20150130

धर्म के ठेकेदार


धर्म के ठेकेदारों ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर फिल्म पीके के खिलाफ आंदोलन शुरू किया है. उनका मानना है कि फिल्म पीके में भगवान शिव के अवतार के पीछे फिल्म के नायक को क्यों भागते हुए दिखाया गया. क्यों फिल्म में निर्देशक ने कहा है कि जो डर गया...वह मसजिद गया. फिल्म में क्यों एक पाकिस्तानी किरदार सरफराज की तरफदारी की गयी है. यह फिल्म हिंदुत्व धर्म को ठेस पहुंचाती है. शायद ऐसी ही बातों से दंगे छिड़ते हैं. फिल्म की अच्छी बातें हम स्वीकारने के लिए तैयार नहीं. हिंदी सिनेमा में अरसे बाद किसी फिल्म ने यह अवधारणा बदलने की कोशिश की है, कि मुसलिम है तो यह जरूरी नहीं कि वह धोखा देगा ही. जो आम लोगों में प्रचलित अवधारणा है. फिल्म में ठप्पा की बात होती है. फिल्म में धर्म को फैशन स्टेटमेंट कहा गया है. जहां, वेशभूषाएं बदलते ही धर्म बदल जाते हैं. लेकिन इन बातों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा. न सिर्फ पीके बल्कि ओह माइ गॉड जैसी फिल्में लगातार धर्म निरपेक्षता को कायम रखने की बातें कर रही हैं. लेकिन लोगों को इनके नकारात्मक रूप अधिक नजर आ रहे हैं. किसी सुपरस्टार द्वारा पीके के विषय पर अभिनय किया जाना बेहद जरूरी था, चूंकि यही कहानी किसी आम कलाकार के माध्यम से की जाती तो शायद निर्देशक अपनी सोच को आम आदमी तक बमुश्किल पहुंचा पाते. गीतकार वरुण ग्रोवर ने फेसबुक वॉल पर सही बात लिखी है कि राजकुमार हिरानी जैसे निर्देशकों की फिल्म पर आप फैसला नहीं सुना सकते. दरअसल, पीके जैसी फिल्में आपके विचार, आपकी सोच को टटोलती हैं, कि आप क्या सोच रखते  हैं. इस सच से मुकरा नहीं जा सकता कि पिछले कई दशकों से पाकिस्तानी किरदार हिंदी फिल्मों में मुजरिम के रूप में गिरफ्त हैं. बेवजह. मगर पहली बार किसी निर्देशक ने उन्हें बाइज्जत बरी होने का मौका दिया है.

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