निर्माता निर्देशक करण जौहर का सपना केवल निर्देशक बनने का ही था. यही वजह थी कि अपना होम प्रोडक् शन के बावजूद वे आदित्य चोपड़ा की शरण में गये और वही से उन्होंने निर्देशन की बारीकी सीखी. शाहरुख खान और काजोल भी स्वीकारते हैं कि दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे में सबसे ज्यादा मेहनत करन जौहर ने ही की थी. वे उस वक्त सेट पर हर तरह का काम किया करते थे. हर तरह की कमान संभाल लेते थे. चूंकि उनमें वही जज्बा था. वे निर्देशक ही बनना चाहते थे. इस बात से नकारा भी नहीं जा सकता कि उनकी शुरुआती दो फिल्में कुछ कुछ होता है और कभी खुशी कभी गम पारिवारिक मूल्यों पर गहरी छाप छोड़ती है.लेकिन अचानक उन्होंने निर्देशन की कुर्सी को पीछे ढकेल कर एक निर्माता की कुर्सी संभाली. इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि उनके पिता यश जौहर ने मरने से पहले उनके नाम एक चिट्ठी छोड़ी थी, जिसमें उन्होंने एक पिता होने के नाते अपनी ुपूंजी व पूंजी निवेश का पूरा ब्योरा अपने बेटे को दिया था. यश कर्ज में डूबे थे. उस वक्त करण भी निर्माण के कार्य को गंभीरता से नहीं ले रहे थे. लेकिन पिता की मौत ने उनके सपने को ही बदल दिया. वे पिता के सपने को जीने लगे. दरअसल, हकीकत यही है कि जब आप अपनी किसी अजीज चीज को खो देते हैं. आपके सपने बदल जाते हैं. कई बार आप किसी और के दबाव की वजह से अपने सपने जीना छोड़ देते हों. कई बार हालात मजबूर कर देते हैं. लेकिन कई बार आप अपनी खुशी से अपने पिता के अधूरे सपने को पूरा करने की कोशिश करते हैं. यश जौहर का यह सपना था कि धर्मा प्रोडक् शन ब्रांड बने और वर्तमान में यश का वह सपना पूरा हो चुका है. लेकिन इस सपने को पूरा करते करते शायद करन के निर्देशक मन पर निर्माता हावी है. तभी उनकी निर्देशित बाद के दौर की फिल्मनों में वे संवेदना नजर नहीं आती.
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20150130
ंिनर्देशक पर निर्माता हावी
निर्माता निर्देशक करण जौहर का सपना केवल निर्देशक बनने का ही था. यही वजह थी कि अपना होम प्रोडक् शन के बावजूद वे आदित्य चोपड़ा की शरण में गये और वही से उन्होंने निर्देशन की बारीकी सीखी. शाहरुख खान और काजोल भी स्वीकारते हैं कि दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे में सबसे ज्यादा मेहनत करन जौहर ने ही की थी. वे उस वक्त सेट पर हर तरह का काम किया करते थे. हर तरह की कमान संभाल लेते थे. चूंकि उनमें वही जज्बा था. वे निर्देशक ही बनना चाहते थे. इस बात से नकारा भी नहीं जा सकता कि उनकी शुरुआती दो फिल्में कुछ कुछ होता है और कभी खुशी कभी गम पारिवारिक मूल्यों पर गहरी छाप छोड़ती है.लेकिन अचानक उन्होंने निर्देशन की कुर्सी को पीछे ढकेल कर एक निर्माता की कुर्सी संभाली. इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि उनके पिता यश जौहर ने मरने से पहले उनके नाम एक चिट्ठी छोड़ी थी, जिसमें उन्होंने एक पिता होने के नाते अपनी ुपूंजी व पूंजी निवेश का पूरा ब्योरा अपने बेटे को दिया था. यश कर्ज में डूबे थे. उस वक्त करण भी निर्माण के कार्य को गंभीरता से नहीं ले रहे थे. लेकिन पिता की मौत ने उनके सपने को ही बदल दिया. वे पिता के सपने को जीने लगे. दरअसल, हकीकत यही है कि जब आप अपनी किसी अजीज चीज को खो देते हैं. आपके सपने बदल जाते हैं. कई बार आप किसी और के दबाव की वजह से अपने सपने जीना छोड़ देते हों. कई बार हालात मजबूर कर देते हैं. लेकिन कई बार आप अपनी खुशी से अपने पिता के अधूरे सपने को पूरा करने की कोशिश करते हैं. यश जौहर का यह सपना था कि धर्मा प्रोडक् शन ब्रांड बने और वर्तमान में यश का वह सपना पूरा हो चुका है. लेकिन इस सपने को पूरा करते करते शायद करन के निर्देशक मन पर निर्माता हावी है. तभी उनकी निर्देशित बाद के दौर की फिल्मनों में वे संवेदना नजर नहीं आती.
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