20110913

बचपन का रापचिक रोमांच चिल्लर पार्टी



निस्संदेह फिल्म का शीर्षक दर्शकों को सोचने पर मजबूर करेगा कि फिल्म का विषय आखिर है क्या. 8 जुलाई को रिलीज हो रही फिल्म चिल्लर पार्टी बच्चों के बचपन की जिंदगी को नये तरीके से सिल्वर स्क्रीन पर प्रस्तुत करेगी. कैसे? इस संदर्भ में फिल्म के निदर्ेशक विकास बहल ने अनुप्रिया से विस्तार में बातचीत की. विकास यूटीवी के साथ लंबे अरसे से जुड़े हैं. निदर्ेशन के क्षेत्र में यह पहली पारी है.

भारत में बच्चों की कहानियां कम कही जाती है. और कुछेक फिल्में बनती भी हैं तो वे बच्चों के डिप्रेशन को लेकर होती हैं या फिर उनसे संबंधित किसी बीमारी को लेकर लेकिन इसके अलावा भी बचपन की जिंदगी में एक अलग रोमांच होता है. चिल्लर पार्टी उसी का विस्तार है. कुछ ऐसा ही मानते हैं निदर्ेशक विकास बहल.

चिल्लर गैंग

बकौल विकास बहल चिल्लर पार्टी जैसी फिल्में बनाने का एकमात्र उद्देश्य यही है कि पहली बात कि हमें भारत में बच्चों की कहानियों पर ध्यान देना चाहिए. उनके लिए और उन्हें आधार मान कर फिल्में बननी ही चाहिए. मैंने अब तक गौर किया है कि हिंदी सिनेमा में जितनी भी फिल्में बनती आयीं हैं वे सभी बच्चों की बीमारियों या उनके बचपन के डिप्रेशन को उजागर करती है. लेकिन मैं मानता हूं कि बचपन हर व्यक्ति के जीवन का खास पल होता है. और उसमें एक अलग सा रोमांच होता है. उस रोमांच में हर बच्चा कुछ अलग करता है.खास करता है. वह बिंदास होता है. बेफिक्र होता है. और कुछ ऐसे ही बच्चे मिल कर अपनी गैंग बनाते हैं. उनकी भाषा अपनी होती है. स्टाइल अपना होता है. आप गौर करें तो आपके आसपास ऐसी कहानियां हैं. कई ऐसे बच्चे हैं जो कुछ ऐसे ही होते हैं. उनमें एक अलग सी प्रतिभा होती है. वे अपनी बात अपने बड़ों के सामने अलग रूप में रखते हैं. चिल्लर पार्टी इन्हीं बातों का विस्तार है. हमने शीर्षक चिल्लर इसलिए रखा है, चूंकि जिस तरह हम पैसों में चेंज पैसे( चिल्लर) पैसों को अहमियत नहीं देते. लेकिन कई बार वही चेंज पैसे ही कमाल दिखा जाते हैं. वे चेंज पैसों की तरह ही यह चिल्लर पार्टी है. जो खूब मस्ती करती है और अलग ही जिंदगी जीती है. सभी बच्चे अपने आपस के गैंग में एक दूसरे को किसी नाम से पुकारते हैं. बेहद हीरोइक होता है वह बचपन.कुछ इसी तरह कहानी कहेगी चिल्लर पार्टी.

फिल्म के किरदार

फिल्म के किरदारों को चुनने में हमने लगभग 8 हजार बच्चों का ऑडिशन किया था . खासतौर से हमने उत्तर भारत के बच्चों का ऑडिशन किया. दिल्ली के कई बच्चे फिल्म में नजर आयेंगे. चूंकि हम यही चाहते थे कि किसी जाने पहचाने किरदारों को चुनने की बजाय हम बिल्कुल नये चेहरे की तलाश में थे. और ऑडिशन लेने के बाद हम दंग थे. एक से बढ़ कर एक टैलेंट मिले हमें.

बच्चे वाकई मन के सच्चे होते हैं

मैं इस बात को बिल्कुल नहीं मानता कि बच्चों से एक्टिंग करवाना मुश्किल होता है. मैं मानता हूं कि जितनी आसानी से बच्चे अभिनय करते. बड़े नहीं करते. उनमें मासूमियत होती है. किसी भी तरह का ग्लैमर नहीं होता. इसलिए वे अधिक साथ देते हैं. मुझे तो फिल्म बनाने में बच्चों के साथ बहुत मजा आया.फिल्म की अधिकतर शूटिंग मुंबई, पुणे में की गयी

पहली बार निदर्ेशन

अब तक फिल्मों के प्रोडक्शन को बहुत नजदीक से देखा है. सो बारीकियां समझता हूं. लेकिन निदर्ेशन करने में मुझे बड़ा मजा आया. मैं और नीतेश यूं ही बैठ कर कहानी लिख रहे थे. लगा कि चलो यार इस पर फिल्म बनाते हैं. यूटीवी से बात की,उनका सपोर्ट मिला और बस बन गयी फिल्म. मैं नहीं मानता कि फिल्म में ऐसी किसी भाषा या शब्द का इस्तेमाल है जो बच्चों के लिए गलत होगा. मैं यही कहूंगा कि माता पिता इस फिल्म को जरूर देखें, ताकि उन्हें बच्चों की इस जिंदगी का भी पता चल पाये कि वह क्या कर सकते हैं. वह चुप रहते हैं तो चुप रहते हैं. लेकिन वे अगर ठान ले तो वह क्या कर सकते हैं. वह जुनून व जोश की कहानी है यह फिल्म.

खुश हूं कि सलमान का साथ मिला

इस तरह की फिल्मों को सलमान भाई का सपोर्ट मिला. खुशी की बात है. चूंकि दर्शक उन्हें पसंद करते हैं और सलमान हमेशा बच्चों के लिए कुछ न कुछ करते रहते हैं. ऐसे में चिल्लर पार्टी को भी उनका सहयोग मिला. चिल्लर के बच्चे भी दबंग हैं.

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