20110913

इरोम शर्मिला के समर्पण की अनदेखी क्यों : abhay



हम सभी एक ही देश में रहते हैं. ऐसा हम सोचते हैं. लेकिन क्या ऐसा वाकई है. अगर ऐसा होता तो भारत का ही एक भाग अछूता नहीं रहता. मैं भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की बात कर रहा हूं. आज भी वहां के राज्यों पर आधारित फिल्मों को प्रदर्शित होने से रोका जाता है. इसकी वजह यही है कि लोग नहीं चाहते कि हम वहां की त्रासदी को लोगों के सामने लायें. लेकिन यह भी सच है कि हम उस राज्य की अनदेखी करके यह साबित कर रहे हैं कि वह दरअसल, हमारा राज्य है ही नहीं. मैं मीडिया से यह सवाल करना चाहता हूं कि फिलवक्त भारत में अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के अनशन पर उसने इतनी बातें कहीं हैं. लगातार फुटेज दिखाये जा रहे हैं. कहानियां बन रही हैं. लाइव कवरेज हो रहा है. लेकिन मीडिया का एक चौथाई भाग शायद ही इस बात से वाकिफ होगा कि मणिपुर की एक युवती वर्ष 2000 से लगातार अनशन पर है. इरोम चानु शर्मिला नाम हैं उनका. लेकिन उनकी सूध लेनेवाला कोई नहीं है. दरअसल, भारत की यही परेशानी है. हम वही चीजें दिखाते हैं जो लोग देखना चाहते हैं. हर चीज में ग्लैमर है. लेकिन कभी उन चीजों पर गौर नहीं करते. जो वाकई एक असरदायक और महान काम कर रहे हैं. मैं प्रायः जब लोगों से मिलता हूं तो पूछता हूं कि क्या वह इरोम चानु शर्मिला को पहचानते हैं. कोई उनका नाम तक नहीं जानता. लेकिन सभी बाबा रामदेव को जानते हैं. मैं यहां बाबा रामदेव या किसी का भी विरोध नहीं कर रहा. बस इतना कहना चाहता हूं कि इरोम बिना शोर शराबा किये पिछले 11 साल से अनशन पर हैं. गौरतलब है कि उन्होंने वर्ष 2000 में 2 नवंबर को आरमड फोर्स स्पेशल पावल एक्ट के खिलाफ आवाज उठायी थी. लगातार मणिपुर में चल रहे दंगे के खिलाफ आवाज उठाई थी. हम सभी ग्लैमर वर्ल्ड में जी रहे लोगों को एक बात तो जरूर उन राज्यों में जाना चाहिए. किस परिस्थिति में रह कर वे खुद की जिंदगी जी रहे हैं. वे सिर्फ वही समझ सकते हैं. आये दिन अखबारों में बाकी सभी जगहों की खबरों को तरजीह दी जाती है. लेकिन इन राज्यों की खबरें कम से कम होती हैं. हम ऐसा कैसे कर सकते हैं. एक सेलिब्रिटी होने के पहले मेरा मानना है कि हम इंसान हैं. हमें अपना ख्याल रखने के साथ ही देश के प्रति भी कुछ जिम्मेदारी साबित करनी चाहिए. आप सोच कर देखें कैसे हम किसी महिला के इस बलिदान को भूल सकते हैं. मैं पहले कई बार मणिपुर और इस तरह के राज्यों में गया हूं. मैंने देखा है वहां की महिलाएं कैसे प्राकृतिक असमानता के बावजूद खुद को बुलंद बना कर रखती हैं. वे मेहनती हैं. जुझारू हैं. और कामयाब भी. अपने पूरे परिवार का ख्याल रखने के साथ ही वह बाहरी कामों में भी अपने पुरुष सदस्यों की मदद करने के लिए तैयार होती है. इरोम शर्मिला ने जिस वजह से यह ठोस कदम उठाया था. वह जगजाहिर है. लेकिन तीन दिनों के हड़ताल के बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है. यह कैसा कानून है. जो आम लोगों के लिए उठाई गयी आवाज को ही दबा देते हैं. मैं सिर्फ मीडिया से नहीं सरकार से भी पूछना चाहता हूं कि वह कैसे उनके योगदान और उनके द्वारा उठाये गये कदम की अनदेखी कर सकते हैं. इरोम को उनका हक मिलना चाहिए. वह सम्मान मिलना चाहिए. वह वाकई मणिपुर की लौह महिला हैं. लेकिन उपाधि मात्र देने से सारी समस्याओं का समाधान नहीं निकल सकता. लेकिन यह भारत है. तभी तो हम एक और स्वामी निगामंदा के इंतजार में हैं. ( स्वामी निगमानंदा की 114 दिनों के भूख हड़ताल के बाद हरिद्वार में मौत हो गयी थी, उनकी मांग थी कि गंगा के उत्खनन पर रोक की मांग की थी) मैं बस इतना जानता हूं कि उनकी मौत एक खास वजह से हुई. मुझे वाकई आश्चर्य होता है. अन्ना हजारे जैसे लोग जब अनशन पर जाते हैं तो तुरंत सरकार उनकी मांगे पूरी करती है. लेकिन कोई 11 साल से इस लड़ाई के लिए जूझ रहा है. बावजूद इसके उनकी अनदेखी की जा रही है. जब बाबा रामदेव बोलते हैं तो सभी सुनते हैं. लेकिन शर्मिला के विरोध, उनके समर्पण पर हमारा ध्यान क्यों नहीं जा रहा. क्यों अखबारों में लगातार उनसे संबंधित बातें नहीं छपती. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उन्हें समझ पायें. एक भारतीय होने के नागरिक मैंने अपनी तरफ से कुछ कदम उठाये हैं. मैं इरोम से कभी नहीं मिला.लेकिन मैं उनका पूरजोर समर्थन करता हूं. इतना तो मैं कर ही सकता हूं कि लोगों को उनके बारे में जानकारी दूं. मणिपुर में आज भी एफएसपीए का गलत तरीके से इस्तेमाल हो रहा है. खुद मनमोहन सिंह ने भी इसे क्रूर कानून माना है. फिर इस पर क्यों नहीं कुछ काम किये जा रहे हैं. मणिपुर हमारा ही हिस्सा है. हमें यह समझना ोगा.

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