शाहिद कपूर की नयी फिल्म आर राजकुमार का संवाद है.साइलेंट हो जा वरना मैं वॉयलेंट हो जाऊंगा. इससे पहले शाहिद कपूर ने फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो में भी जम कर डॉयलॉगबाजी की है. फिल्म वन्स अपन अ टाइम इन मुंबई दोबारा के असफल होने की बड़ी वजह यही रही कि फिल्म में जरूरत से ज्यादा संवाद अदायगी है. दरअसल, एक बार फिर से हिंदी सिनेमा में डायलॉग बाजी का दौर लौट आया है. किसी दौर में फिल्म की कहानी पर नहीं फिल्म के संवादों पर ही दर्शकों की तालियां बजती थी. 80 से 90 के दशक में ऐसी फिल्में बहुत बनी. हां, यह सच है कि कुछ ऐसे संवाद भी रहे जो हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय संवाद बन गये. लेकिन आज के दौर में उन संवादों को सुनो तो वे न तो प्रासंगिक लगते हैं और न ही बेहद कर्णप्रिय. लेकिन फिर भी उन संवादों पर कॉमेडी शोज में सबसे ज्यादा पैरोडी बनायी जाती है. चूंकि एक बार जो लोकप्रिय हो चुका है. वही लोकप्रिय है. फिलवक्त हिंदी सिनेमा के कुछ निर्देशक इसी का सहारा ले रहे हैं. कहानी कैसी भी हो. वे चाहते हैं कि फिल्मों के संवाद लोकप्रिय हो जायेंगे. राउडी राठौड़ फिल्म की तो पूरी पब्लिसिटी ही संवाद के बलबुते की गयी. लेकिन अफसोस की बात यह है कि परदे पर ऐसे संवाद जब अभिनेता या अभिनेत्री इन दिनों बोलते नजर आते हैं. उनमें कोई नयापन नहीं होता. आर राजकुमार के पोस्टर को देखें तो आप गौर करेंगे कि एक बार फिर से लार्जर देन लाइफ किरदार निभाने वाले किरदार का दौर लौट आया है. दरअसल, शाहिद कपूर सरीके कलाकारों की यही कोशिश है कि वह चॉकलेटी इमेज से बाहर निकल कर ऐसे किरदार निभायें ताकि वे भी उन श्रेणी में शामिल हो पायें. और ऐसे में उन्हें मदद डायलॉगबाजी से ही मिलती है और यही वजह है कि अब कहानी नहीं फिर से डायलॉगबाजी का दौर लौट रहा है
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20131004
डायलॉगबाजी फिर से
शाहिद कपूर की नयी फिल्म आर राजकुमार का संवाद है.साइलेंट हो जा वरना मैं वॉयलेंट हो जाऊंगा. इससे पहले शाहिद कपूर ने फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो में भी जम कर डॉयलॉगबाजी की है. फिल्म वन्स अपन अ टाइम इन मुंबई दोबारा के असफल होने की बड़ी वजह यही रही कि फिल्म में जरूरत से ज्यादा संवाद अदायगी है. दरअसल, एक बार फिर से हिंदी सिनेमा में डायलॉग बाजी का दौर लौट आया है. किसी दौर में फिल्म की कहानी पर नहीं फिल्म के संवादों पर ही दर्शकों की तालियां बजती थी. 80 से 90 के दशक में ऐसी फिल्में बहुत बनी. हां, यह सच है कि कुछ ऐसे संवाद भी रहे जो हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय संवाद बन गये. लेकिन आज के दौर में उन संवादों को सुनो तो वे न तो प्रासंगिक लगते हैं और न ही बेहद कर्णप्रिय. लेकिन फिर भी उन संवादों पर कॉमेडी शोज में सबसे ज्यादा पैरोडी बनायी जाती है. चूंकि एक बार जो लोकप्रिय हो चुका है. वही लोकप्रिय है. फिलवक्त हिंदी सिनेमा के कुछ निर्देशक इसी का सहारा ले रहे हैं. कहानी कैसी भी हो. वे चाहते हैं कि फिल्मों के संवाद लोकप्रिय हो जायेंगे. राउडी राठौड़ फिल्म की तो पूरी पब्लिसिटी ही संवाद के बलबुते की गयी. लेकिन अफसोस की बात यह है कि परदे पर ऐसे संवाद जब अभिनेता या अभिनेत्री इन दिनों बोलते नजर आते हैं. उनमें कोई नयापन नहीं होता. आर राजकुमार के पोस्टर को देखें तो आप गौर करेंगे कि एक बार फिर से लार्जर देन लाइफ किरदार निभाने वाले किरदार का दौर लौट आया है. दरअसल, शाहिद कपूर सरीके कलाकारों की यही कोशिश है कि वह चॉकलेटी इमेज से बाहर निकल कर ऐसे किरदार निभायें ताकि वे भी उन श्रेणी में शामिल हो पायें. और ऐसे में उन्हें मदद डायलॉगबाजी से ही मिलती है और यही वजह है कि अब कहानी नहीं फिर से डायलॉगबाजी का दौर लौट रहा है
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