20110913

झारखंड कनेक्शन




फिल्म गांधी टू हिटलर

हिंदी होगी हिटलर की भाषा नलिन सिंह

लेखक व अभिनेता नलिन सिंह का बचपन झारखंड के रांची में गुजरा. फिर दिल्ली में उच्च शिक्षा. बतौर लेखक व अभिनेता पहली फिल्म.

इस शुक्रवार रिलीज हो रही फिल्म गांधी टू हिटलर में अहम किरदार निभा रहे नलिन सिंह रांची से हैं. नलिन ने फिल्म में अहम भूमिका निभाने के साथ साथ फिल्म की कहानी भी लिखी है. फिल्म गांधी टू हिटलर दरअसल, उनके दिमाग से ही निकली कहानी है. अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई फिल्मोत्सव में अपनी खास पहचान स्थापित कर चुकी गांधी टू हिटलर एक पीरियड फिल्म है. इस फिल्म के माध्यम से एक महत्वपूर्ण मुद्दे को दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. गांधीजी पर अब तक कई फिल्मों का निर्माण हो चुका है. लेकिन अब तक गांधीजी व हिटलर के बीच पत्रों के माध्यम से हुई बातचीत को अब तक दर्शकों के सामने नहीं लाया गया था. गांधी टू हिटलर इसी विषय का विस्तार है. नलिन मानते हैं कि इस तरह की कहानी हिंदी सिनेमा में कही नहीं जाती. जबकि हमें अपने इतिहास के कई पन्नों को खंगालने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि गांधीजी के विचार आज भी जिंदा हैं. और उनके विचार में इतनी ताकत है कि वह देश की गंभीर समस्या का समाधान निकाल सकते हैं. बस इसी नजरिये से फिल्म की कहानी लिखी है. नलिन बताते हैं कि उनका बचपन रांची में बीता है. और वहां के माहौल ने उन्हें इतिहास के प्रति गंभीर बनाया. रांची के माहौल की वजह से ही उन्होंने गंभीरता व गहराई से विषयों की जानकारी हासिल करना शुरू किया. नलिन का रांची के अलावा बिहार के पटना से भी खास लगाव रहा. फिर दिल्ली का सफर तय किया. वही फिल्मों से जुड़ाव हुआ. खास बात यह है कि नलिन अब भी दिल्ली में ही रहते हैं और उन्होंने इस फिल्म का निर्माण मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के मदद के बिना पूरी की. दिल्ली में ही शूटिंग हुई. नलिन बताते हैं कि चूंकि फिल्म पीरियड फिल्म थी. इसलिए हमने कई जगहों की खोजबीन करने के बाद दिल्ली का खास इलाका तलाशा. वहां उस दौर का सेट तैयार किया, जिसमें बहुत मेहनत भी करनी पड़ी. बातचीत को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं कि पहले फिल्म में अनुपम खेर इस किरदार को निभा रहे थे. लेकिन फिर उन्होंने फिल्म से नाम वापस ले लिया. फिर हमने रघुवीर यादव से बात की. चूंकि दर्शकों के सामने वह स्थापित नाम है और वह बेहतरीन कलाकार हैं. नेहा धूपिया को हिटलर की पत्नी के किरदार में चुनने की खास वजह यह थी कि नेहा का चेहरा भारतीय नहीं है और उनके उच्चारण भी भारतीय नहीं हैं. नेहा को जब हमने कहानी सुनायी. उन्होंने तुरंत हां कह दी. नलिन का मानना है कि फिल्म में उन्हें किसी भी तरह के आयटम सांग की जरूरत नहीं पड़ी. लेकिन इसके बावजूद फिल्म के गीत इतने बेहतरीन हैं. इसमें देशभक्ति गाने भी हैं. इस फिल्म में एक और खास बात होगी. अन्य फिल्मों की अपेक्षा इस फिल्म में नलिन ने हिटलर को हिंदी भाषा में संवाद दिये हैं. नलिन इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद जल्द ही एक अंग्रेजी फिल्म में मुख्य किरदार निभाते नजर आयेंगे. इसके बाद वह निदर्ेशन के क्षेत्र में अपना कदम बढ़ाना चाहते हैं. नलिन पीरियड फिल्में बनाने में दिलचस्पी लेते हैं और जल्द ही वह सद्दाम हुसैन के विषय पर भी फिल्म बनायेंगे. गौरतलब है खेले हम जी जान से के बाद गांधी टू हिटलर ऐतिहासिक मुद्दों पर आधारित फिल्म है.

तब बबलगम कराता था दोस्ती

फिल्म ः बबलगम

निदर्ेशक ः संजीवन लाल.

