फिल्म : पीके
कलाकार : आमिर खान, अनुष्का शर्मा, सौरभ शुक्ला,
निर्देशक : राजू हिरानी
रेटिंग : 3.5 स्टार
अनुप्रिया अनंत
फिल्म के ट्रेलर में बार बार पीके यानी आमिर खान बोलते नजर आते हैं. नहीं पहचाना का हमका...हम पीके हूं पीके...वाकई पीके देखते वक्त आप आमिर को नहीं पहचान पायेंगे. चूंकि फिल्म में वह जिस अवतार में नजर आये हैं. आप यही महसूस करेंगे कि आप आमिर खान को नहीं,वाकई पीके को देख रहे हैं. राजू हिरानी की फिल्म पीके वर्तमान दौर में बनी आवश्यक फिल्मों में से एक है. दरअसल, राजू हिरानी ने अपने ट्रेलर में ही फिल्म का सार दर्शाया दिया है, जिसे अगर दर्शक फिल्म देखने के बाद ही समझ पायेंगे. जैसा कि पीके ट्रेलर में बोलता है. कंफूजिया गये क्या...हकीकत यही है कि फिल्म की कहानी यही है कि हम कंफ्यूजन में क्यों हैं. जब फिल्म का पहला पोस्टर जारी किया गया था. हंगामा काफी बरपा. कि आखिर आमिर ने नग्न तसवीर वाली पोस्टर कैसे प्रदर्शित होने दी. लेकिन फिल्म देख कर आप इस बात का निर्णय खुद ले सकेंगे. यह एक अनुभव है, और बेहतर है कि दर्शक कहानी खुद देख कर खुद समझें. राजू हिरानी की फिल्मों के गाने, राजू हिरानी के किरदारों के नाम, दृश्य यूं ही सैर सपाटों के लिए फिल्मों में नजर नहीं आते. उनका अपना लॉजिक होता है. तर्क होता है और सबके खास बात वह तर्कसंगत होता है. आमिर खान का इस फिल्म से जुड़ना आम लोगों तक फिल्म की कहानी के उद्देश्य को पहुंचाने के लिए बेहद जरूरी था. चूंकि आम दर्शक पीके यानी आमिर खान से जुड़े हैं. वे उनकी बातों पर भरोसा करेंगे. राजू अपने अंदाज में हमें एक कंफ्यूजन से भरी दुनिया में ले जाते हैं, जहां धर्म फैशन का चोला पहन कर अपने खेल खेल रहा है. धर्म कुछ नहीं लोगों का स्टाइल स्टेटमेंट है. यह समझाने की कोशिश की गयी है.नोट पर गांधी हैं तो इज्जत है. कॉपी में हैं तो रद्दी...यह नजरिया राजू हिरानी जैसे निर्देशक ही दर्शा सकते हैं. रांग नंबर क्या है. राइट नंबर क्या है. इन सबके बीच झूठ का सच क्या है. जो सच है. वह सच है क्या...इस पूरे झूठ के सच के मायाजाल को भलिभांति समझना हो तो यह फिल्म जरूर देखी जानी चाहिए. राजू ने फिल्म की कहानी में दो बार तब्दीलियां की हैं. जिन्होंने ओह माइ गॉड देखी है.उन्हें यह फिल्म उसके करीब नजर आयेगी. लेकिन अलग बात यह है कि निर्देशक ने अपनी सोच में भिन्नता बरकरार रखी है. और वही फिल्म की खासियत है. राजू की खूबी है कि वह किसी विशेष धर्म पर कटाक्ष न करते हुए अपनी बात रखते हैं. वे अवधारणाओं को तोड़ते हैं. पीके के रूप में आप यह कल्पना कर सकते हैं कि वह आॅडियंस हैं, उसे भ्रमित किया जा रहा है. वह भ्रम में है भी और नहीं भी. धर्म को बनाने वाले व बांटने वाले हम हैं. राजू हिरानी की फिल्मों से एक बात स्पष्ट होता है कि उनके जेहन में गांधीजी की सोच ईश्वर, अल्ला, तेरो नाम...सबको सनमति दे भगवान की हमेशा गूंज होती है. वे उनके अनुयायी हैं और उनकी सार्थक बातों को वह इस फिल्म के माध्यम से भी पहुंचाने की कोशिश करते हैं. यह फिल्म कुछ और सार्थक बातें दर्शाती हैं कि यह धरती सबसे रोचक और दिलचस्प हैं और यहां रहने वाले इंसान प्रभावशाली. चूंकि जिस रूप में सही लोग संगत के असर में आते हैं. संगत का यह असर क्या होता है. यह आपको फिल्म देखने के बाद ही एहसास होगा. अरसे बाद आपको क्लाइमेक्स के साथ खुद को जुड़ा पायेंगे. सो, फिल्म देखें और अनुभव करें. और अंत में...आपने वह कहावत सुनी होगी...कोई दूसरे ग्रह से आकर आपको बतायेगा क्या? क्या सही है क्या गलत?...इस कहावत को याद रखियेगा.
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