20110913

कुछ ओरिजनल करने की कोशिश है ः प्रवाल रमण


संक्षिप्त परिचय ः प्रवाल रमण, झारखंड के जमशेदपुर के लोयेला स्कूल से प्राथमिक शिक्षा. फिर दिल्ली किरोड़ीमल कॉलेज से उच्च शिक्षा. फिर मुंबई की तरफ रुख किया. यही संत जेवियर्स कॉलेज में दाखिला लिया. तबसे लगातार फिल्म मेकिंग में सक्रिय. फिल्म डार्लिंग, डरना मना है, गायब जैसी फिल्मों का निदर्ेशन और लेखन. हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 404-एरर नॉट फाउंड को मिली है सफलता.

शहर छोटा हो या बड़ा, सपने हमेशा बड़े देखें ः प्रवाल रमण

शहर छोटा या बड़ा नहीं होता. दरअसल, मैं मानता हूं कि कोई भी शहर छोटा होता ही नहीं, क्योंकि छोटे शहर में भी बड़े विचारों का वास होता है. मैं मानता हूं कि कोई भी व्यक्ति अपने शहर से नहीं विचारों से बड़ा होता है. आप कहीं भी रहें. अपने विचारों को खुला आसमान दीजिए और सपने बड़े देखिए. न सिर्फ देखिए, उसे पूरा करने की भी कोशिश करें. मैं नहीं मानता की जीवन में स्ट्रगल( संघर्ष) जैसा कुछ भी होता है. हम सभी जिस दौर को संघर्ष कहते हैं. दरअसल व सीखने की प्रक्रिया है. किसी भी स्कूल में हम तुरंत उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर लेते. हमें उसके लिए एक पूरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और इसमें वक्त तो लगता है ही. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप उसे संघर्ष का नाम दें. मेरा मानना है कि अगर व्यक्ति दिल से मेहनत करे, तो सफलता मिलना सुनिश्चित है. आपको कोई नहीं रोक सकता. हुनर है तो सभी आपके कायल होंगे. मैंने हमेशा से अपना विजन स्पष्ट रखा था कि मुझे निदर्ेशन के क्षेत्र में ही जाना है. मैं जब मुंबई आया. मैंने बिल्कुल शुरुआती दौर से सीखना शुरू किया. चूंकि निदर्र्ेशक इम्तियाज अली को जमशेदपुर से ही जानता था. उनका सहयोग मिला. उस वक्त वह पुरुषक्षेत्र व इम्तिहान सीरियल का निर्माण कर रहे थे. मैं उनके साथ जुड़ा. बहुत कुछ सीखने का मौका मिला. मनोज वाजपेयी को मेरा काम पसंद आया था. उनके माध्यम से राम गोपाल वर्मा के साथ जुड़ गया. फिल्म शूल में अस्टिट करना शुरू किया. उन्होंने मुझे उस वक्त12 मोनांटज की शूटिंग के लिए कहा. मैंने किया और उन्हें काम पसंद आया. नतीजन मुझे कंपनी में काम करने का मौका मिला. फिर उनके साथ जंगल जैसी फिल्मों से भी जुड़ा रहा. उन्होंने मेरे काम को देखते हुए मुझे डरना मना है का प्रोजेक्ट करने को कहा. इस प्रोजेक्ट के माध्यम से मैं कई चीजें सीखता चला गया. खासतौर से बारीकियां. फिर मिस्टर वर्मा ने फिल्म गायब का कंसेप्ट मेरे सामने रखा. मैंने पहले उसे नकार दिया था. चूंकि दर्शक मिस्टर इंडिया देख चुके हैं. मिस्टर वर्मा ने कहा कि वे इस फिल्म को सुपरपावर किरदार न बना कर आम इंसान बनायेंगे और लव स्टोरी होगी. कर पाओगे? मैंने कहा. चैलेंज होगा ऐसी कहानी को गढ़ना. मैंने गढ़ा और गायब बनी. फिर डार्लिंग फिल्म बनाने का मौका मिला. इसके बाद चूंकि मुझे 404 जैसी फिल्म बनानी थी. मुझे ब्रेक चाहिए था. यह फिल्म बेहद एक्रागता की मांग करती थी, सो मैंने ब्रेक लिया. शोध व स्क्रिप्ट की तैयारी के लिए. चूंकि मैं मानता हूं कि हमें सबसे अधिक वक्त स्क्रिप्ट पर ही देना चाहिए, लेकिन हिंदी फिल्मों में इन पर कम ही ध्यान जा पाता है. और साथ ही मैं यह मानता हूं कि मौलिकता हमेशा मौलिकता ही होती है. मुझे रीमिक्स, रीमेक जैसी चीजें आकर्षित नहीं करती. सो मैंने 404 के रूप में मौलिक कहानी तैयार की. और दर्शकों को यह पसंद आ रही है. मेरा मानना है कि लीक से हट कर फिल्में बनती रहनी चाहिए. नये निदर्ेशकों को मौका मिलना चाहिए. यह अब हमें समझना ही होगा कि स्टारविहीन फिल्में भी दर्शकों को सिनेमाघर तक पहुंचा सकती है. मैं व्यक्तिगत तौर पर सुधीर मिश्रा, अनुराग कश्यप, दिबाकर बनर्जी, निशिकांत कामत की फिल्मों को पसंद करता हूं. मैं मानता हूं कि मैंने मेहनत की. वक्त दिया. धैर्य रखा और अपने विचारों को डगमगाने नहीं दिया. युवाओं को भी ऐसा ही करना चाहिए. मैं आज भी जमशेदपुर से बेहद भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ हूं. वहां के टेलको क्षेत्र में बॉबी बाइक से सफर करना मैं आज भी नहीं भूला. पउजा के पास जाकर चाय पीना, मद्रासी होटल में डोसा खाना बेहद पसंद था. स्कूल के बेंडी क्लब में जाना. स्नूकर खेलना बहुत पसंद था. लोयेला स्कूल के सामने स्वामी के डोसा को नहीं भूला हूं.

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