नीरज पांडे की फिल्म बेबी हाल के वर्षों में बनी आतंकवाद के मुद्दे पर एक महत्वपूूर्ण फिल्म है. न सिर्फ फिल्म का प्रस्तुतिकरण बल्कि फिल्म के संदेश भी दिलचस्प हैं. फिल्म में आफताब नामक किरदार अहम भूमिका निभा रहा. अंत तक नीरज ने यह तिलिस्म बनाये रखा है कि कहीं वह ऐन वक्त पर धोखा न दे जाये. लेकिन वह बेबी टीम की मदद करता है. स्पष्ट है कि नीरज ने इस सोच को बदलने की कोशिश की है कि किसी एक धर्म के व्यक्ति को आतंकवादी कहना सही नहीं. एक दृश्य में एक आतंकवादी गिरोह का व्यक्ति कहता है कि हम धर्म के कॉलम में बोल्ड होकर मुसलमान लिखते हैं. इस पर अक्षय का किरदार अजय कहता है कि ऐसे कई मुसलमान हैं, जो देश को सुरक्षित रखना चाहते हैं और उनकी मदद कर रहे और बाहर में खड़े सभी व्यक्ति गुणगान इसलिए गा रहे, चूंकि उन्हें पता नहीं कि वह आतंकवादी गिरोह का व्यक्ति है. हम धर्म के कॉलम में बोल्ड से इंडियन लिखते हैं. नीरज ने यहां भी एक साफ तसवीर प्रस्तुत करते हुए भारत में सभी धर्म निरपेक्षता से अपने कदम बढ़ा सकते. यहां धर्म के नाम पर बढ़ रहे संकीर्ण सोच को रोकना बेहद जरूरी है. वर्तमान समय में ऐसी फिल्मों की जरूरत इसलिए भी है. चूंकि यहां हर दूसरे दिन धर्म पर वार हो रहा. हर धर्म खुद को सर्वोपरि साबित करने के लिए मासूमों को गुमराह कर रहा है. इस वक्त फिल्मों के माध्यम से एक महत्वपूर्ण संदेश देने की जरूरत है. लेकिन परेशानी यह है कि अब भी भारत में दर्शक इस कदर मूर्ख बन रहे कि वे फिल्में देखे बिना फिल्म पर बवाल मचाने लगते हैं. वे कानों सुनी बातों पर भरोसा करने लगते हैं. और ज्यादातर वैसी बातें ही लोगों के जेहन में जिंदा रह जाती हैं, जो नकारात्मक हैं. सकारात्मकता दर्शकों को कम नजर आती है. लेकिन यह बेहद जरूरी है कि ऐसी फिल्में बनें और दर्शकों की सोच बदले. नजरिया बदले.
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20150130
बेबी का संदेश
नीरज पांडे की फिल्म बेबी हाल के वर्षों में बनी आतंकवाद के मुद्दे पर एक महत्वपूूर्ण फिल्म है. न सिर्फ फिल्म का प्रस्तुतिकरण बल्कि फिल्म के संदेश भी दिलचस्प हैं. फिल्म में आफताब नामक किरदार अहम भूमिका निभा रहा. अंत तक नीरज ने यह तिलिस्म बनाये रखा है कि कहीं वह ऐन वक्त पर धोखा न दे जाये. लेकिन वह बेबी टीम की मदद करता है. स्पष्ट है कि नीरज ने इस सोच को बदलने की कोशिश की है कि किसी एक धर्म के व्यक्ति को आतंकवादी कहना सही नहीं. एक दृश्य में एक आतंकवादी गिरोह का व्यक्ति कहता है कि हम धर्म के कॉलम में बोल्ड होकर मुसलमान लिखते हैं. इस पर अक्षय का किरदार अजय कहता है कि ऐसे कई मुसलमान हैं, जो देश को सुरक्षित रखना चाहते हैं और उनकी मदद कर रहे और बाहर में खड़े सभी व्यक्ति गुणगान इसलिए गा रहे, चूंकि उन्हें पता नहीं कि वह आतंकवादी गिरोह का व्यक्ति है. हम धर्म के कॉलम में बोल्ड से इंडियन लिखते हैं. नीरज ने यहां भी एक साफ तसवीर प्रस्तुत करते हुए भारत में सभी धर्म निरपेक्षता से अपने कदम बढ़ा सकते. यहां धर्म के नाम पर बढ़ रहे संकीर्ण सोच को रोकना बेहद जरूरी है. वर्तमान समय में ऐसी फिल्मों की जरूरत इसलिए भी है. चूंकि यहां हर दूसरे दिन धर्म पर वार हो रहा. हर धर्म खुद को सर्वोपरि साबित करने के लिए मासूमों को गुमराह कर रहा है. इस वक्त फिल्मों के माध्यम से एक महत्वपूर्ण संदेश देने की जरूरत है. लेकिन परेशानी यह है कि अब भी भारत में दर्शक इस कदर मूर्ख बन रहे कि वे फिल्में देखे बिना फिल्म पर बवाल मचाने लगते हैं. वे कानों सुनी बातों पर भरोसा करने लगते हैं. और ज्यादातर वैसी बातें ही लोगों के जेहन में जिंदा रह जाती हैं, जो नकारात्मक हैं. सकारात्मकता दर्शकों को कम नजर आती है. लेकिन यह बेहद जरूरी है कि ऐसी फिल्में बनें और दर्शकों की सोच बदले. नजरिया बदले.
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