20110913

बॉलीवुड कलात्मक फिल्में बनाने में आगे, हॉलीवुड तकनीक में : आमिर खान

दी सिनेमा ने पिछले कई दौर में अपना स्वरूप बदला है. भले ही लगातार हिंदी सिनेमा के आलोचक यह बात कहते रहें कि हम आज भी हॉलीवु्ड से या दुनिया के बाकी देशों से पीछे हैं. लेकिन हम इस सच्चाई को नकार नहीं सकते कि हॉलीवुड के बाद अगर कहीं सबसे अधिक फिल्में देखी जाती हैं तो वह भारत की फिल्में ही हैं. मेरा मानना है कि भारत में हिंदी सिनेमा ने खासतौर से बहुत विकास किया है. अब यहां न केवल तकनीकी रूपों से कई बदलाव आ रहे हैं. बल्कि कई रूपों में उसने खुद को साबित किया है. प्रायः मैं सुनता रहता हूं कि लोग कहते हैं कि भारतीय फिल्में दरअसल विदेशों के फिल्म फेस्टिवल में चयनित नहीं होती. बल्कि यहां के लोग खुद वहां स्क्रिनिंग करने की कोशिश करते रहते हैं. खासतौर से कान के बारे में यह बातचीत होती है. मेरा मानना है कि कान जैसे फिल्मोत्सव में सिर्फ इसी तरह से भारतीय फिल्में नहीं पहुंचतीं. छोटी भारतीय फिल्में भी वहां प्रतियोगिताओं में जा रही हैं. वाकई, यह सच्चाई है कि अभी हमें बहुत कुछ सीखना है. लेकिन हम अपनी तुलना हॉलीवुड से करें ही क्यों. वहां के दर्शक और यहां के दर्शकों में बहुत अंतर है. हम भारत में दर्शकों का ख्याल रख कर फिल्में बनाते हैं. मैं इस बात का बिल्कुल विरोध नहीं करता कि हमें विकसित नहीं होना चाहिए. और सिर्फ मनोरंजन ही सिनेमा का उद्देश्य नहीं. लेकिन हम दर्शक की पसंद को पीछे नहीं छोड़ सकते. भारत में लगभग 25 भाषाओं में फिल्में बनती हैं. लेकिन इसके बावजूद हिंदी फिल्में ही सबसे अधिक लोकप्रिय हैं. इसकी वजह यह है कि दर्शकों को हिंदी फिल्में अधिक आकर्षित करती है. प्रायः सुनता हूं कि हम विदेशों की नकल कर रहे हैं. हम उनकी तरह होने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन हम कभी इस बात पर चर्चा नहीं करते कि उन लोगों ने हमारे भारत से भी क्या चीजें ली हैं. मैंने ईरान के महान फिल्मकार से यह बात सुनी है कि उन्होंने सत्यजीत रे से बहुत पे्रेरणा ली है. हाल ही में मैंने किसी अखबार में यह पढ़ा कि किस तरह तुर्क में फिल्मों का निर्माण हो रहा है और वे सत्यजीत रे को अपना आदर्श मानते हैं,तो मैं ऐसा बिल्कुल नहीं मानता कि हम सिर्फ नकल कर रहे हैं. मेरा मानना है कि आप किसी भी कला से प्रभावित होते हैं और फिर उसके आधार पर अगर अपनी सोच बना कर कुछ कार्य करते हैं तो आप उसे नकल नहीं कह सकते. अगर उस लिहाज से देखें तो पूरे भारत में कुछ ही हिंदी फिल्में बच जायेंगी, जिन्हें हम मौलिक कह सकते हैं. मौलिकता का प्रश्न एक गंभीर प्रश्न है. और अपवाद है. किसी भी चीज को गंभीरता से देखना जरूरी है. अक्सर राष्ट्रीय पुरस्कारों पर भी प्रश्न चिन्ह लगते हैं. मेरी फिल्में जब लगातार ऑस्कर के लिए नामंकित होने लगी, लोगों को लगा मैंने लॉबी बना कर रखी है. इसलिए मैंने फिर तय किया कि मैं किसी भी राष्ट्रीय पुरस्कार या किसी भी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों का हिस्सा नहीं बनूंगा.मैं मानता हूं कि अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर के महोत्सवों में भारतीय निदर्ेशकों को जाने का मौका मिलता है तो हमें इसी बहाने बहुत कुछ नयी चीजें सीखने को मिलती है. हमें उन्हें सीखने की कोशिश करनी चाहिए. भारतीय सिनेमा का इतिहास खुद ही बहुत समृध्द हैं. शानदार, विषयपरक और कलात्मक सिनेमा बनाने में आज भी भारत आगे है. भले ही हम अभी भी तकनीक में पीछे हों. इसकी एक वजह यह भी है कि हमने अब तक सिनेमा के विषय को मेनस्ट्रीम में नहीं लाया. विदेशों में फिल्में देखने दिखाने की संस्कृति है. हमारे यहां नहीं है. इसलिए हमारे यहां वैसे लोग तैयार नहीं हो पाते. दूसरी बात हम सिनेमा से जुड़े लोगों को बस एक संस्कृति तैयार करने की जरूरत है. हमने कई सालों के बाद वन टाइम शेडयूलिंग की परंपरा शुरू की. हम आज भी मल्टी स्टारर फिल्मों को प्राथमिकता देते हैं. आज भी कई छोटी फिल्में हैं, जिन्हें प्रोडयूसर नहीं मिल पाते. जरूरत है उस संस्कृति के विकास की. हमारे यहां पत्रकारों को भी सिनेमा के प्रति गंभीर जिम्मेदारी निभानी चाहिए. बजाय इसके कि कौन ेकलाकार किसके प्रति क्या प्रतिक्रिया रखते हैं.यह सोचने की बजाय उन्हें हर तरह की फिल्मों के बारे में विस्तार से लिख कर लोगों तक जानकारी पहुंचानी चाहिए, ताकि पाठकों को भी विषयपरक और तमाम देशों की फिल्मों के बारे में जानकारी मिल पाये. हम जागरूक करेंगे. जानकारी बढ़ायेंगे, तभी सिनेमा बनानेवालों का भी हौंसला बढ़ेगा. मैं इस बात का पूरजोर विरोध करता हूं कि हमारा सिनेमा देश के किसी भी सिनेमा जगत से पिछड़ा है. पिछड़ा होता तो फिर मैडम तुषयाद में आज भी बॉलीवुड के अधिकतर कलाकारों का स्टैचू वहां नहीं होता. कलाकारों की लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है. यूं ही देश दुनिया के तमाम बड़े नाम भारतीय कलाकारों को अपने ब्रांड अंबैस्डर के रूप में नहीं चुनते. हां, बस जरूरत है कि हम एक अच्छी संस्कृति का विकास रें.

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