लंदन में रहनेवाले पॉल किंग सत्यजीत रे की फिल्मों के दीवाने हैं. और यही वजह है कि वे सत्यजीत रे की अपु ट्राइलॉजी से प्रभावित हैं. अपनी आगामी फिल्म पैडिंगटन में वे अपु ट्राइलॉजी के कई दृश्य जिनसे वे प्रभावित हैं. उन्हें अपने अंदाज में दर्शायेंगे. वे स्वीकारते हैं कि सत्यजीत रे एक अलग मिजाज के निर्देशक थे. और उनकी फिल्मों में संवेदना अलग तरह से दर्शाई जाती रही है और यही वजह है कि पॉल सत्यजीत रे से प्रभावित होकर अपनी फिल्मों में उन्हें जिंदा रखने की कोशिश करना चाहते हैं. जहां हर बार भारतीय फिल्मों पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि भारतीय फिल्में विदेशी फिल्मों से प्रभावित होती हैं. वही जब ऐसी खबर आती है तो निश्चित तौर पर यह बात महसूस होती है कि सत्यजीत रे की फिल्मों में जो संवेदना थी वह यूनिवर्सल थी. जो लोगों के दिलों को अब भी छूती है. दरअसल, फिल्में भले ही किसी भी पृष्ठभूमि पर बनी हो. किसी भी परिस्थिति में बनी हो. लेकिन अगर उसकी संवेदना व भावना दुनिया में किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति के दिल तक पहुंचती है तो स्पष्ट है कि उस फिल्म की व्यापक पहुंच है. हाल के दौर में रितेश बत्रा की फिल्म लंचबॉक्स ने कुछ इसी अंदाज में अपने आॅडियंस की तलाश की. यह फिल्म भारत से अधिक विदेशों में देखी गयी. जिस वक्त यह भारत में रिलीज भी नहीं हुई थी. विदेश में इसने बॉक्स आॅफिस पर बेहतरीन कमाई कर ली थी. लंचबॉक्स में जो कहानी दिखाई गयी. उससे दुनिया का हर व्यक्ति खुद को जुड़ा महसूस करता है. यों तो आइडिया के स्तर पर दो अलग अलग स्थानों पर बैठा व्यक्ति भी किसी एक आइडिया से प्रभावित हो सकता है. जैसे राजकुमार हिरानी ने स्वीकारा कि उनकी फिल्म पीके की कहानी पहले इनस्पेशन की तरह लिखी गयी थी. लेकिन बाद में उन्हें बदलाव करने पड़े. दरअसल, फिल्म किसी एक केंद्र बिंदू पर हर किसी को प्रभावित करती है
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20150130
सत्यजीत रे की ट्राइलॉजी
लंदन में रहनेवाले पॉल किंग सत्यजीत रे की फिल्मों के दीवाने हैं. और यही वजह है कि वे सत्यजीत रे की अपु ट्राइलॉजी से प्रभावित हैं. अपनी आगामी फिल्म पैडिंगटन में वे अपु ट्राइलॉजी के कई दृश्य जिनसे वे प्रभावित हैं. उन्हें अपने अंदाज में दर्शायेंगे. वे स्वीकारते हैं कि सत्यजीत रे एक अलग मिजाज के निर्देशक थे. और उनकी फिल्मों में संवेदना अलग तरह से दर्शाई जाती रही है और यही वजह है कि पॉल सत्यजीत रे से प्रभावित होकर अपनी फिल्मों में उन्हें जिंदा रखने की कोशिश करना चाहते हैं. जहां हर बार भारतीय फिल्मों पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि भारतीय फिल्में विदेशी फिल्मों से प्रभावित होती हैं. वही जब ऐसी खबर आती है तो निश्चित तौर पर यह बात महसूस होती है कि सत्यजीत रे की फिल्मों में जो संवेदना थी वह यूनिवर्सल थी. जो लोगों के दिलों को अब भी छूती है. दरअसल, फिल्में भले ही किसी भी पृष्ठभूमि पर बनी हो. किसी भी परिस्थिति में बनी हो. लेकिन अगर उसकी संवेदना व भावना दुनिया में किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति के दिल तक पहुंचती है तो स्पष्ट है कि उस फिल्म की व्यापक पहुंच है. हाल के दौर में रितेश बत्रा की फिल्म लंचबॉक्स ने कुछ इसी अंदाज में अपने आॅडियंस की तलाश की. यह फिल्म भारत से अधिक विदेशों में देखी गयी. जिस वक्त यह भारत में रिलीज भी नहीं हुई थी. विदेश में इसने बॉक्स आॅफिस पर बेहतरीन कमाई कर ली थी. लंचबॉक्स में जो कहानी दिखाई गयी. उससे दुनिया का हर व्यक्ति खुद को जुड़ा महसूस करता है. यों तो आइडिया के स्तर पर दो अलग अलग स्थानों पर बैठा व्यक्ति भी किसी एक आइडिया से प्रभावित हो सकता है. जैसे राजकुमार हिरानी ने स्वीकारा कि उनकी फिल्म पीके की कहानी पहले इनस्पेशन की तरह लिखी गयी थी. लेकिन बाद में उन्हें बदलाव करने पड़े. दरअसल, फिल्म किसी एक केंद्र बिंदू पर हर किसी को प्रभावित करती है
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