अनुष्का शर्मा द्वारा निर्मित फिल्म एनएच 10 को फिल्म समीक्षकों से अच्छी सराहना मिल रही है. फिल्म में हिंसा है. लेकिन फिल्म सच्चाई को दर्शाती है. कई महत्वपूर्ण सवालों को कुरेदती भी है. लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि इस फिल्म ने सेंसर के कई वार का सामना किया. जहां भारत में इसे केवल व्यस्कों की श्रेणी में शामिल किया गया है. पाकिस्तान में इसे यू सर्टिफिकेट दिया गया है. आमतौर पर यह अवधारणा है कि हमारा पड़ोसी मुल्क संकीर्ण मिजाज का है. लेकिन इस फिल्म पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर पाकिस्तान ने साबित किया है कि वे ऐसी शोधपरक और गंभीर मुद्दों पर आधारित फिल्मों को स्वीकारने के लिए तैयार है. हालांकि पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड में केवल कुछ गालियों को हटाने की बात कही गयी है. इन दिनों सेंसर बोर्ड जिस तरह की मनमर्जी कर रही है. वे अपने मनमुताबिक शब्दकोश लोगों पर थोपने की कोशिश कर रही है. किसी जमाने में लोकप्रिय अभिनेता रह चुके शत्रुघ् न सिन्हा ने कहा है कि उन्होंने ताउम्र कई नकारात्मक भूमिकाएं निभायी, लेकिन उन्होंने कभी अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया. लेकिन वह दौर अलग था. उस दौर में फिल्में वाकई फिल्मी हुआ करती थीं. वास्तविक फिल्मों का दूर दूर तक वास्तां नहीं था. लोग फिल्मी कहानियां देख कर ही खुश हुआ करते थे. लेकिन धीरे धीरे फिल्मों ने जो तेवर बदले हैं. वे बहुत हद तक आवश्यक हैं. एनएच 10 एक महत्वपूर्ण फिल्म है और महिलाओं को अवश्य देखनी चाहिए. हां, यह सही है कि सेंसर बोर्ड को अश्लीलता पर अधिक कठोर होना चाहिए. लेकिन वे महज गालियों के इस्तेमाल के आधार पर पूरी फिल्म को अश्लील घोषित नहीं कर सकते. फिल्मों की अपनी दुनिया होती है. सो, वर्तमान दौर में सिनेमा की नकेल कसने की कोशिश करने वालों को यह बात समझनी ही होगी.
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20150318
सिनेमा व सेंसर बोर्ड
अनुष्का शर्मा द्वारा निर्मित फिल्म एनएच 10 को फिल्म समीक्षकों से अच्छी सराहना मिल रही है. फिल्म में हिंसा है. लेकिन फिल्म सच्चाई को दर्शाती है. कई महत्वपूर्ण सवालों को कुरेदती भी है. लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि इस फिल्म ने सेंसर के कई वार का सामना किया. जहां भारत में इसे केवल व्यस्कों की श्रेणी में शामिल किया गया है. पाकिस्तान में इसे यू सर्टिफिकेट दिया गया है. आमतौर पर यह अवधारणा है कि हमारा पड़ोसी मुल्क संकीर्ण मिजाज का है. लेकिन इस फिल्म पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर पाकिस्तान ने साबित किया है कि वे ऐसी शोधपरक और गंभीर मुद्दों पर आधारित फिल्मों को स्वीकारने के लिए तैयार है. हालांकि पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड में केवल कुछ गालियों को हटाने की बात कही गयी है. इन दिनों सेंसर बोर्ड जिस तरह की मनमर्जी कर रही है. वे अपने मनमुताबिक शब्दकोश लोगों पर थोपने की कोशिश कर रही है. किसी जमाने में लोकप्रिय अभिनेता रह चुके शत्रुघ् न सिन्हा ने कहा है कि उन्होंने ताउम्र कई नकारात्मक भूमिकाएं निभायी, लेकिन उन्होंने कभी अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया. लेकिन वह दौर अलग था. उस दौर में फिल्में वाकई फिल्मी हुआ करती थीं. वास्तविक फिल्मों का दूर दूर तक वास्तां नहीं था. लोग फिल्मी कहानियां देख कर ही खुश हुआ करते थे. लेकिन धीरे धीरे फिल्मों ने जो तेवर बदले हैं. वे बहुत हद तक आवश्यक हैं. एनएच 10 एक महत्वपूर्ण फिल्म है और महिलाओं को अवश्य देखनी चाहिए. हां, यह सही है कि सेंसर बोर्ड को अश्लीलता पर अधिक कठोर होना चाहिए. लेकिन वे महज गालियों के इस्तेमाल के आधार पर पूरी फिल्म को अश्लील घोषित नहीं कर सकते. फिल्मों की अपनी दुनिया होती है. सो, वर्तमान दौर में सिनेमा की नकेल कसने की कोशिश करने वालों को यह बात समझनी ही होगी.
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