अभी कुछ दिनों पहले दूरदर्शन की एक एंकर का सोशल मीडिया पे जमकर मजाक उड़ाया गया। अंजाम यह हुआ कि उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। मुद्दा यह था कि एक रिपोर्टर जिन्हें फिल्म के महोत्सव की रिपोर्टिंग के लिए भेजा गया था। वहां वे बिना किसी जानकारी के मौजूद थीं और प्रसारण लाइव हो रहा था। हाल ही में पेशावर में हुए आतंकवादी हमलों के बाद पाकिस्तानी चैनल की एक महिला रिपोर्टर फिर से चर्चा में हैं। चूँकि रिपोर्टिंग करते वक़्त वह भावुक होकर रो पड़ी। कई लोगों को इस बात से अधिक शोक है कि एक रिपोर्टर कैसे रिपोर्टिंग करते वक़्त रो सकती हैं। उन्हें अपनी भावनाओं को काबू कर ही रिपोर्टिंग करनी चाहिए। कई सालों पहले बरखा दत्त पर कई दोषारोपण हुए थे। जब उन्होंने कारगिल पर रिपोर्टिंग की थी। कुछ दिनों पहले जब एक महिला रिपोर्टर ने अपनी दोनों टाँगे रिपोर्टिंग के दौरान खोयी तो लोगों ने उसका भी मजाक बनाया कि उस महिला रिपोर्टर को क्या जरुरत थी अति उत्साही होने की। एक महिला रिपोर्टर ने जब अ[पने चैनल के मालिक पर ऊँगली उठाई तब यही सोशल मीडिया मौन रही पिछले दिनों फिल्म ऊँगली में दर्शाया जाता है कि किस तरह एक पुरुष रिपोर्टर की मदद से ही एक महिला रिपोर्टर को अच्छी स्टोरी मिलती है। फिल्म पेज ३ में भी नायक नायिका को कहता है कि तुम्हे जाकर सिर्फ पेज ३ की रिपोटिंग करनी चाहिए। कक्राईम की स्टोरी करना तुम्हारे वश की बात नहीं। फिल्म रिवाल्वर रानी में नायिका का मां महिला रिपोर्टर को खरीद लेता है और खुद उसे पैसे देकर स्टिंग ऑपेरशन करता है। दरअसल , रील और रियल दोनों ही परदे पर महिला रिपोर्टर की छवि में हमेशा खामियां ही निकली गई हैं। ए . क्षेत्र को भी हो। महिलाओं को खुद को हर बार केंद्र में रख कर खरी खोटी सुनाया जाता रहा है। यह दर्शाया जाता है कि अगर अपने बलबूते पे कुछ किया तो चरित्र ख़राब और अगर पुरुष की सहायता ली तो , सहारे के बिना कुछ भी सम्भव नहीं। मगर इस सोच को बदलने की सख्त जरुरत है
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