इन दिनों कई बॉलीवुड हस्ती जम कर इस बात का प्रोमोशन कर रहे हैं कि उनकी फिल्म आॅस्कर का हिस्सा बन रही हैं. उनकी फिल्म को आॅस्कर में यह मान सम्मान मिल रहा है. जबकि हकीकत यह है कि आॅस्कर के इस शोर शराबे के बीच एक बड़ी हकीकत यह है कि आॅस्कर भारत से इन फिल्मों को नामांकित नहीं कर रहा, बल्कि आॅस्कर के कई सेगमेंट ऐसे भी होते हैं, जिसमें फिल्म के निर्देशक या कलाकार एक निश्चित राशि देकर वह सेगमेंट खरीद कर अपनी चीजें वहां प्रस्तुत कर सकते हैं. आॅस्कर को लेकर हर वर्ष यह शोर मच रहा. न सिर्फ आॅस्कर बल्कि कान महोत्सव में भी भारत के कई आर्थिक रूप से संपन्न निर्माता अपने बेटे या बेटी की फिल्मों के लिए वहां के स्थान खरीदते हैं और फिर उनकी पब्लिसिटी करते हैं. लेकिन भारत में अखबारों या चैनलों में इन बातों को इस तरह दर्शाया जाता है, मानो उन्हें वाकई वह सम्मान मिल रहा हो. और दर्शक भी उन्हें देख कर यही अनुमान लगाते हैं और सच मान बैठते हैं. जबकि यह बेहद जरूरी है कि दर्शक या पाठक भी अपनी बुद्धि का प्रयोग करें. वे इन अवार्ड या फिल्मोत्सव के आॅफिशियल वेबसाइट पर जायें और वहां जाकर सारे सेगमेंट देखें. उन्हें खुद ब खुद इसकी जानकारी हासिल हो जायेगी. फिल्म जेड प्लस में लेखक व निर्देशक ने इस बात को बखूबी दर्शाया है कि किस तरह आम आदमी को बेवकूफ बनाया जाता है. किस तरह मोहरा भी आम आदमी होता है और शिकार भी. दर्शकों के लिए भी यह बात लागू होती है. जिन फिल्मों को भारत में एक भी दर्शक न मिले हों. उन्हें कैसे आॅस्कर में स्थान मिल जायेगा. हमें इस तरह भी अपनी सोच का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. वर्षों से कई फिल्मकार दर्शकों को बेवकूफ बनाते आ रहे हैं. लेकिन अब दर्शकों को चाहिए कि वे अपनी बुद्धिमता से समझें और फिर सूझबूझ रखें.
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