फिल्म रामलीला में सुप्रिया पाठक दीपिका पादुकोण से कहती हैं कि तू मेरा गुरूर है. अगर कोई और होता तो गर्दन काट देती और इतना कह कर वह सरौता दीपिका की उंगलियों पर चला देती हैं. सुप्रिया पाठक ने फिल्म में एक ऐसी महिला का किरदार निभाया है. जो कई वर्षों से अपने पति की मृत्यु के बाद गद्दी संभालती है. उनकी एक आवाज के बिना कोई पत्ता भी नहीं सरकता. संजय लीला की फिल्म रामलीला में सुप्रिया पाठक के किरदार का खास विश्लेषण किया जाना चाहिए. चूंकि वह कोई आम किरदार नहीं है. जिस तरह सुप्रिया के किरदार की विभिन्नताओं और पहलूओं को फिल्म के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की गयी है. दरअसल, एक ही फिल्म में एक ही किरदार औरत के व्यवहार की हर छवि को प्रस्तुत कर दी गयी है. किसी हिंदी फिल्म में किसी महिला किरदार की इतनी खूबसूरत तसवीर शायद ही इस रूप में गढ़ी गयी होगी. आप फिल्म में सुप्रिया के किरदार पर गौर करें. वह हंसी ठिठोली करती है. लेकिन उसमें आग है. हां, वह गुस्सैल भी है. लेकिन अपने परिवार को लेकर उतनी ही भावनात्मक भी. बेटी लीला जब राम के साथ एक रात बीता कर वापस आती है. दूसरी मां की तरह वह उस पर हाथ नहीं उठाती. उसे मार नहीं डालती. बल्कि अपनी लाज बचाने के लिए उसके व्याह रचाने की तैयारी करती है. जब वह बीमार पड़ती है. और लीला गद्दी संभालती है. वह एक अच्छी शासक की तरह लीला को हड़बड़ी में किसी भी कागज पर हस्ताक्षर करने से रोकती है. बहू की इज्जत लूटने वालों को वह पत्थर का जवाब पत्थर से देती है. अंत में वह अपने दुश्मन के बच्चे को गले लगा कर कहती है कि मुझे यहां सब बा कहते हैं. बच्चा जैसे ही गोद में जाता है. बा की ममता निकल कर सामने आ जाती है. स्पष्ट है कि संजय लीला भंसाली ने इस चरित को लिखने में मेरे ख्याल से सबसे ज्यादा वक्त लिया होगा.
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20131127
बा के रूप में स्त्री
फिल्म रामलीला में सुप्रिया पाठक दीपिका पादुकोण से कहती हैं कि तू मेरा गुरूर है. अगर कोई और होता तो गर्दन काट देती और इतना कह कर वह सरौता दीपिका की उंगलियों पर चला देती हैं. सुप्रिया पाठक ने फिल्म में एक ऐसी महिला का किरदार निभाया है. जो कई वर्षों से अपने पति की मृत्यु के बाद गद्दी संभालती है. उनकी एक आवाज के बिना कोई पत्ता भी नहीं सरकता. संजय लीला की फिल्म रामलीला में सुप्रिया पाठक के किरदार का खास विश्लेषण किया जाना चाहिए. चूंकि वह कोई आम किरदार नहीं है. जिस तरह सुप्रिया के किरदार की विभिन्नताओं और पहलूओं को फिल्म के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की गयी है. दरअसल, एक ही फिल्म में एक ही किरदार औरत के व्यवहार की हर छवि को प्रस्तुत कर दी गयी है. किसी हिंदी फिल्म में किसी महिला किरदार की इतनी खूबसूरत तसवीर शायद ही इस रूप में गढ़ी गयी होगी. आप फिल्म में सुप्रिया के किरदार पर गौर करें. वह हंसी ठिठोली करती है. लेकिन उसमें आग है. हां, वह गुस्सैल भी है. लेकिन अपने परिवार को लेकर उतनी ही भावनात्मक भी. बेटी लीला जब राम के साथ एक रात बीता कर वापस आती है. दूसरी मां की तरह वह उस पर हाथ नहीं उठाती. उसे मार नहीं डालती. बल्कि अपनी लाज बचाने के लिए उसके व्याह रचाने की तैयारी करती है. जब वह बीमार पड़ती है. और लीला गद्दी संभालती है. वह एक अच्छी शासक की तरह लीला को हड़बड़ी में किसी भी कागज पर हस्ताक्षर करने से रोकती है. बहू की इज्जत लूटने वालों को वह पत्थर का जवाब पत्थर से देती है. अंत में वह अपने दुश्मन के बच्चे को गले लगा कर कहती है कि मुझे यहां सब बा कहते हैं. बच्चा जैसे ही गोद में जाता है. बा की ममता निकल कर सामने आ जाती है. स्पष्ट है कि संजय लीला भंसाली ने इस चरित को लिखने में मेरे ख्याल से सबसे ज्यादा वक्त लिया होगा.
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