इस रविवार हरिशंकर परसाई पर आधारित एक नाटक पॉपकॉर्न परसाई देखने का अवसर
मिला। अभिनेता दयाशंकर पाण्डेय ने अपने इस एकल नाटक में कई विभिन्न किरदार
निभाए। दयाशंकर का यह एक एकल नाटक, जिसमें वह लगातार एक घंटे तक दर्शकों रू
ब रू रहे। वे कहीं भटके नहीं। शायद उनकी इन्हीं खूबियों की वजह से लगान और
स्वदेस जैसी फिल्मों के हिस्सा रहे आशुतोष जैसे निर्देशक पसंद हैं। मनोरंजन
जगत को ऐसे वर्सेटाइल कलाकारों की जरूरत है। इस एकल नाटक में आज की बात थी और
बीते दौर की भी। इसी नाटक के एक हिस्से में बात होती है कि निजता और प्रतिभा
ये दोनों एक साथ नहीं रह सकती। लेकिन मुंबई एक मायानगरी है। जहाँ दोनों एक
साथ रहती हैं। नाटक सार्थक इस रूप में भी था चूँकि इस नाटक में कई महत्वपूर्ण
पहलुओं को संजोया गया था। मनोरंजन के इस जगत में हर जगह घोस्ट घूमते फिरते
नजर आते हैं। यह घोस्ट वास्तविक के घोस्ट नहीं हैं , बल्कि मनोरंजन की
दुनिया में इन्हें घोस्ट राइटर के रूप में जाना जाता है। जिनकी किस्से
कहानियों के लिए उन्हें चंद पैसे तो मिल जाते हैं। मगर नाम नहीं मिलता।
दरअसल , विशेषकर हिंदी का छोटा पर्दा तो इन्हीं भूत प्रेतों से गुलज़ार हैं।
जहाँ ओन स्क्रीन भूत प्रेत यानि हॉरर शोज हिट हैं। वही दूसरी तरफ आधे से
जयदा लिखे जाने वाले धारावाहिक इन घोस्ट राइटर की ही देन हैं। चूँकि छोटे
परदे को कहानी की जरुरत है। और लेखक चाहिए। मगर नाम नहीं। हाल ही में एक
लेखक ने बताया कि उन्हें एक फाइव स्टार होटल में एक प्रोडूसर ने मिलने के लिए
बुलाया। वे चाहते थे कि लेखक उनके लिए फिल्म की कहानी लिख दें। लेकिन उस
प्रोडूसर के पास कहानी की फीस के लिए पैसे नहीं हैं। दरअसल परसाई का यह नाटक
इसलिए भी प्रासंगिक हैं। चूँकि आज भी लेखकों को वह मान सम्मान नहीं हैं।
मिला। अभिनेता दयाशंकर पाण्डेय ने अपने इस एकल नाटक में कई विभिन्न किरदार
निभाए। दयाशंकर का यह एक एकल नाटक, जिसमें वह लगातार एक घंटे तक दर्शकों रू
ब रू रहे। वे कहीं भटके नहीं। शायद उनकी इन्हीं खूबियों की वजह से लगान और
स्वदेस जैसी फिल्मों के हिस्सा रहे आशुतोष जैसे निर्देशक पसंद हैं। मनोरंजन
जगत को ऐसे वर्सेटाइल कलाकारों की जरूरत है। इस एकल नाटक में आज की बात थी और
बीते दौर की भी। इसी नाटक के एक हिस्से में बात होती है कि निजता और प्रतिभा
ये दोनों एक साथ नहीं रह सकती। लेकिन मुंबई एक मायानगरी है। जहाँ दोनों एक
साथ रहती हैं। नाटक सार्थक इस रूप में भी था चूँकि इस नाटक में कई महत्वपूर्ण
पहलुओं को संजोया गया था। मनोरंजन के इस जगत में हर जगह घोस्ट घूमते फिरते
नजर आते हैं। यह घोस्ट वास्तविक के घोस्ट नहीं हैं , बल्कि मनोरंजन की
दुनिया में इन्हें घोस्ट राइटर के रूप में जाना जाता है। जिनकी किस्से
कहानियों के लिए उन्हें चंद पैसे तो मिल जाते हैं। मगर नाम नहीं मिलता।
दरअसल , विशेषकर हिंदी का छोटा पर्दा तो इन्हीं भूत प्रेतों से गुलज़ार हैं।
जहाँ ओन स्क्रीन भूत प्रेत यानि हॉरर शोज हिट हैं। वही दूसरी तरफ आधे से
जयदा लिखे जाने वाले धारावाहिक इन घोस्ट राइटर की ही देन हैं। चूँकि छोटे
परदे को कहानी की जरुरत है। और लेखक चाहिए। मगर नाम नहीं। हाल ही में एक
लेखक ने बताया कि उन्हें एक फाइव स्टार होटल में एक प्रोडूसर ने मिलने के लिए
बुलाया। वे चाहते थे कि लेखक उनके लिए फिल्म की कहानी लिख दें। लेकिन उस
प्रोडूसर के पास कहानी की फीस के लिए पैसे नहीं हैं। दरअसल परसाई का यह नाटक
इसलिए भी प्रासंगिक हैं। चूँकि आज भी लेखकों को वह मान सम्मान नहीं हैं।
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