20150130

सिनेमा का स्पर्श

फिल्म पीके में एक भिखारी नजर आयेंगे. दृश्य में वह भीख मांगते नजर आते हैं. कई अखबारों में इन दिनों इस बात को प्रमुखता से दर्शाया जा रहा है. अखबारों में लिखा जा रहा है कि उसकी किस्मत खुल गयी. बकायदा मनोज नामक इस भिखारी ने अपनी बातचीत में बताया कि उनका भी आॅडिशन लिया गया था. इससे पहले फिल्म बॉबी जासूस में जब विद्या बालन ने एक भिखारी का वेश धारण किया था तो उन्होंने यह अनुभव किया था कि एक भिखारी की जिंदगी क्या होती है. चूंकि वहां बैठे बैठे एक भिखारी ने विद्या को डांट दिया था. उन्होंने विद्या से कहा था कि वह उनका इलाका हैं, उनकी वजह से लोग उन्हें भीख नहीं दे रहे. कई सालों पहले दिलीप साहब ने भी एक फिल्म में भिखारी का किरदार निभाने के लिए भिखारी की जिंदगी को करीब से देखने की कोशिश की थी. यह सिनेमा का ही तिलिस्म है, जो स्लमडॉग के बच्चों को कुछ वक्त के लिए ही सही मिलिनेयर बनने का मौका मिला. यह सिनेमा का ही तिलिस्म है, जो लोग आज मान बैठे हैं, चूंकि वह भिखारी फिल्म पीके में नजर आये हैं. उनकी जिंदगी अब बदल जायेगी. सिनेमा के तिलिस्म  में वह असर है, वह तेज है कि वह रंक को राजा, राजा को रंक तब्दील कर सकता है. सिनेमा के स्पर्श मात्र से ही कैसे बदलाव आते हैं. इसका अनुमान आप इस प्रकरण से लगा सकते हैं. यह सिनेमा का तिलिस्म ही है, जो कहीं दूर किसी गांव के छोटे से छप्पड़ वाले घर में बैठे एक युवा को शाहरुख खान बनने के लिए प्रेरित कर देते हैं. मुमकिन है कि फिल्म फैन में मनंीष शर्मा कहीं न कहीं यह दर्शाने की कोशिश करें. हालांकि यह अनुमान मात्र ही है. फिल्म बिल्लू में भी एक दोस्त, एक फैन और एक आम आदमी की कहानी दिखाने की कोशिश की गयी है. वहां भी सिनेमा का तिलिस्म स्पष्ट नजर आता है. 

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