजी भाषा को लेकर आपस में वाद विवाद करते हैं. हमें लगता है कि हिंदी भाषा की अनदेखी की जा रही है. हिंदी भाषियों को भारत में ही अपने देश में अधिक महत्व नहीं दिया जा रहा है. जबकि यही हमारी रोजी रोटी की भाषा है. लेकिन मेरा मानना है कि किसी भी भाषा के विलुत्फ होने की चिंता करना निराधार है. मेरा यहां यह कहने का बिल्कुल अर्थ नहीं कि मैं यह कह रहा हूं कि अंग्रेजी भाषा का अधिक इस्तेमाल हो और हिंदी का नहीं. लेकिन अगर आप गौर करें तो अब हम हिंदी के साथ अगर अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल या उसके शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो इसकी वजह यह नहीं कि जबरन अंग्रेजी शब्दों को लाया जा रहा है, बल्कि हिंदी भाषा के साथ उसका मिश्रण सही तरीके से कम्युनिकेशन का माध्यम बन जाता है. वह जरूरी भी है. मैं हमेशा हिंदी भाषा को विकसित करना चाहता हूं. मेरी अपनी पूरी कोशिश होती है कि मैं इस भाषा को और विकसित करूं और इसे बढ़ावा दूं. और मैं यही कहता भी हूं. फिर चाहे वह मीडिया की भाषा हो. बॉलीवुड की भाषा हो या विज्ञापनों की. सच यही है कि सबसे अधिक इसी भाषा को समझनेवाले लोग हैं. इसलिए मेरी अपनी कोशिश यही होती है कि मैं ऐसी हिंदी का इस्तेमाल करूं जो सबके समझ में आये. यही वजह है कि कई जगह में शुध्द हिंदी का इस्तेमाल करने की बजाय मैं बोलचाल की हिंदी भाषा का प्रयोग करता हूं. यह सच है कि आज हिंदी से ही हमें रोजगार मिल रहा है.हिंदी सिनेमा सबसे लोकप्रिय है. विज्ञापन, हिंदी न्यूज चैनल की लोकप्रियता है. लेकिन हमें यह समझना होगा कि वह हिंदी बोलचाल की भाषावाली हिंदी है. अगर हम हर वक्त हिंदी के नाम पर शुध्द हिंदी का प्रयोग करने लगे तो वह गलत होगा. मैं यह भी नहीं कहता कि गुरुकुल परंपरा आज के दौर में अप्रासंगिक है. मैं उस परंपरा का आदर करता हूं. लेकिन हां, जहां बात भाषा की आती है तो मैं यही कहूंगा कि भाषा का सरल होना उसकी पहली शर्त जरूर है.यह सच है कि अब दूरदर्शनवाली हिंदी किसी के पले नहीं पड़ेगी. चूंकि अब लोग जिंदगी सरल चाहते हैं और सरल भाषा के लिए आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल सही होगा. फिर चाहे वह एंटरटेनमेंट का मामला हो या फिर शिक्षा का. लेकिन यह भी सच है कि बाजार वाकई हिंदी का ही है. बल्कि ऐसा कहना चाहूंगा कि बाजार सरल हिंदी का है.इसलिए हम हिंदीभाषियों को इस बात का भय बिल्कुल खत्म कर देना चाहिए कि हिंदी विलुफ्त हो जायेगी. अगर हिंदी भाषा की अहमियत खत्म हो जाती तो क्यों बड़े बड़े अंग्रेजी चैनल भी अपने हिंदी चैनल को लाने की तैयारी करते. हम हिंदी भाषी खुद अपनी भाषा को बोलने में संकोच करते हैं. कोई अंग्रेजी भाषी हमें कमतर आंकने में इसलिए कामयाब हो जाता है. मुझे वाकई अब तक यह बात समझ नहीं आती, जिनकी हिंदी अच्छी है. वह इस बात पर गर्व महसूस करने की बजाय इसलिए दुखी रहते हैं कि यार मेरी अंग्रेजी अच्छी नहीं. उन्हें खुद में शर्मिंदगी होती है और फिर वह टूटी फूटी अंग्रेजी का इस्तेमाल करने लगते हैं. उन्हें यह बात समझनी होगी कि उन्हें किसी और भाषा से कोई खतरा नहीं है. चूंकि भविष्य तो इसी भाषा का ही है. जब तक भारत में हैं हम. हमें हिंदी को ही बाजार की भाषा मान कर चलना होगा. चूंकि हमारा पाठक, श्रोता, ग्राहक, दर्शक में अधिकतर संख्या तो हिंदी भाषियों की ही है. चूंकि वह खुद यह समझता है कि हिंदी अंग्रेजी से ऊपर नहीं. मैं खुद कई आमबोल चाल की भाषा का इस्तेमाब करता हूं. जैसे खुदरा, रत्ती, रेशम. आप गौर करें तो हिंदी भाषा को कई बार लोगों तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करना पड़ रहा है. मतलब प्राथमिकता तब भी हिंदी ही है. सो, मैं इस बात से बिल्कुल असहमति रखता हूं कि अंग्रेजी भाषा से हिंदी को खतरा है. और भारत में केवल अंग्रेजी भाषा का गुणगान हो रहा है. अगर मैं अपने क्षेत्र की बात करूं तो आज कल साहित्य की हिंदी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है और बोलचाल की भाषा का भी. यह जरूर हकीकत है कि इन दिनों हमारे कई हिंदी भाषी कलाकार भी रोमन का इस्तेमाल कर स्क्रिप्ट पढ़ते हैं. उन्हें हिंदी फिल्मों के लिए भी स्क्रिप्ट में रोमन चाहिए. लेकिन अब भी कुछ ऐसे अमिताभ बच्चन उनके दौर के कई कलाकार हैं, जो हिंदी भाषा को ही मान कर चलते हैं. और इस भाषा में ही बातचीत भी करते हैं. अब भी गायकों, गीतकारों लेखकों की भाषा तो हिंदी ही है. फिर इसे अप्रासंगिक हम कैसे मान सकते.और अगर जरूरत पड़े तो हिंदी अंग्रेजी मिश्रण का भी. जैसे प्रायः हम विज्ञापनों के लिए करते रहते हैं. जरूरत के अनुसार. मेरा मानना है कि बाजार में हिंदी हमेशा बनी रहेगी. जरूरत है तो इसे सही तरीके से लोगों तक पहुंचाने की और हम सबको इसकी महत्ता समझने की. हिंदी भाषा है और भाषा का काम ही है कि वह सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सके, ताकि इससे दूसरों से बात की जा सके. उनसे संपर्क बनाया जा सके. तो किसी भी भाषा को कमतर नहीं आंकना चाहिए. बल्कि हमें तो खुश होना चाहिए अंग्रेजी भाषा में करोड़ों की संख्या में शब्द हैं, जबकि हिंदी महज 1लाख 20 हजार शब्दों के सहारे ही कितने लंबे सालों से कमाल करता रहा है. उत्तर भारत में अब भी हिंदी भाषा के अखबारों की ही खपत है. चूंकि वहां शिक्षा की गति बढ़ रही है और हिंदी आम लोगों की ही भाषा है. अब भी अंग्रेजी को एलिट क्लास की भाषा ही समझा जाता है.

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