झारखंड के जमशेदपुर के रहनेवाले संजीवन लाल की प्राथमिक शिक्षा जमशेदपुर से पूरी हुई. शुरुआती दौर से ही फिल्मों की तरफ झुकाव था. सो, एफटीआइआइ पुणे से निदर्ेशन में ग्रेजुएशन किया. फिर मुंबई आना. यहां कई टेलीफिल्म्स का निर्माण. रिश्ते, बेस्ट सेलर जैसे शोज का लेखन. कई डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण. बतौर निदर्ेशक पहली फीचर फिल्म बबलगम का निदर्ेशन. उड़ान के बाद दूसरी फिल्म जिसकी पूरी शूटिंग जमशेदपुर में पूरी की गयी. गौरतलब है कि फिल्म में सह कलाकार के रूप में जमशेदपुर की बच्ची अजीन भी नजर आयेंगी. वे फिल्म में विनीता का किरदार निभा रही हैं.

विक्रमादित्य मोटवाने की फिल्म उड़ान के बाद एक बार फिर से जमशेदपुर हिंदी सिनेमा पर बड़े फलख पर नजर आयेगा फिल्म बबलगम के माध्यम से. जमशेदपुर के ही रहनेवाले संजीवन लाल ने 14 साल की उम्र के बच्चों पर आधारित एक बेहतरीन फिल्म का निर्माण करने की कोशिश की है. इस फिल्म की पूरी शूटिंग जमशेदपुर में की गयी है.

कौन-कौन से इलाके ः जमशेदपुर का बेलडीह लेक फ्लैट्स, बेल्डी लेक के आसपास के इलाके, लॉयला स्कूल, कॉन्वेंट स्कूल, जुबली पार्क, बिस्टुपुर माकर्ेट, नॉरथन टाउन, कायसर बंगलौ, डिमना डैम, टिनप्लेन गोल्फ ग्राउंड जैसे इलाके नजर आयेंगे. हिंदी सिनेमा की फिल्में अब धीरे धीरे झारखंड जैसे छोटे राज्यों की तरफ भी रुख कर रही है. यह एक सकारात्मक संकेत है. खुद संजीवन लाल बताते हैं कि वे जमशेदपुर से हमेशा भावुक रूप से जुड़े रहे हैं. भले ही उन्हें जमशेदपुर से दूर हुए बहुत वक्त हो गया हो. लेकिन आज भी वह जमशेदपुर से अलग नहीं हुए हैं. जमशेदपुर ही क्यों ः बकौल संजीवन जमशेदपुर में बेहतरीन प्राकृतिक सौंध्दर्य है. खूबसूरती है. शांत वातावरण है और इसके लोकेशन जीवंत लगते हैं. दूसरी खास वजह यह भी रही कि मेरी फिल्म की कहानी 80 के दशक की है. और उस दशक को आज के दौर में दर्शाने के लिए जमशेदपुर से बेहतरीन और कोई स्थान हो ही नहीं सकता था.

क्या है कहानी ः बकौल संजीवन लाल मैंने अपनी फिल्म की पृष्ठभूमि 80 के दशक की इसलिए रखी है. चूंकि उस दौर में आज के वक्त की तरह इंटरनेट, वीडियो गेम, टीवी या फिर किसी तकनीक के जुड़ी इतनी चीजें नहीं थी. ऐसे में बच्चे अपना अधिकतर वक्त अपने मोहल्ले के बच्चों व दोस्तों के साथ गुजारते थे. तो, इसी दौर में कैसे एक प्रेम कहानी की उपज होती है. फिल्म इसी विषय के इर्द-गिर्द घूमती है.

निरुपमा ऑनर किलिंग बनी प्रेरणा

फिल्म ः खाप

निदर्ेशक ः अजय सिन्हा

झारखंड के तिलैया की रहनेवाली निरुपमा पाठक की हत्या ऑनर किलिंग के कारण हुई थी. ऑनर किलिंग का जनक है खाप पंचायत. कुछ इसी मुद्दे से प्रेरित होकर एक अहम कहानी कहने की कोशिश कर रहे हैं निदर्ेशक अजय सिन्हा. हालांकि इससे पहले भी दिबाकर बनर्जी ने अपनी फिल्म लव सेक्स धोखा में ऑनर किलिंग का मुद्दा उजागर किया था. खाप इस पूरे मुद्दे पर इसका और विस्तार है. खुद अजय सिन्हा बताते हैं कि उन्हें इस विषय को परदे पर उजागर करने के लिए कई विरोधों का सामना करना पड़ा है. लेकिन यह महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा है. और इसकी तसवीर प्रस्तुत की जानी चाहिए. वरना पूरे भारत में लगतार कई निरुपमा की हत्या होती रहेगी. फिल्म में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं ओम पुरी, युविका व मोहिनिश बहल. अजय सिन्हा बताते हैं कि लगातार कोलकाता, बिहार, झारखंड, हरियाणा, पंजाब में हो रही ऑनर किलिंग ने ही उन्हें फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया और खासतौर से झारखंड की निरुपमा पाठक हत्याकांड के मामले ने.

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