20131024

पुराना दौर नया कलेवर


 फिल्म बॉस में अक्षय कुमार ने पुराने दौर के  गीत हर किसी को नहीं मिलता...को यह कह कर अपनी फिल्म में  इसका इस्तेमाल किया है कि वह इस गाने से फिरोज खान को ट्रीब्यूट दे रहे हैं. अभिनव कश्यप ने फिल्म बेशरम में फिल्म के किरदार बबली को अमिताभ बच्चन का फैन दिखाया है. इसी फिल्म के अंत में ऋषि कपूर और नीतू कपूर की पुरानी फिल्मों की तसवीर का भी इस्तेमाल किया गया है. इससे पहले प्रियंका चोपड़ा ने शूटआउट एट वडाला में बबली बदमाश में जो कॉस्टयूम पहना था. उन्होंने यह कह कर गाने को प्रोमोट किया था कि वह गीत अमिताभ बच्चन के गाने सारा जमाना हसीनों का दीवाना...को ट्रीब्यूट है. प्रश्न यह उठता है कि क्या वाकई नये जमाने में इस्तेमाल किये जा रहे यह गीत या फिल्मों के दृश्य या तसवीरें वाकई पुराने दौर के कलाकारों को ट्रीब्यूट होती हैं? क्या वाकई फिल्मकार या कलाकार तहे दिल से उन्हें इसे माध्यम से सम्मान देने की कोशिश करते हैं. हाल ही में फिल्म जंजीर के रीमेक के दौरान  अमिताभ बच्चन ने गाने में इस्तेमाल किये जा रहे अपशब्द पर आपत्ति जतायी थी. बाद में इसे हटाया गया और अमिताभ को इस माध्यम से ट्रीब्यूट देने की कोशिश की गयी. दरअसल, हकीकत यह है कि नये जमाने के फिल्मकार और कलाकार सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए पुराने गानों का इस्तेमाल करते हैं. इससे कई फायदे होते हैं. एक तो उन्हें नये गानों की मेकिंग में खास मेहनत नहीं करनी पड़ती. फिर पुराने गानों को नया रूप देने में उन्हें खास खर्च भी नहीं करना पड़ता. दूसरी बात यह भी स्पष्ट है कि आज भी पुराने दौर के गीतों, कलाकारों का जादू बरकरार है. और लोग उससे सीधे तौर पर खुद को कनेक्ट कर पाते हैं. और यही वजह है कि नये जमाने के कलाकार उस कनेक् शन का फायदा अपने मुनाफे के लिए कमाने की कोशिश करते हैं.

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