20131004

गांधी की नजर से सिनेमा


हिंदी सिनेमा पर आधारित एक महत्वपूर्ण उपयोगी ब्लॉग चवन्नीचैप पर गांधी और सिनेमा पर एक महत्वपूर्ण आलेख है. जिसमें गांधी की नजर में सिनेमा के दृष्टिकोण को दर्शाने की कोशिश की गयी है. इस आलेख में ख्वाजा अहमद अब्बास द्वारा गांधीजी को लिखे पत्र की व्याख्या है, जिसमें ख्वाजा अहमद अब्बास ने गांधीजी को समझाने की कोशिश की है कि सिनेमा उतनी बुरी और अनुपयोगी चीज नहीं. जितनी दिखाई देती है. उन्होंने आग्रह किया है कि वे सिनेमा को लेकर अपने नजरिये को बदलें. लेकिन गांधीजी ने अपना नजरिया नहीं बदला. यह अलग बात है कि बाद में हिंदी सिनेमा ने गांधीजी पर कई फिल्में बनायी. गांधी के विचारों पर गांधी के कार्यों पर कई फिल्में बनी.दरअसल, स्वयं गांधीजी इसकी महत्ता को समझ नहीं पाये होंगे कि एक दौर में जब वह वह नहीं रहेंगे तो यह वीडियो व चलचित्र ही वह माध्यम होगा, जिससे उनके कार्यों का लेखा जोखा लोगों तक पहुंचेगा. आज भी  मेरी अपनी राय है. हो सकता है कि इस बात से कई लोग असहमत होंगे. लेकिन मुझे देखी गयी चीजें ज्यादा याद रहती हैं, बनिस्पत पढ़ी हुई चीजें. मिल्खा सिंह पर आधारित मैंने किताबें पढ़ी हैं. लेकिन उनकी जिंदगी से जितनी वाकिफ फिल्म भाग मिल्खा भाग के माध्यम से हुई. शायद किताबें पढ़ कर उससे वंचित रह जातीं. गांधीजी ने बाद के दौर में राजकुमार हिरानी जैसे निर्देशकों को इस तरह प्रभावित किया कि उन्होंने अपनी फिल्म से गांधीगिरी को लोकप्रिय कर दिया. लेकिन शायद खुद गांधीजी रहते तो उन्हें इस शब्द पर आपत्ति होती. यह सिर्फ गांधीवादी विचारधारा नहीं, बल्कि सिनेमा को जुआ और सट्टा समझने की चूक आज भी कई लोग करते हैं. दरअसल, सिनेमा जितना विस्तृत और समृद्ध होता जायेगा. उसे लेकर उतने ही अलग अलग नजरिये बनते रहेंगे. 

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